(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Asafoetida Farming: अब आपके खाने में भी लगेगा भारतीय हींग का तड़का, पहले इन देशों से मंगवाई जाती थी
Asafoetida Cultivation: फेरुला हींग के बीजों का आयात करके लाहौल घाटी के क्वारिंग गांव में इसके पौधों की रोपाई की गई है. इस पहल के बाद उत्तराखंड में भी हींग की खेती पर तेजी से काम चल रहा है.
Asafoetida Farming in India: भारत में हींग की खपत को काफी ज्यादा है, लेकिन इसकी प्रोडक्शन (Asafoetida Production in India) बिल्कुल भी नहीं. आज भी अफगानिस्तान, ईरान और उजबेकिस्तान जैसे देशों से कच्ची हींग का आयात (Asafoetida Import in India) किया जाता है. भारतीय व्यंजनों का स्वाद बढ़ाने के साथ ही आयुर्वेदिक औषधी और कई खाद्य पदार्थों में भी हींग की काफी खपत होती है. आंकड़ों की मानें को पिछले साल भारत में करीब 10.4 करोड़ डॉलर यानी करीब 8.29 अरब रुपये का हींग आयात किया गया, जिसके चलते सरकार को 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक का खर्च उठाना पड़ता है. यही कारण है कि अब देश में हींग की खेती (Asafoetida Cultivation in India) की कवायद शुरू की जा रही है.
भारत में हींग की खेती
भारत में ज्यादातर हींग का आयात अफगानिस्तान से ही होता है, लेकिन तालीबानी सत्ता के कारण हींग की आपूर्ति में काफी कमी आई है. बता दें कि भारत में हींग की खेती के भविष्य को परखने के लिये साल 2016 की गई, जो सफल साबित हो चुकी है. इस काम को CSIR-इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (CSIR-Institute of Himalayan Bio Resource Technology) ने आसान बनाया है. फेरुला हींग के बीजों का आयात करके लाहौल घाटी के क्वारिंग गांव में इसके पौधों की रोपाई (Asafoetida Farming in Lahaul) की गई है. इस पहल के बाद उत्तराखंड में भी हींग की खेती पर तेजी से काम चल रहा है.
सर्द इलाकों में होती है खेती
जानकारी के लिये बता दें कि हींग की खेती के लिये ठंडे रेगिस्तान जैसे वातावरण की आवश्यकता होती है, जिसके कारण भारत में इसकी खेती के लिये हिमालयी क्षेत्र के सर्द रेगिस्तानी इलाकों को चुना गया है.
- हींग की खेती के लिये जल निकासी वाली बलुई मिट्टी उपयुक्त रहती है. इसकी रोपाई के लिये भारतीय जलवायु के अनुसार अगस्त से सितंबर के बीच का समय सबसे बेहतर रहता है.
- दुनियाभर में हींग की तरीब 130 किस्में पाई जाती है, जिसमें भारत की जलवायु के मुताबिक 3 से 4 प्रजातियां उपयुक्त रहती है.
- बता दें कि हींग के पौधों का पूरी तरह विकसित होने में करीब 4 से 5 साल का समय लग जाता है.
- एक हेक्टेयर जमीन पर हींग की जैविक खेती करके करीब 2.5 क्विंटल तक का उत्पादन ले सकते हैं.
- हींग के पौधों की जड़ से निकलने वाली गोंद या गोंद जैसा पदार्थ ही असली हींग होता है, जिसकी प्रोसेसिंग की जाती है.
- एक अनुमान के मुताबिक, हींग के एक पौधे से 25-30 ग्राम गोंद मिलती है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 30-40 हजार रुपए प्रति किलो तक होती है.
- रिपोर्ट्स की मानें तो लाहौल में सफल परिणाम आने के बाद कश्मीर के हिमालयी क्षेत्र, हिमाचल, लद्दाख, उत्तराखंड और पंजाब में भी हींग की खेती की जा सकेगी.
यहां से मंगवायें पौधे
भारत में अभी हींग की खेती पर रिसर्च जारी है, इसलिये इसकी व्यावसायिक खेती (Commercial Farming of Asafoetida) को लेकर बागवानी विभाग या कृषि वैज्ञानिकों से सलाह-मशवरा कर सकते हैं. यदि किसान चाहें तो हींग की खेती से जुड़ने के लिये नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट एंड जेनेटिक विभाग (ICAR-National Bureau of Plant Genetic Resources) से भी संपर्क करके जानकारी हासिल कर सकते हैं.
हींग की खेती से कमाई
भारत में हींग का आयात Asafoetida Import in India) कम और खपत काफी ज्यादा है, लेकिन किसान चाहें तो भारत में इसकी खेती और बाजार बना सकते हैं. यहां अफगानिस्तान से आयात होने वाली हींग का बाजार भी 30,000 रुपये से 65,000 रुपये किलो के भाव पर शुरू होता है.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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