Sesame Farming: यूं ही नहीं तिल को सफेद सोना कहते हैं, ये सावधानियां अपनाकर किसान कमा सकते हैं मोटा मुनाफा
Process of Sesame Til Farming: तिल की बुवाई के समय ही अग्रिम समाधान करके फसल में कई प्रकार के जोखिम और उनकी संभावना को कम किया जा सकता है.
Precaution Suring Sesame Cultivation: तिल को खरीफ सीजन की प्रमुख तिलहनी (Oil seed Farming) और नकदी फसल कहते हैं, जिसकी खेती के लिये अधिक उपजाऊ जमीन की जरूरत नहीं होती, बल्कि कम पानी वाली रेतीली दोमट मिट्टी में भी फसल उगाकर शानदार कमाई कर सकते हैं. तिल की फसल (Sesame Crop) से अच्छा उत्पादन लेने के लिये बुवाई, खरपतवार प्रबंधन, सिंचाई व्यवस्था से लेकर कीट-रोग प्रबंधन और कटाई तक सभी काम बेहतर ढंग और सावधानीपूर्वक करना बेहद जरूरी है.
खासकर मानसून के बाद तिल की फसल में कीड़ों का प्रकोप बढ़ जाता है, इसलिये तिल की बुवाई के समय ही अग्रिम समाधान करके इनकी संभावना को कम किया जा सकता है.
तिल की खेती में सावधानियां (Precautions in Sesame Farming)
तिल की खेती (Sesame Cultivation) साल में तीन बार की जाती है, लेकिन खरीफ सीजन (Kharif Season) में मानसून के दौरान इसकी बुवाई करने पर अनोखे फायदे मिलते हैं, इसलिये जून से लेकर जुलाई तक तिल की बुवाई का काम निपटा लेना चाहिये.
- तिल की अच्छी पैदावार के लिये फसल में उचित पोषण प्रबंधन (Crop Nutrition Management)का काम करें और बुवाई के समय ही 52 किग्रा. यूरिया, 88 किग्रा डीएपी और 35 किग्रा. म्यूरिएट ऑफ पोटाश को मिट्टी में मिला देना चहिये.
- एक हेक्टेयर खेत में तिल की खेती करने के लिये करीब 5-6 किलोग्राम बीजों की जरूरत होती है, जिन्हें बीज उपचार के बाद ही इस्तेमाल करना चाहिये.
- ध्यान रखें कि बीज उन्नत किस्म और रोगरोधी हों, जिससे फसल में जोखिम की संभावनाओं को कम किया जा सकता है.
- बीजों की बुवाई कतार यानी लाइनों में ही करें, जिससे निराई-गुड़ाई से लेकर दूसरे कृषि कार्य करने में भी आसानी रहे.
- खेत में बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई का काम करते रहें, जिससे मिट्टी में नमी कायम रहे और फसल का सही अंकुरण हो सके.
- वैसे तो तिल की फसल वर्षा आधारित होती है, लेकिन मानसून के बाद भी फसल में आवश्यकतानुसार पानी लगा देना चाहिये.
- फसल में खरपतवारों की संभावना तो रहेगी ही, इसये 15 से 20 दिनों के अंदर पहले निराई-गुड़ाई और 30 से 35 दिन के भीतर दोबारा प्रबंधन (Crop Management) का काम कर लें.
- विशेषज्ञों की मानें तो तिल की फसल में कीड़े और बीमारियों की संभावना बनी ही रहती है, इसलिये फसल की निगरानी करते रहें और लक्षणों को पहचानकर रोकथाम के उपाय करें.
- अकसर पत्ती लपेटक और फली बेधक कीड़े फसल की क्वालिटी को खराब करते हैं, इनसे फसल का उत्पादन भी 30 से 40 प्रतिशत तक गिर सकता है.
- इसकी रोकथाम के लिये फसल पर क्यूनालफास 25 ई.सी. की 1.25 लीटर मात्रा या मिथाइल पैराथियान 2% पाउडर की 25 किग्रा मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से फसल पर छिड़के.
- तिल की खेती के साथ दूसरी फसलों की अंतरवर्तीय खेती (Co-Cropping) करने पर अधिक लाभ मिलता है. इससे मिट्टी का पोषण (Soil Health) और फसल की उत्पादकता (Sesame Production) बेहतर बनी रहती है.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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