Organic Vaccine for better Crop Production: फसलों में पोषण की कमी को दूर करके उनका उत्पादन (Crop Production) बढ़ाने के लिये कई प्रकार की खाद और उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाता है. इससे मिट्टी के जीवांशों में वृद्धि होती है, जिससे मिट्टी के साथ फसलों की गुणवत्ता भी कायम रहती है. वैसे तो पोषण प्रबंधन (Nutrition Management in Crop) करने के कई तरीके और कई दवायें बाजार में मौजूद हैं, लेकिन रासायनिक विधियां फसलों को नुकसान पहुंचा सकती है, इसलिये विशेषज्ञ जैविक तरीकों को अपनाने की सलाह देते हैं.
इन तरीकों में जैविक खाद (Organic Manure), जैविक उर्वरक(Organic Fertilizer), हरी खाद (Green Manure) और जैविक एंजाइम्स (Organic enzymes)का इस्तेमाल करके फसलों का टीकाकरण (Crop Vaccineation) किया जाता है. समय-समय पर फसलों का जैविक टीकाकरण (organci Vaccination for Crop) करने से मिट्टी, फसल और किसानों को काफी फायदा हो सकता है.
अजोला टीका
अजोला एक नाइट्रोजन से भरपूर जैविक एंजाइम होता है. इसका इस्तेमाल धान की फसल में जैविक खाद के रूप में करने पर नाइट्रोजन की कमी दूर होती है और धान की फसल का क्वालिटी उत्पादन लेने में अलोजा काफी मददगार है. बता दें कि अजोला की मदद से प्रति एकड़ फसल पर 10-12 किलोग्राम नाइट्रोजन की आपूर्ति कर सकते हैं. ये पूरी तरह से जैविक होता है, जिसे धान की फसल के साथ भी उगा सकते हैं.
नील हरित शैवाल टीका
धान एक नकदी फसल है, जिसका उत्पादन बढ़ाने के लिये नाइट्रोजन एक अहम साधन है. इस साधन की आपूर्ति करने के लिये फसल में नील हरित शैवाल का प्रयोग किया जाता है, जिससे मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों और पौधों के विकास करने वाले तत्वों की कमी को दूर कर सकते हैं. इसका इस्तेमाल धान के बीजों का उपचार और उर्वरक के तौर पर किया जाता है. प्रति एकड़ फसल पर धान की बिजाई के लिये 500 ग्राम नील हरित शैवाल काफी रहता है. ये फसल में करीब 8-12 किलोग्राम नाइट्रोजन की आपूर्ति करता है.
कम्पोस्ट वैक्सीन
कार्बनिक पदार्थों से भरपूर वर्मीकंपोस्ट के फायदों से भला कौन अंजान है. ऊपर से कंपोस्ट वैक्सीन का इस्तेमाल करके 6 से 9 महीनों के अंदर चावल के भूसे की खाद बनाई जाती है, जिसकी मदद से प्रति एकड़ फसल पर 20 से 40 किग्रा. तक नाइट्रोजन की आपूर्ति कर सकते हैं. कंपोस्ट वैक्सीन का एक पैकेट 500 का होता है, जो एक टन धान के अवशेषों की खाद बनाने में काम आता है.
हरी खाद
उत्पादन और मुनाफे के मामले में रासायनिक खाद-उर्वरकों को टक्कर देने वाली हरी खाद की खेती (Green Manure) साल में एक बार जरूर करनी चाहिये. बता दें कि हरी खाद में ढेंचा, सनई जैसी खाद वाली फसलों के अलावा दलहनी फसलों (Pulses crop) के अवशेष, पेड़ की पत्तियां और खरपतवार का प्रयोग करके खाद बनाई जाती है, जिसका इस्तेमाल बुवाई के बाद किया जाता है. बता दें कि दलहनी फसलों की मदद से 10-25 टन हरी खाद (Benefits of Green Manure )बना सकते हैं, जिसमें 40 किग्रा तक नाइट्रोजन की मात्रा होती है.
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