नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे (एस.ए. बोबडे) ने मौजूदा न्यायायिक सिस्टम पर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि न्याय को कभी बदले का रूप नहीं लेना चाहिए. अगर न्याय बदले का रूप ले ले तो वो न्याय नहीं है. सीजेआई ने जोधपुर में एक कार्यक्रम में कहा कि इस बात पर कोई शक नहीं है कि क्रिमिनिल जस्टिस सिस्टम को अपनी स्थिति के बारे में दोबारा विचार करना चाहिए.
उन्होंने कहा, ''हाल की घटनाओं ने एक पुरानी बहस को नई मजबूती से दोबारा छेड़ दिया है. इस बात पर कोई शक नहीं है कि क्रिमिनिल जस्टिस सिस्टम को अपनी स्थिति के बारे में दोबारा विचार करना चाहिए, इस बात पर विचार करना चाहिए कि किसी मामले को निपटाने में कितना टाइम लग रहा है. लेकिन मुझे नहीं लगता कि न्याय कभी भी त्वरित हो सकता है या होना चाहिए. न्याय को कभी बदले का रूप नहीं लेना चाहिए. अगर न्याय बदले का रूप ले ले तो वो न्याय नहीं है.''
सीजेआई बोबडे ने सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों द्वारा पिछले साल किये गये संवाददाता सम्मेलन को लेकर कहा कि यह महज ‘खुद में सुधार करने का एक उपाय’ भर था. राजस्थान हाईकोर्ट के नये भवन के उद्घाटन के दौरान सीजेआई बोबडे ने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि इस संस्था (न्यायपालिका) को खुद में सुधार करना चाहिए और नि:संदेह यह उस समय किया गया, जब संवाददाता सम्मेलन किया गया था जिसकी काफी आलोचना हुई थी. यह खुद में सुधार करने के एक उपाय से ज्यादा कुछ नहीं था और मैं इसे उचित ठहराना नहीं चाहता.’’
सीजेआई ने कहा, ‘‘सभी न्यायाधीश प्रतिष्ठित थे और विशेष रूप से जस्टिस (रंजन) गोगोई ने काफी क्षमता का प्रदर्शन किया और न्यायपालिका का नेतृत्व किया.’’ गौरतलब है कि एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एम बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसफ ने 12 जनवरी 2018 को संवाददाता सम्मेलन किया था.
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इसमें उन्होंने कहा था कि शीर्ष न्यायालय में सबकुछ ‘ठीकठाक नहीं’ है और कई ऐसी चीज़ें हुई हैं जो अपेक्षित से कहीं कम हैं. बाद में, उसी साल जस्टिस रंजन गोगोई तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) दीपक मिश्रा के सेवानिवृत्त होने पर इस शीर्ष पद पर नियुक्त हुए थे.