Afeem in Arunachal Pradesh: पारंपरिक और नकदी फसलों के बजाय किसान बागवानी फसलों की तरफ रुख कर रहे हैं. इसके पीछे कई कारण हैं. एक तरफ पारंपरिक फसलें मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को कमजोर बना रही हैं. इनसे भूजल स्तर भी काफी हद तक गिरता जा रहा है. वहीं बागवानी फसलों की खेती से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति तो बढ़ती ही है, साथ ही मिट्टी की संरचना भी बेहतर बनी रहती है. इससे किसानों को काफी अच्छी आमदनी हो रही है. अरुणाचल प्रदेश के किसानों ने भी कुछ ऐसी ही पहल की है, जिसकी प्रशंसा देशभर के किसान कर रहे हैं.


रिपोर्ट्स के मुताबिक, राजधानी इटानगर से 300 किलोमीटर और  लोहित जिला मुख्यालय तेजू से 27 किलोमीटर दूर स्थित मेदो गांव नशीली खेती के लिए बदनाम था, लेकिन आज इन्हीं खेतों में कद्दू जैसी तमाम सब्जियों की फसल लहलहा रही है. यहां के किसानों ने अदरक, सरसों और चाय जैसी नकदी फसलों की तरफ भी रुख किया है. इससे दूसरे देशों से सब्जी विक्रेता गांव में आकर सब्जियां खरीद रहे हैं. वैसे तो अफीम भी एक नकदी फसल है. लेकिन बागवानी फसलों की तरफ रुख करने का कारण गंभीर है, जो सीधा अरुणाचल प्रदेश की सरकार से जुड़ा हुआ.


क्यों छोड़ी अफीम की खेती
अरुणाचल प्रदेश के मेदो गांव में अफीम की अवैध खेती की जा रही थी. सरकार भी अफीम के खिलाफ काफी सख्त थी, इसलिए किसानों को कई योजनाओं के जरिए बागवानी फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा था. इस बार मेदो गांव के ज्यादातर किसानों ने अफीम को ठुकराकर बागवानी फसलों की काफी अच्छी उपज दी है, जिसके चलते देशभर में इनकी तारीफ हो रही है.


अरुणाचल प्रदेश की राज्य सरकार ने भी अफीम की अवैध खेती के खिलाफ नीतिगत तरीके से काम रही है, जिसके परिणामस्वरूप किसानों ने भी अफीम की खेती छोड़ सब्जियों का दामन थाम लिया है. 


इस योजना से आया बदलाव 
अरुणाचल प्रदेश की राज्य सरकार काफी लंबे समय से अफीम की अवैध खेती के खिलाफ सख्ती से कदम उठा रही थी, लेकिन साल 2021 में आत्मनिर्भर कृषि योजना का लाभ लेकर किसानों ने अफीम की खेती का साथ छोड़ दिया. मीडिया रिपोर्ट्य के मुताबिक वाक्रो सर्किल के अतिरिक्त आयुक्त तमो रीवा बताते हैं कि कई सामाजिक संगठनों अफीम और इसकी खेती के खिलाफ लड़ाई में प्रशासन की मदद कर रहे हैं. ये अवैध खेती अभी पूरी तरह से बंद नहीं हुई है, जिले के कई किसान अभी भी गुपचुप नशीली खेती में जुटे हैं, लेकिन अधिकांश किसानों ने अब बागवानी फसलों का दामन थाम लिया है, जो खुशी की बात है.


गांव में शुरू हुआ सब्जियां का व्यापार
अरुणाचल प्रदेश के कई गांव अब पूरा तरह नशीली खेती से मुक्त हो चुके हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अप्रैल से अक्टूबर तक मनियुलियांग, टिश्यू और कई छोटी बस्ती वाले गांव में कद्दू और तमाम दूसरी सब्जियों से लदे ट्रकों की आवाजाही बढ़ गई है. इतना ही नहीं, असम के कई सब्जी विक्रेता खुद किसानों के पास आकर सब्जियां खरीद रहे हैं और असम की मंडियों में बेचने के लिये ले जाते हैं. इन सब्जियों में कद्दू के उत्पादन का आंकड़ा  ज्यादा बड़ा है. 


कद्दू ने संवारी जिंदगी
रिपोर्ट्स के अनुसार कृषि विकास अधिकारी विजय नामचूम ने बताया कि मेदों गांव में अब कद्दू एक प्रमुख फसल के तौर पर उगाई जा रही है. वाकरो इलाके के 500 से ज्यादा किसान 1000 हेक्टेयर से अधिक जमीन पर इसकी खेती कर रहे हैं, जिससे सालाना 5000 से अधिक मीट्रिक टन कद्दू का उत्पादन मिल रहा है. अफीम छोड़ 10 एकड़ जमीन पर कद्दू की खेती करने वाले किसानों में मेदो गांव के सोफ्राई तौसिक भी शामिल है. किसान ने बताया कि शुरुआत में कद्दू सिर्फ 3 रुपये बिकता था, लेकिन अब विक्रेता खुद आकर 7 रुपये किलो के भाव पर हमारा कद्दू खरीद रहे हैं.


कृषि विभाग ने की मदद
जाहिर है कि कोविड काल में सरकार ने आत्मनिर्भर भारत की तरह ही आत्मनिर्भर कृषि योजना और आत्म निर्भर बागवानी योजना की शुरुआत की थी. इन योजनाओं के तहत करीब 60 करोड़ रुपये आवंटित किए गये थे. वहीं इस योजना ने मेदों गांव के साथ अरुणाचल प्रदेश के कई किसानों के जीवन को संवारा है.


अरुणाचल प्रदेश में जिला कृषि विभाग की तरफ से किसानों को समय-समय पर मार्गदर्शन और  बीज, दवाएं, स्प्रे मशीन जैसी चीजें भी मुहैया करवाई जा रही हैं. यही कारण है कि अब किसान आगे आकर खुद बागवानी फसलों की तरफ बढ़ रहे हैं. 


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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