Insect-diseases Control With Pesticides: फसल में कीट और रोगों के जोखिम के कारण ही फसल का उत्पादन (Crop Production)  प्रभावित होता है. इनकी रोकथाम के लिये कई किसान रासायनिक कीटनाशकों (Chemical Pesticides) का सहारा लेते हैं, लेकिन इनसे मिट्टी की सेहत (Soil Health) और फसलों की क्वालिटी (Crop Quality) पर बुरा असर पड़ता है. इन सभी समस्याओं के समाधान के लिये कृषि विशेषज्ञ कुछ खास कृषि से जुड़े प्रबंधन कार्यों (Crop Management Works) की सलाह देते हैं. इन कृषि कार्यों को करने पर पौधों में बढ़वार (Crop Development) तेजी से होती है और फसल में कीट-रोगों की संभावनाओं को भी कम कर सकते हैं.


बीज उपचार (Seed Treatment)
कीट-रोगों की समस्या से बचने के लिये रोग मुक्त प्रमाणित और रोग रोधी किस्मों से ही खेती करनी चाहिये. बुवाई से पहले बीजों का उपचार करने पर काफी हद तक मिट्टी के रोग और कीटों की संभावना कम हो जाती है. इसके फफूंदनाशी दवा, यूरिया, थीरम, कार्बेंडाजिम या विशेषज्ञ की सलाहनुसार दवाओं का प्रयोग करें.


रोपाई में सावधानी (Precaution in Plantation)
कभी-कभी नर्सरी में पौधों की ठीक से देखभाल नहीं हो पाती, जिस कारण नर्सरी के रोग खेतों तक पहुंच जाते है, इसलिये कृषि विशेषज्ञ नर्सरी में पौध संरक्षण पर ध्यान देने की सलाह देते हैं, जिससे उन्नत पौधों की रोपाई की जा सके और रोगमुक्त फसल का विकास तेजी से हो पाये. 



  • रोपाई में सावधानी बरतते हुये क्यारियों, मेड़ों और बैड बनाकर पौधों या बीजों को लाइनों में लगायें. 

  • अकसर पौधों की रोपाई के समय उचित दूरी ना रखने पर कीट-रोगों के लक्षणों का पता ही नहीं चल पाता. 

  • कम दूरी वाले पौधों में प्रकाश और ऑक्सीजन का संचार नहीं हो पाता, जिसके कारण भी यह समस्या पैदा होती है.

  • अकसर ज्यादा गहराई में भी बीजों को बोने पर मिट्टी जनित रोग और कीट बीजों पर हावी हो जाते हैं और पौधों को संक्रमित कर देते हैं.

  • इसलिये पौधों और बीजों की बुवाई संशोधन के बाद कम गहराई में ही करें.


खरपतवार प्रबंधन (Weed Management) 
फसल में समय-समय पर निराई-गुड़ाई करके खरपतवार और रोगग्रस्त पौधों को निकलकर नष्ट कर देना चाहिये, क्योंकि ये फसल में संक्रमण और कीटों के आकर्षण का कारण बनते हैं. रोगी पौधों और खरपतवारों के कारण फसलों तक खाद-उर्वरकों का पोषण नहीं पहुंच पाता और फसल की क्वालिटी गिर जाती है, इसलिये हर सिंचाई से पहले निराई-गुड़ाई और पोषण प्रबंधन अवश्य करना चाहिये.


पोषण प्रबंधन का रखें ध्यान (Crop Nutrition Management) 
अकसर कीट और रोग कमजोर फसलों को जल्दी पकड़ लेते हैं, इसलिये फसल में जैविक खाद और संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करना जरूरी है. इससे पहले मिट्टी की जांच जरूरी करवायें और उसी आधार पर फसलों में पोषक तत्वों की आपू्र्ति सुनिश्चित करें. बता दें कि पोषण प्रबंधन करने से फसलों में कई जोखिमों का रोकथाम कर सकते हैं.


मिट्टी की सेहत का रखें खास ख्याल (Take Care of  Soil Health)
अच्छे फसल उत्पादन के लिये मिट्टी की सेहत (Soil Health) का ख्याल रखना भी जरूरी है, इसलिये हर फसल की कटाई के बाद अवशेष प्रबंधन (Crop Residue Management) का कार्य ठीक प्रकार करें. फसल में पड़े पौधों के अपशिष्ट पदार्थों पर यूरिया या पूसा डीकंपोजर(Pusa Decomposer) छिड़क दें, जिससे ये गलाकर खाद का रुप ले सकें. इसके अलावा हरी खाद(Green Manure), नीम की खली (Neem Cake) और कार्बनिक पदार्थों से भी मिट्टी की संरचना को सुधार सकते हैं. इससे फसल में जलधारण शक्ति और उपजाऊ क्षमता भी बढ़ती है और मिट्टी की कमजोरी के कारण होने वाले रोगों की समस्या दूर हो जाती है.


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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