Rabi Crop Farming: भारत में रबी फसलों की खेती का काम लगभग शुरू हो चुका है. बारिश रुकने के बाद किसानों ने भी धान की कटाई (Paddy Harvesting) से लेकर चना, आलू, और सरसों की बुवाई के लिये रफ्तार बढ़ा दी है. इसी बीच आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR-IARI) ने भी कृषि एडवायजरी कर दी है. इसमें विशेषज्ञों ने चने की उन्नत किस्मों से बिजाई (Gram Cultivation) करने की सलाह दी है, ताकि फसल में कीट-रोगों से नुकसान की संभावनाओं को कम किया जा सके. वहीं आलू और सरसों की खेती (Mustard farming) के लिये भी जल्द से जल्द खेत की तैयारी और बुवाई करने की सलाह दी गई है. 


चना की खेती
चना रबी सीजन की एक प्रमुख नकदी फसल है, जिसकी खेती महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बुंदेलखंड में बड़े पैमाने पर की जाती है. चने की खेती के लिये ज्यादातर किसान पूसा चना मानव किस्म से बुवाई करते हैं. ये किस्म उकटा रोगरोधी है, जिससे करीब 3 टन प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन ले सकते हैं.


वैज्ञानिकों ने महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बुंदेलखंड के अलावा राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए पूसा चना-10216 (PGM 10246) और पूसा चना-4005 किस्में विकसित की है. धान की कटाई के बाद इन किस्मों से बिजाई करने पर 108 से 110 दिनों में फसल तैयार हो जाती है. खासकर पूसा चना 3043 किस्म से बुवाई करने पर 2.2 टन प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन मिलता है.


खेत की तैयारी
अक्टूबर में तेज बारिश के कारण कई इलाकों में खेत जलमग्न पड़े हैं. ऐसे में खेतों से पानी निकालकर अच्छी तरह से साफ-सफाई कर लें. खेतों में मेड़ों, नालों, खेत के रास्तों व खाली खेतों को साफ-सुथरा करें, जिससे जल निकासी हो सके. अकसर खेतों में साफ-सफाई ना होने के कारण खरपतवारों के साथ-साथ कीटों के अंडे और फसल के रोगों की संभावना भी बढ़ जाती है.


इम समस्याओं की रोकथाम के लिये खेत में जुताई के समय सड़े गोबर की खाद और नीम की खली का प्रयोग कर सकते हैं. इससे मिट्टी क भौतिक गुणों के सुधारने मदद मिलती है. साथ ही मिट्टी की जल धारण क्षमता भी बेहतर रहती है. इससे भूजल स्तर भी कायम रहता है और नमी बने रहने से अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती.


सरसों की बुवाई
मौसम पूर्वानुमान को ध्यान में रखते हुये किसान सरसों की बुवाई शुरू कर सकते हैं. इसके लिये सरसों की उन्नत किस्में जैसे पूसा सरसों-25, पूसा सरसों-26, पूसा अगर्णी, पूसा तारक, पूसा महक का चुनाव करें. 



  • सरसों की बुवाई के लिये प्रति एकड़  2.0 किलो ग्राम बीजदर काफी रहती है. सरसों की बुवाई से पहले खेतों में नमी होनी चाहिये, जिससे बीजों का सही अंकुरण हो सके.

  • सरसों की बुवाई से पहले बीजों को थीरम या केप्टान की 2.5 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीजों का उपचार कर लें, जिससे मिट्टी की कमियां फसल पर हावी न हों.

  • विशेषज्ञों के मुताबिक, सरसों की कम फैलने वाली किस्मों के लिये लाइनों के बीच 30 सेमी. और अधिक फैलने वाली किस्मों के लिये 45-50 सेमी. कतारों में दूरी रखकर बिजाई करें.

  • इस बीज पौध से पौध की दूरी 12-15 सें.मी. रखनी चाहिये, जिससे फसल की निगरानी और खरपतवार प्रबंधन में आसानी रहे.


आलू की खेती
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक 15 अक्टूबर तक का समय आलू और सरसों की बुवाई के लिये सबसे उपयुक्त रहता है. इस समय बुवाई करके समय से पैदावार और अच्छा उत्पादन मिल जाता है. इसी तरह आलू की अगेती खेती करके भी किसान 60 से 90 दिनों के अंदर अच्छा उत्पादन (Potato Farming) ले सकते हैं. इसके लिये जरूर है कि उन्नत किस्मों (Top Potato Varieties) का चयन किया जाये. किसान चाहें तो आलू की कुफरी सूर्या किस्म की बुवाई करके भी समय से पैदावार ले सकते हैं, जिसके बाद गेहूं की पछेती बुवाई (Wheat Farming) भी की जा सकती है.   


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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