Chicken Vaccination: देश में पोल्ट्री का बाजार करीब 2 लाख करोड़ का है. दिन पर दिन अंडे और चिकन की मांग बढ़ती जा रही है. घरेलू आपूर्ति के साथ-साथ अब विदेशी बाजार का जिम्मा भी देश के पोल्ट्री फार्म्स पर है. इसके विस्तार के लिए कई राज्यों में नए पोल्ट्री फार्म्स भी बनाए जा रहे हैं. किसानों को मुर्गी पालन करने के लिए अनुदान भी दिया जा रहा है. इसी के विपरीत सोशल मीडिया पर अफवाहों का बाजार गर्म होता जा रहा है. ऐसी खबरें आ रही हैं कि मुर्गियों को समय से पहले मैच्योर बनाने और उनका वजन बढ़ाने के लिए एंटी-बायोटिक इंजेक्शन लगाए जा रहे हैं, जिसका असर चिकन और अंडे पर भी होता है. इस बात में कितनी सच है? इसका खुलासा हुआ है किसान तक की रिपोर्ट में, जिसमें वैज्ञानिक और पोल्ट्री एसोसिएशन, दोनों के विचार अलग-अलग हैं.
क्या सच में मुर्गियों को खिलाई जा रही एंटीबायोटिक दवा?
इस सवाल का जवाब है हां. मुर्गियों को सच में एंटीबायोटिक दवा और इंजेक्शन लगाए जाते हैं, लेकिन इनका मकसद ब्रायलर चिकन का वजन बढ़ाना नहीं होता, बल्कि उन्हें बीमारियों से बचाना होता है.
इस मामले में पोल्ट्री फेड फेडरेशन ऑफ इंडिया का कहना है कि सोशल मीडिया पर कई प्रकार की भ्रामक खबरें आ रही है, जिसमें कहा जा रहा है कि दवाईयां खिलाकर ब्रायलर चिकन का वजन बढ़ाया जाता है या मुर्गी से अधिक अंडे लेने के लिए इंजेक्शन लगाए जाते हैं, जबकि सच्चाई काफी अलग है.
असल में एंटीबायोटिक और इंजेक्शन का इस्तेमाल मुर्गियों को बर्ड फ्लू और वातावरण के तमाम बैक्टीरियल इंफेक्शन से बचाने के लिए किया जाता है. कई बार बीमार होने पर दवाई भी दी जाती है, लेकिन साथ में मुर्गियों शाकाहारी पोल्ट्री फीड भी दी जाती है. इससे अंडा-चिकन खाने वाले पर कोई गलत असर नहीं होता.
लागत कैसे निकालेंगे किसान?
किसान तक की रिपोर्ट में पोल्ट्री फेड फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष ने बताया कि यदि मुर्गियों का वजन बढ़ाने के लिए महंगी दवाए खिलाई जाएंगी तो ब्रायलर चिकन की लागत बढ़ जाएगी. फिर 100 रुपये किलो के भाव बिकने वाले चिकन में से किसान अपना खर्चा कैसा निकालेंगे.
इसी बात पर पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अशोक कुमार तिवारी बताते हैं कि किसी भी रिसर्च या जांच में यह बात नहीं आई है कि चिकन को एंटीबायोटिक खिलाने या इंजेक्शन देने पर अधिक अंडा मिलता हो या चिकन का वजन बढ़ जाता हो, हालांकि बीमारियों से बचाने के लिए पोल्ट्री फार्म्स में यह रुटीन वर्क है.
मुर्गियों को दवा खिलाना है प्रतिबंधित
सेंट्रल एवियन रिसर्च इंस्टी्ट्यूट के डायरेक्टर अशोक कुमार तिवारी ने बताया कि सोशल मीडिया पर ट्रेंड हो रही खबरों का कोई मतलब नहीं है. चिकन का वजन या अंडे का उत्पादन बढ़ाने के लिए ऐसी कोई एंटीबायोटिक या इंजेक्शन नहीं है और बीमारियों से बचाने के लिए भी जो समय-समय पर वैक्सीनेशन किया जाता है, उससे अंडा या चिकन खाने वाले को कोई नुकसान नहीं होता.
ऐसी बातों का कोई आधार नहीं है, हालांकि कई लोग वैक्सीनेशन का खर्चा बचाने के लिए मुर्गी और मुर्गों को चोरी छिपे एंटीबायोटिक दवा जरूर खिलाते हैं, जिसका मकसद मुर्गियों को स्वस्थ रखना है, ताकि मुर्गियों में कोई इंफेक्शन ना फैले और वो मरे नहीं. यदि ऐसा होता है तो मुर्गी पालकों को आर्थिक नुकसान झोलना पड़ जाता है.
रही बात एंटीबायोटिक की तो इस तरह की दवाओं को सरकार ने प्रतिबंधों की श्रेणी में डाला है, लेकिन कुछ ही लोग ऐसे होंगे, जो इनका इस्तेमाल करते होंगे, इससे मुर्गी का वजन बढ़ने या अंडे का अधिक उत्पादन मिलने से कोई ताल्लुक नहीं है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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