Alasi Ki Kheti: आज तिलहनी फसलों के उत्पादन के लिये भारत का नाम टॉप पर आता है. किसान भी जी-तोड़ मेहनत करके तिलहनी फसलों (Oilseed Production) की अच्छी पैदावार ले रहे हैं. इस बीच सरकार भी किसानों को तरह-तरह की योजनाओं के जरिये आर्थिक सहायता पहुंचा रही है.


आने वाला रबी सीजन (Rabi Season 2022) तिलहनी फसलों की खेती के लिये सबसे अच्छा रहता है. इस बीच सूरजमुखी से लेकर सरसों, राई, तारामीरा की खेती तक बड़े पैमाने पर की जाती है, लेकिन आज हम ऐसी फसल की बात कर रहे हैं, जिसे सिर्फ तिलहनी फसल ही नहीं बल्कि सुपर फूड और मेडिसिन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.


हम बात कर रहे हैं अलसी (Linseed Cultivation) के बारे में, जिससे कम पानी में भी खेती करके 10 से 15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक पैदावार ले सकते हैं. भारत में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा और बिहार को प्रमुख अलसी उत्पादक राज्य कहते हैं. यहां के किसान भी कम लागत में असली की खेती (Linseed Cultivation) करके काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.


अलसी के लिये मिट्टी
अलसी की फसल से बेहतर उत्पादन के लिये मिट्टी की जांच (Soil Test) करवाने की सलाह दी जाती है. इसकी खेती के लिये काली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी रहती है. इसमें बुवाई से पहले मिट्टी को जैविक विधि से तैयार करके उपजाऊ बनान चाहिये. इसके बाद जल निकासी की व्यवस्था करके खेतों को तैयार किया जाता है. 


अलसी के लिए जलवायु
अलसी एक सर्द मौसम की फसल है. भारत में रबी सीजन के दौरान इसकी बुवाई की जाती है. खासकर अक्टूबर से लेकर नवंबर तक का समय असली की खेती के लिये सबसे उपयुक्त रहता है. विशेषज्ञों के मुताबिक, अलसी के बीजों को लगाने के बाद करीब 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान और और बीजों के जमाव के लिये 15 से 20 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान ही सही रहता है. इसके अलावा सर्द मौसम में इसकी फसलों का काफी बेहतर विकास हो जाता है.


अलसी की उन्नत किस्में
अलसी की खेती से बेहतर उत्पादन के लिये उन्नत किस्मों से बुवाई करने की सलाह दी जाती है. वैज्ञानिकों ने सिंचित और असिंचित इलाकों के लिये मिट्टी और जलवायु के अनुसार किस्में निर्धारित की है.



  • सिंचित इलाकों के लिये सुयोग, जेएलएस- 23, पूसा- 2, पीकेडीएल- 41, टी- 397 आदि से बुवाई की जाती है. ये किस्में करीब 13 से 15 क्विंटल तक उत्पादन देती है.

  • वहीं असिंचित इलाकों के लिये शीतल, रश्मि, भारदा, इंदिरा अलसी- 32, जेएलएस- 67, जेएलएस- 66, जेएलएस- 73 आदि प्रमुख किस्में 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार देती है.

  • सभी इलाकों के हिसाब से अलसी की  पीकेडीएल 42, जवाहर अलसी 552, जे. एल. एस.- 27, एलजी 185, जे. एल. एस.- 67, पीकेडीएल 41, जवाहर अलसी- 7, आरएल- 933, आरएल- 914, जवाहर- 23, पूसा 2 आदि किस्में है.




अलसी की बुवाई
अलसी की बुवाई के लिये छिड़काव विधि और कतार विधि का प्रयोग किया जाता है. किसान चाहें तो खेतों में बीजों को छिड़कर या सीड ड्रिल मशीन से लाइनों में असली की बिजाई कर सकते हैं. इसके लिये करीब 25 से 30 क्विंटल तक बीजों की आवश्यकता पड़ती है.


इनकी बिजाई के लिये लाइनों के बीच 30 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 5 से 7 सेंटीमीटर रखी जाती है. इसके अलावा बीजों को करीब 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिये. फसल को खरपतवार और कीट-रोगों से मुक्त रखने के लिये बुवाई से पहले करीब 2.5 से 3 ग्राम कार्बेंडाजिम से प्रति किलोग्राम बीजों को उपचारित किया जाता है. 
  
फसल की देखभाल
अकसर अलसी की फसल में अल्टरनेरिया झुलसा, रतुआ या गेरुई, उकठा एवं बुकनी रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है. इनकी रोकथाम के लिये लगातार निरगानी और विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार छिड़काव करने की सलाह दी जाती है.



  • इसके लिये बुवाई के 45 दिन बाद 2.5 किग्रा. मैंकोजेब को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से हर 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें. 

  • वहीं रतुआ या गेरुई तथा बुकनी रोग की रोकथाम के लिए 3 किग्रा घुलनशील गंधक को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़क सकते हैं.


अलसी की पैदावार
अलसी एक मध्यम अवधि की तिलहनी फसल (Oilseed Crop) है, जो बिजाई के करीब 100 से 120 दिनों के अंदर पककर तैयार हो जाती है. जब फसल पकने के बाद सूख जाती है तो इसकी कटाई और हाथों-हाथ मड़ाई का काम किया जाता है. इसका उत्पादन (Oilseed Production) पूरी तरह खेती करने के तरीके और किस्म और इलाकों पर निर्भर करता है. किसान चाहें तो इसकी जैविक खेती (organic Farming)  करके 20 से 23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक अलसी के बीज(Linssed), 13 से 17% अलसी का तेल (Linseed Oil)और 38 से 45% तक रेशे का उत्पादन ले सकते हैं. 


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


इसे भी पढ़ें:-


World Cotton Day 2022: रोटी से लेकर कपड़ा तक मेन रोल अदा करता है कपास, किसान भी जान लें कपास से जुड़ी ये खास बातें


Animal Feed: पशुओं का दूध बढ़ाने के लिए आ गया सबसे बेस्ट 'हेल्थ सप्लीमेंट', खिलाते ही दिखने लगेगा असर