नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पूरे दिन मध्य प्रदेश के सियासी खींचतान पर सुनवाई की. कोर्ट ने जहां कांग्रेस के बागी विधायकों को बेंगलुरु में रखे जाने पर सवाल उठाए, वहीं यह भी पूछ लिया कि विधानसभा की कार्रवाई को 10 दिन के लिए स्थगित क्यों किया गया?


एमपी के पूर्व सीएम और वरिष्ठ बीजेपी नेता शिवराज सिंह चौहान और नौ बीजेपी विधायकों ने याचिका दायर कर कमलनाथ सरकार के अल्पमत में होने का दावा किया है. उनका कहना है कि 22 विधायकों के इस्तीफे से अल्पमत में आ गई कांग्रेस सरकार बहुमत परीक्षण से बच रही है. इसके जवाब में विधानसभा में कांग्रेस के चीफ व्हिप गोविंद सिंह याचिका दायर कर दावा किया है कि पार्टी के 16 विधायकों को जबरन बेंगलुरु में रखा गया है.


कांग्रेस की तरफ से वकील दुष्यंत दवे ने कहा, "बीजेपी कांग्रेस मुक्त भारत के अपने नारे पर अमल करने के लिए इस तरह की हरकत कर रही है, जहां एक पार्टी के विधायकों को जबरन दूसरे राज्य में बंधक बनाकर रख लिया गया है." कमलनाथ की तरफ से कपिल सिब्बल ने भी यह दावा दोहराया. उन्होंने यह भी कहा कि सीएम ने गवर्नर को यह बात बताई थी. लेकिन गवर्नर ने इसे अनसुना करते हुए विधानसभा में बहुमत परीक्षण का आदेश दे दिया.


इसका विरोध करते हुए कांग्रेस के बागी विधायकों के लिए पेश हुए वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने कहा, “विधायकों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके टीवी कैमरों के सामने यह कहा कि वह अपनी मर्जी से बेंगलुरु में है.“ इस पर 2 जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, “हम टीवी पर देख कर कोई फैसला नहीं ले सकते. यह तय करना जरूरी है कि विधायकों ने अपनी इच्छा से इस्तीफा भेजा है या नहीं.“


इस पर मनिंदर सिंह ने कहा, “आप कहें तो विधायकों को दिल्ली बुला लिया जाएगा. आप अपने चेंबर में विधायकों से मिलकर तसल्ली कर लें.“ जजों ने इससे मना कर दिया. इसके बाद मनिंदर सिंह ने कहा, “तो फिर कर्नाटक हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को विधायकों से मिलने के लिए कहा जाए. वह आपको रिपोर्ट दे देंगे.“ जजों ने इस पर भी कोई टिप्पणी नहीं की.


जजों का कहना था, “बेहतर हो कि विधायक बाहर आ जाएं. वह स्वतंत्र रूप से घूमें फिरें. इसके बाद उन्हें जो फैसला लेना हो, लें. जजों ने आगे कहा, “स्पीकर विधायकों के इस्तीफे पर फैसला क्यों नहीं ले रहे हैं? क्या विधायक कल अगर उनसे जाकर मिलें, तो वह फैसला ले लेंगे“


बागी विधायकों के वकील ने इससे मना करते हुए कहा, “वह भोपाल नहीं जाना चाहते हैं. उनकी सुरक्षा को खतरा है. कांग्रेस के किसी नेता से भी नहीं मिलना चाहते हैं.“ जज का कहना था, “हम किसी को कहीं जाने का आदेश देना भी नहीं चाहते. हमारी चिंता सिर्फ इतनी है कि वह अपनी इच्छा से काम कर रहे हैं या नहीं?”


इसके बाद शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी विधायकों की तरफ से मुकुल रोहतगी ने दलीलें रखी. उन्होंने कहा, “जब सीएम फ्लोर टेस्ट पर जाने से बच रहा हो, तो यह सबूत होता है कि उसके पास बहुमत नहीं है. कांग्रेस पार्टी का इतिहास रहा है कि वह सत्ता के लिए देश में इमरजेंसी तक लगा सकती है. ऐसी ही कोशिश की जा रही है. बहुमत खो चुकी सरकार को 1 दिन भी सत्ता में रहने का हक नहीं है. लेकिन यहां कांग्रेस के वकील कह रहे हैं कि इस्तीफा देने वाले विधायकों की सीटों पर पहले चुनाव हो, फिर फ्लोर टेस्ट हो. यानी वो 6 महीने तक सत्ता में बने रहने का इंतजाम करना चाहते हैं.“ रोहतगी ने कोर्ट को याद दिलाते हुए कहा, “कर्नाटक के मामले में आधी रात को सुनवाई की गई थी. महाराष्ट्र के मामले में रविवार की सुबह सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की थी. दोनों ही बार 24 घंटे में फ्लोर टेस्ट करवाए जाने का आदेश दिया गया. ऐसा ही यहां भी होना चाहिए.“


विधानसभा स्पीकर के लिए पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, “यह चलती विधानसभा है. क्या यहां स्पीकर की अवहेलना कर गवर्नर यह आदेश दे सकते हैं कि विधानसभा को कैसे चलाया जाए? कोर्ट को भी ऐसा आदेश नहीं देना चाहिए. यह संवैधानिक पाप होगा.“


जजों ने उन्हें रोकते हुए कहा, “आप विधायकों के इस्तीफे पर फैसला नहीं ले रहे हैं. इसकी भी कोई समय सीमा होती है. आप या तो उसे स्वीकार कीजिए, या नामंजूर कर दीजिए. आपके यहां बजट सत्र को 10 दिन के लिए स्थगित कर दिया गया है. क्या बजट के बिना राज्य चल सकता है?”


इस टिप्पणी के जरिए कोर्ट ने साफ संकेत दे दिए कि विधानसभा की कार्यवाही को जिस तरह से टाला गया है, उसे कोर्ट उचित नहीं मान रहा. उसकी दूसरी चिंता यह भी है कि कांग्रेस के बागी विधायक, अपनी इच्छा से काम कर रहे हैं या नहीं? सुनवाई कल सुबह 10:30 बजे जारी रहेगी. इन बिंदुओं पर चर्चा के बाद कोर्ट राज्य में बहुमत परीक्षण पर आदेश दे सकता है. यह तय हो सकता है कि फ्लोर टेस्ट कब होगा और उसमें बागी विधायक शामिल होंगे या नहीं?