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Banana Farming: बारिश सहने के बावजूद खतरे में है 'प्राइड ऑफ बिहार' नामक ये केला, कारण जानकर हैरान रह जायेंगे

Aromatic Banana Cultivation: मालभोग केले में बारिश को सहन करने की अद्भुत क्षमता होती है, लेकिन जलवायु परिवर्तन और बढ़ते बीमारियों के प्रकोप से इसका उत्पादन खतरे में है.

Pride of Bihar 'Malbhog Banana': भारत में केले की खेती (Banana Farming) बड़े पैमाने पर की जाती है, जहां सिर्फ 20 प्रजातियां व्यावसायिक (Commercial Farming of Banana) उद्देश्य से उगाई  जाती हैं. इसमें से कई केले की प्रजातियां (Banana Varieties) ऐसी भी है, जिनकी मुरीद पूरी दुनिया बन चुकी है. इन्हीं प्रजातियों में से एक है 'प्राइड ऑफ बिहार' (Pride of Bihar) के नाम से मशहूर केला मालभोग, जो सुगंधित केले (Aromatic Banana) शानदार प्रजाति है. बता दें कि केले की ये प्रजाति बारिश को सहन करने की अद्भुत क्षमता रखती है, लेकिन अब जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण बढ़ते बीमारियों के प्रकोप के चलते इसका उत्पादक खतरे में पड़ गया है.

इन बीमारी की चपेट में है मालभोग केला (Disease in Malbhog Banana)
रिपोर्ट्स के मुताबिक मालभोग केला की फसल में पनामा विल्ट रोग का संकट मंडरा रहा है, जिसके कारण केले की ये सुगंधित किस्म अब सिर्फ वैशाली और हाजीपुर के 15 से 20 गांव तक सिमट कर रह गई है. बता दें कि ये मालभोग केला सिल्क समूह (Silk Group Banana) से ताल्लुक रखता है, जिसमें रसथली, मोर्तमान, रासाबाले, एवं अमृतपानी आदि प्रजातियां भी शामिल है.

इस प्रजाति के फलों में जलवायु परिवर्तन के कारण फटने की संभावना बनी रहती है. इसके बावजूद कई सालों तक मालभोग केला ने बिहार के किसानों को काफी लाभान्वित किया था. फिल्हाल फ्यूजेरियम विल्ट जैसे कवक रोगों के कारण भी ये प्रजाति अब किसानों और दुनिया की पहुंच से दूर होती जा रही है.

Banana Farming: बारिश सहने के बावजूद खतरे में है 'प्राइड ऑफ बिहार' नामक ये केला, कारण जानकर हैरान रह जायेंगे

टिशु कल्चर से खेती करने पर फायदा (Malbhog Banana Farming from Tissue Culture Technique)
बिहार से दुनिया भर में पहुंचने वाली इस सुगंधित प्रजाति को बचाने के लिये कई अनुसंधान कार्य भी चल रहे हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक उतक संवर्धन यानी टिशू क्लचर तकनीक (Tissue Culture Technique)  से मालभोग केला की खेती करने पर किसानों को कई समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है.

रिपोर्ट्स की मानें तो डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय,पूसा ने इसके संरक्षण के लिये केला अनुसंधान केंद्र ,गोरौल में उतक संवर्धन प्रयोगशाला भी बनाई है, जिसके जरिये किसानों को टिशू कल्चर से पौधे तैयार करके दिये जायेंगे. इससे न सिर्फ बीमारियों की संभावनाओं कम कर सकेंगे बल्कि विलुप्ति की कगार पर खड़ी केले की इस शानदार प्रजाति को वापस जीवित किया जा सकेगा.

जानें 'प्राइड ऑफ बिहार' मालभोग केला की खासियत
मालभोग केला को दुनियाभर में इसके अनोखे स्वाद और खुशबू के लिये पहचाना जाता है, लेकिन मौसम की बेरुखी और बीमारियों के प्रकोप के कारण किसान इसकी खेती में कम दिलचस्पी ले रहे हैं. बाजार में मालभोग केला को 150 से 250 रुपये दर्जन के भाव पर बेचा जाता है.

  • मालभोग केला की फसल में तेज बारिश को सहने की शक्ति भी होती है.
  • इसका पौधा लम्बा, आकार में बड़ा, छाल पतली और पकने के बाद सुनहरी पीली हो जाती है. 
  • बिहार की मालभोग प्रजाति अपने स्वाद और खुशबू के साथ-साथ औसत आकार के कारण आसानी से पहचानी जा सकती है.
  • बता दें कि मालभोग केले के फल थोड़े सख्त होते हैं और पकने में थोड़ा समय लेते हैं. 
  • इसका इस्तेमाल फल और सब्जी दोनों तरीकों से किया जाता है और इससे कई स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाये जाते हैं.

Banana Farming: बारिश सहने के बावजूद खतरे में है 'प्राइड ऑफ बिहार' नामक ये केला, कारण जानकर हैरान रह जायेंगे

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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