Plastic Mulching Technique for Vegetable Farming: जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के कारण धरती पर गर्मी बढ़ती जा रही है, जिससे पशुओं और इंसानों की समस्यायें तो बढ़ ही रही हैं, साथ ही धरती का जल स्तर गिरने के कारण मिट्टी भी अपनी नमी और उपजाऊ शक्ति खो रही है. ऐसी स्थिति में खेती करने के लिये ज्यादा पानी और खाद-बीज का खर्च आता है, इससे छोटे और सीमांत किसानों (Small farmers) के खर्च बढ़ते हैं. ऐसे में किसान चाहें तो आधुनिक खेती (Advanced Farming) की बेहतरीन तकनीक प्लास्टिक मल्चिंग (Plastic Mulching) को अपना सकते हैं. खेती की इस तकनीक (Farming Technique) में पौधों की मेड़ों पर रोपाई की जाती है और मेड़ समेत पौधों को प्लास्टिक फिल्म या प्लास्टिक शीट से ढंक दिया जाता है. इस तकनीक में फसल को कम पानी लगाने पर भी ढंके हुये पौधों को नमी मिलती रहती है. 




कलरफुल मल्चिंग के फायदे 
प्लास्टिक मल्चिंग शीट कई रंगों की होती है और हर रंग के अलग-अलग फायदे होते हैं. ये पूरी तरह किसानों के ऊपर है कि वो किस रंग की मल्चिंग लगाना चाहते हैं.


काले रंग की मल्चिंग- बागवानी फसलों की खेती करने वाले किसान काले रंग की मल्चिंग का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. इससे मिट्टी की नमी बरकरार रहता है. साथ ही खरपतवार से बचाव और जमीन के तापमान को नियंत्रित कर सकते हैं.


सिल्वर या सफेद मल्चिंग- काले रंग की तरह दूधिया रंग की मल्चिंग से जमीन में नमी कायम रहती है और खरपतवारों की भी रोकथाम होताी है. इस मल्चिंग के इस्तेमाल से जमीन का तापमान कंट्रोल रहता है.


पारदर्शी फिल्म- सर्दियों में भी सब्जियों की खेती के लिये प्लास्टिक मल्चिंग का प्रयोग कर सकते हैं, जिससे पौधों को नमी के साथ सूरज की रोशनी भी मिल जाती है. 


कैसे करें इस्तेमाल
प्लास्टिक मल्चिंग का इस्तेमाल करने से पहले फसल की बुवाई या रोपाई मेड़ों पर की जाती है. इसमें मेड़ों की चौड़ाई 90 सेमी. से 180 सेंमी. के बीच रखनी चाहिये, जिससे मिट्टी और पौधों पर ठीक प्रकार मल्चिंग की जा सके. बुवाई और रोपाई से पहले प्लास्टिक मल्चिंग मेड़ों पर बिछा दी जाती है और चारों कोनों को मिट्टी में दबा देते हैं, जिससे हवा चलने पर ये उड़े नहीं. इसके बाद मल्चिंग में छेद करके बुवाई और रोपाई का काम किया जाता है. ऊपर से ड्रिप सिंचाई के लिये पाइप बिछा दी जाती है और मल्चिंग में छेद के हिसाब से ही पाइप में भी छेद किया जाता है. 


ये हैं मल्चिंग के फायदे



  • खेत में मल्चिंग की मदद से मिट्टी की नमी कायम रहती है और पानी का वाष्पीकरण नहीं होता.

  • इससे मिट्टी का कटाव नहीं होता, मिट्टी में भुरभुरा और मुलायम बनी रहती है.

  • मल्चिंग से खरपतवारों की संभावना कम कहती है और जड़ों की भी अच्छी बढ़वार होती है.




इन बातों का ध्यान रखें



  • वैसे तो प्लास्टिक मल्चिंग काफी टिकाऊ तकनीक है, लेकिन इसे ज्यादा दिनों तक चलाने के लिये मजबूत शीट या फिल्म खरीदें, जिससे दबाव पड़ने पर शीट फटे नहीं.

  • प्लास्टिक मल्चिंग को लगाते समय मिट्टी पर ज्यादा दबाव न बनायें.

  • मल्चिंग के बाद प्लास्टिक शीट में ध्यान से छेद करें, जिससे ड्रिप सिंचाई भी पौधों को मिल सके.

  • राजस्थान की रेतीली और बंजर जमीन के लिये प्लास्टिक मल्चिंग किसी वरदान से कम नहीं है.


75% सब्सिडी का ऑफर
राजस्थान जैसे कम पानी वाले राज्यों में प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक (Plastic Mulching Technique) सफल साबित हो रही है. प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक (Plastic Mulching Technique) को ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुंचाने के लिये राजस्थान सरकार (Rajasthan Government) ने 75% सब्सिडी का प्रावधान रखा है. जिसके तहत लघु और सीमांत किसानों को प्रति हेक्टेयर खेत में प्लास्टिक मल्चिंग यूनिट (Plastic Mulching Unit) लगाने के लिये 24,000 रुपए तक का आर्थिक अनुदान (Financial Help) दिया जायेगा. पहले संरक्षित मिशन योजना (Government Scheme) के तहत सिर्फ 50% सब्सिडी दी जाती थी, जिसमें किसानों को सिर्फ 16,000 रुपये दिये जाते थे. जिसे बाद में 25% और बढ़ाया गया है.


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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