Oil based Caster farming in Uttar Pradesh: भारत औषधीय फसलों की खेती (Herbal Farming)  का रकबा बढ़ता जा रहा है. केंद्र और राज्य सरकार मिलकर किसानों को इनकी कम लागत वाली खेती के जरिये अधिक मुनाफा कमाने के लिये प्रोत्साहित कर रही है. इन्हीं औषधीय फसलों में शामिल है अरंडी (Castor Farming), जिसकी खेती तेल निकालने के उद्देश्य से की जाती है.


उत्तर प्रदेश का बागवानी विभाग (Department of Horticulture and Food Processing) भी राज्य के किसानों को अंरडी और इसकी खेती की अहमियत समझाने में लगा हुआ है. बता दें कि अरंडी के फलों से करीब  60 फीसदी तेल (Castor Oil Production) का निष्कासन होता है, जिसका इस्तेमाल औषधी से लेकर कई दूसरे कामों में किया जाता है. 


क्या है अरंडी
अरंडी एक व्यावसायिक फसल है, जिसके झाडीनुमा पौधों की अच्छी बढ़वार के बाद बीजों का उत्पादन मिलता है. ये वही बीज हैं, जिनसे अरंडी का तेल निकालकर वार्निश, कपड़े की डाई और साबुन बनाने के साथ-साथ बालों के लिये औषधीय तेल, पेट दर्द जैसी समस्याओं के अलावा बच्चों की मालिश में भी इस्तेमाल किया जाता है.


इसके बीजों से तेल निकालने के बाद इसकी खली को जैविक खाद के रूप में भी प्रयोग किया जाता है. बता दें कि ये तेल शून्य तापमान में भी जमता नहीं है. यही कारण है कि बिना नुकसान  के अरंडी की खेती और तेल प्रोसेसिंग के जरिये किसान साधारण फसलों से अधिक आमदनी कमा सकते हैं.



अरंडी के लिये जलवायु 
अरंडी की खेती की सबसे अच्छी बात यह है कि इसे उगाने के लिये अधिक संसाधनों की जरूरत नहीं होती, बल्कि कम उपजाऊ और जमीन और कम पानी में भी इसकी फसल लहलहा उठती है. इसकी खेती के लिये 6 पीएम मान वाली मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है, जिसमें जल निकासी की व्यवस्था करके ही खेती होती है.


इतना ही नहीं, सामान्य के साथ-साथ आर्द्र और शुष्क तापमान में इसके पौधे तेजी से बढ़ते हैं. खासकर तीव्र तापमान अरंडी की खेती के लिये किसी वरदान के समान है.




अरंडी के लिये सही समय
खरीफ फसल चक्र के दौरान ही अरंडी की खेती के लिये जमीन तैयार की जाती है. किसान चाहें तो नर्सरी में इसकी उन्नत किस्मों से पौधे तैयार कर सकते हैं या फिर जून से अगस्त तक इसे बीजों को सीड ड्रिल मशीन (Castor Farmer from Seed Drip Machine) से खेतों में लगा सकते हैं. 



  • प्रति हेक्टेयर खेत में अरंडी उगाने के लिये करीब 20 किलोग्राम बीजों की जरूरत होती है, जिनके बेहतर अंकुरण के लिये मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों से भरपूर वर्मी कंपोस्ट के साथ-साथ सल्फर और जिप्सम डाला जाता है.

  • अरंडी के बीजों के बेहतर अंकुरण और पौधों के विकास के लिये हर 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिये, जिसके लिये टपक सिंचाई तकनीक (Drip Irrigation for Castor Farming) अधिक किफायती साबित होगी.




अरंडी से आमदनी
वैसे तो अरंडी की देसी प्रजातियां किसानों को काफी अच्छा उत्पादन देती है, लेकिन इसकी व्यावसायिक खेती (Commercial Farming of Castor) के लिये उत्तर प्रदेश के किसान हाइब्रिड किस्मों (Hybrid Varieties of Castor) से बागवानी कर रहे हैं. भारत में इसके बीजों के साथ-साथ इसके देल की भी काफी मांग रहती है. 



  • चीन और जापान के बाद भारत को अरंडी के तेल (Castor Oil) का तीसरा बडा उत्पादक देश कहते हैं, जहां से कई देशों में अरंडी का तेल निर्यात (Castor Oil Export) किया जाता है.

  • वैसे तो राज्यावर मंडियों में अरंडी के भाव (Castor Price in Market)  में काफी अंतर होता है, लेकिन औसतन 5400 से 7300 रुपये प्रति क्विटल तक के भाव पर किसानों से इसकी खरीद की जाती है. 




Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


इसे भी पढ़ें:-


Subsidy Offer: किसानों के लिये सुनहरा मौका! ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिये मिलेगी 70,000 की सब्सिडी, इस तरह उठायें लाभ


Lemon Farming: किसानों को लखपति बना सकता है नींबू का ये खास फॉर्मूला, बस खेती के समय इन बातों का रखें ध्यान