Areca Nut Production: किसानों को होने वाली फसलों का नुकसान नहीं रुक रहा है. देश के अलग अलग स्टेट में कीट ही फसलों को बर्बाद कर रही हैं. महाराष्ट्र के कई जिलों में पपीते की फसल फंगल वायरस के हमले से बबाद हो गई थी. किसानों की लाखों रुपये के पपीते बर्बाद हो गई. अब ऐसी ही तस्वीर कर्नाटक से सामने आई है. यहां सुपारी के पेड़ों पर कीटों का हमला बढ़ा है. यहां करोड़ों रुपये की किसानों की सुपारी की फसल बर्बाद हो गई है. किसानों के लिए अच्छी बात यह है कि स्टेट गवर्नमेंट किसानों की मदद के लिए आगे आई है.
कर्नाटक सरकार ने जारी की 10 करोड़ रुपये की सब्सिडी
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने सुपारी के पौधों पर हमला करने वाले कीटों के हमले से निपटने के लिए 10 करोड़ रुपये की सब्सिडी जारी कर दी है. किसान सब्सिडी की मदद से कीटनाशक रसायन खरीद सकेंगे. खेतों मेें फसल पर छिड़काव कर लेंगे.
इन कीटों का हुआ है हमला
महाराष्ट्र में फंगल वायरस के अटैक के कारण पपीते की फसल को नुकसान हुआ था. वहीं कर्नाटक मेें मीलीबग्स, स्केल्स और स्पाइडर माइट्स जैसे कीटों ने सुपारी के पेड़ों पर हमला कर दिया है. इससे सुपारी के पेड़ बर्बाद हो रहे है. किसानों को डर है कि फसल उत्पादन कम होने से उन्हें आर्थिक रूप से नुकसान होगा. वहीं बाजार में सुपारी के दाम अधिक होने से आम आदमी को जेब अधिक ढीली करनी पड़ेगी.
कीट इस तरह कर रहे नुकसान
एक्सपर्ट का कहना है कि सुपारी पर कीट हमला करते हैं. कीट तने और पत्तियों से रस चूसकर पौधे को चित्तीदार बना देते हैं. जल्द ही दवा का छिड़काव न किया जाए और साफ सफाई न की जाए तो सुपारी की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. बाद में ये सूखकर जमीन पर गिर जाती हैं.
इन क्षेत्रों में उपयोग होगी धनराशि
मुख्यमंत्री ने बताया कि स्टेट गवर्नमेंट की ओर से जो धनराशि जारी की गई है. उसका प्रयोग चिकमंगलूर, शिवमोग्गा और मलनाड जिले में कीटों के हमले सेबचाव के लिए किया जाएगा. दूसरी ओर केंद्र सरकार की टीम ने पहले ही चिकमंगलूर में स्टडी की है. दरअसल, बारिश और हवा से कीट के एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक पहुंचने में तेजी आई है. अब स्टेट गवर्नमेंट कीटों के खात्मे के लिए कीटनाशक दवा का छिड़काव कराएगी.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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