Advisory for Grasshoppers in Kharif Crops: खरीफ सीजन (Kharif Farming Season)की ज्यादातर फसलों की बुवाई का काम मानसून(Monsoon) में ही किया जाता है. कुछ फसलों की अगेती बुवाई का काम मई-जून के बीच ही कर लिया है, जिसके बाद जुलाई के अंत तक इन फसलों में काफी विकास हो जाता है. चिंता की बात तो यह है कि बारिश के बाद खेतों में कई प्रकार के कीड़े-मकोड़ों का खतरा मंडराता रहता है. ये कीड़े फसलों में बैठकर न सिर्फ कीटों की संख्या बढ़ाते हैं, बल्कि फसल की पत्तियों चबाकर उन्हें नष्ट कर देते हैं.


इनकी रोकथाम (Pest Control)के लिये समय से पहले ही बचाव के उपाय करना फायदेमंद रहता है. बता दें कि इस मौसम में ग्रास हॉपर (Grass Hopper in Farm Field)नामक कीट का प्रकोप देख सकते हैं. राजस्थान (Rajasthan)और इससे सटे इलाकों में ग्रास हॉपर ने किसानों की चिंता को बढ़ा दिया है.


क्या है ग्रास हॉपर (What is Grass Hopper)
ये कीट टिड्डी की प्रजातियों में ही शामिल है, जिसका रंग हरा और भूरा होता है. ये कीट फसल की पत्तियों पर बैठकर उन्हें खा जाते हैं, जिससे पौधों का विकास रुक जाता है और पूरी फसल बर्बाद हो जाती है.  



  • ग्रास हॉपर के एंटीना की एक जोड़ी छोटी होती है और इनकी लंबाई 7 सेमी. तक हो सकती है.

  • ग्रास हॉपर की मादा प्रजाति सबसे ज्यादा नुकसानदेह होती है, जो फसल पर बैठकर 200 अंडे देती है.

  • ये कीड़े झुड़ में एक जगह से दूसरी जगह सफर करके फसलों पर हमला करते हैं और पत्तियों को किनारे से खा जाते है.

  • आम ग्रामीण भाषा में इसे फुदका कीट या फुदका रोग भी कहते हैं. 


ग्रास हॉपर का रासायनिक नियंत्रण (Chemical Pesticides for Grass Hoppers)
ग्रास हॉपर्स के नियंत्रण को लेकर कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि किसानों को फसल में निगरानी बढ़ा देनी चाहिये, जिससे ग्रास हॉपर्स को शिशु अवस्था में ही पहचाकर उसका नियंत्रण कार्य किया जा सके, क्योंकि ग्रास हॉपर्स को वयस्क अवस्था में नियंत्रित करना काफी मुश्किल काम हो जाता है और इनकी रोकथाम करते-करते फसलें नष्ट हो जाती हैं.



  • इसके समाधान के लिये राजस्थान कृषि विभाग ने ग्रास हॉपर यानी फड़का कीट की रोकथाम के लिये परामर्श भी जारी किया है, इसमें ग्रास हॉपर्स की संख्या बढ़ने पर रासायनिक कीट नियंत्रण (Chemical Pest Control) भूी कर सकते हैं.

  • इसकी रोकथाम के लिये सुबह और शाम के समय क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत (चूर्ण) की 25 किलोग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें.

  • किसान चाहें तो एक हेक्टेयर फसल के हिसाब से 1 लीटर क्यूनालफास 25 % (ई.सी.) या 25 किलो प्रति हेक्टेयर मेलाथियान 5 % (चूर्ण) का स्प्रे भी मददगार साबित होगा. 

  • खेत में बरसाती कीड़ों के नियंत्रण के लिये एक लाइट ट्रेप प्रति हैक्टेयर खेत में लगाकर अधिक नुकसान से बच सकते हैं.


ग्रास हॉपर का जैविक नियंत्रण (Organic Pesticides for Grass Hoppers)
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, ग्रास हॉपर या टिड्डियों का झुंड रात में फसलों को नुकसान नहीं पहुंचाता, बल्कि ये रात में शांत बैठे रहते है. ऐसे में इन्हें पकड़कर मुर्गियों और बतखों के दाने के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. इनके जैविक नियंत्रण के लिये परजीवी फफूंद, अलसी का तेल, मीठा सोडा, लहसुन की कलियां, जीरा और संतरा जैसे खाद्य पदार्थों के अर्क भी फसलों को नुकसान पहुंचाये बिना ही टिड्डियों और ग्रास हॉपर्स की रोकथाम करते हैं. 


पद्म श्री किसान ने सुझाये टिड्डी भगाने के उपाय (Grass Hopper Control Tips Tips by Padma Shri Awardee Farmer)
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जैविक खेती (Organic Farming) करने वाले पद्म श्री किसान चिंताला वेंकट रेड्डी (Padma Shri Farmer Chintala Venkat Reddy)ने टिड्डियों के जैविक नियंत्रण के लिये प्रभावी उपाय सुझाये है, जिनसे फसल को नुकसान पहुंचाये बिना ही ग्रास हॉपर्स का संकट रोक सकते हैं.



  • सबसे पहले खेत की जमीन से चार फुट नीचे से 30 से 40 किलो मिट्टी लें. ध्यान रखें कि मिट्टी में थोड़ी चिकनाई या नमी हो.

  • इस मिट्टी को 200 लीटर पानी में घोलकर 10 से 20 मिनट के स्थिर होने दें.

  • पानी के नीचे मिट्टी बैठ जाने के बाद इस पानी को छानकर फसल पर छिड़काव (Soil water Spray for Grass Hoppers) करें. इससे फसल टिड्डियों (Locusts) के खाने लायक नहीं रहती.

  • किसान चाहें तो बाद में पत्तियों पर सादा पानी का छिड़काव करके रेत की परत को हटा सकते हैं.

  • टिड्डी और ग्रास हॉपर्स (Grass Hoppers Advisory) को शोर मचाकर, उनके रास्ते में 50 फुट ऊंचा जाल लगाकर या चिड़ियों और हवाई जहाज उनके दल के बीच उड़ाकर भी इनकी समस्या को दूर कर सकते हैं. 


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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