Boka Rice: क्या कभी देखा है ठंडे पानी में पकने वाला ये जादुई चावल, असम का है ये अजूबा, जिसे मिला जीआई टैग
GI Tag: असम के बोका-चोकुवा चावल को मैजिक राइस भी कहते हैं, जो ठंडे पानी में भी 50 से 60 मिनट छोड़ने पर पक जाता है और खाने के लिए तैयार हो जाता है. इसे भारत सरकार की तरफ से जीआई टैग भी मिला है.
Assam Boka Rice: भारत के प्रमुख चावल उत्पादक देश है. यहां के एक बड़े क्षेत्रफल में चावल की खेती की जाती है. वैसे तो चावल खरीद सीजन की एक प्रमुख नकदी फसल है, लेकिन कई राज्यों में बारहमासी भी उगाया जाता है. चावल की किस्में ऐसी भी हैं, जो सिर्फ भारत में ही उगाई जाती हैं और पूरी दुनिया उन्हें काफी पसंद करती है. भारत बासमती चावल का एक बड़ा निर्यातक भी है. इसके अलावा, काला नमक चावल भी सबसे खास किस्मों में से एक है. चावल चाहे जो भी हो, उसको उगाने के साथ-साथ पकाने और पचाने के लिए भी अच्छा खासा पानी लगता है.
भारत में चावल से कई व्यंजन बनाए जाते हैं. कई लोग पानी में उबालकर भी चावल खाते हैं. यह चावल को पकाने का सबसे आसान तरीका है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारे देश में एक ऐसा चावल भी उगाया जाता है, जिसको पकाने के लिए आपको गर्म पानी या पानी उबालने की जरूरत नहीं पड़ेगी, बल्कि ठंडे पानी में ही चावल पक कर तैयार हो जाएगा. हम बात कर रहे हैं असम के जीआई टैग चावल बोका राइस की.
क्यों खास है बोका चावल
आपको बता दें कि बोका चावल प्रमुख तौर पर असम में उगाया जाता है. यहां की मिट्टी और जलवायु से इस चावल को एक अलग ही स्वाद और एक अलग ही खुशबू मिली है. असम के कोकराझार, बारपेटा, नलबारी, बक्सा, धुबरी, दररंग, कामरूप में बोका चावल की खेती की जाती है.
असम में बोका चावल को खरीफ सीजन यानी जून के महीने में बोया जाता है, जिसके बाद अक्टूबर तक फसल पक कर तैयार हो जाती है. असम की पहाड़ी जनजातीय इलाकों में बोका चावल या बोका चाउल उगाया जाता है. इस चावल में 10.73% फाइबर और 6.8% प्रोटीन होता है. इसके अलावा, बोका चावल में कई तरह के न्यूट्रिएंट मौजूद होते हैं, जो वजन घटाने में काफी मददगार है.
#Boka #chaul is and has been known for its ‘Zero-cooking’ identity. It does not require boiling in water or pressurized cooking at the time of preparation just like the other kinds of #rice.#AatmaNirbharKrishi #Assam #Vocal4GI #APEDA pic.twitter.com/i0qUhAOb4O
— APEDA (@APEDADOC) January 16, 2021
अहोम सैनिकों का राशन था बोका चावल
अगर इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो बोका चावल का अपना एक सुनहरा इतिहास है. इस चावल ने ना जाने कितनी जंग जीतने में हमारे सिपाहियों की की मदद की है. यह कहानी 17 वीं सदी तक जाती है. जब मुगल सेना से देश की रक्षा के लिए अहोम सैनिक बोका चावल का सेवन करते थे. इस चावल को राशन के तौर पर युद्ध पर ले जाया जाता था, जिसे पकाने की जरूरत नहीं पड़ती थी.
सिर्फ चावल को 50 से 60 मिनट के लिए पानी में छोड़ने भर से ही चावल तैयार हो जाता था. आपको बता दें कि बोका चावल को बोका चाउल और ओरिजा सातिवा भी कहते हैं. असम में बोका चावल से कई तरह के पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं, जिसमें दही, गुड, दूध, चीनी या अन्य खाद्य पदार्थों के साथ बोका चावल को परोसा जाता है.
कैसे होती है खेती
वैसे तो बोका चावल का कई हजार साल पुराना इतिहास है, जो सीधा असम से जुड़ा हुआ है. यही वजह है कि असम में उगाए जा रहे इस चावल को भारत सरकार ने जीआई टैग भी दिया है, हालांकि अब इसकी खेती पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश में भी की जा रही है.
आपको जानकर हैरानी होगी कि बोका चावल को पकाना बेहद आसान है, लेकिन उगाना नहीं. करीब आधा एकड़ खेत से पांच बोरी उत्पादन मिलता है. ये चावल दूसरी प्रजाति के मुकाबले 145 दिन में पक कर तैयार होती है.
उत्तर प्रदेश में हो रही खेती
किसान तक की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के किसान भी बोका चावल की खेती में काफी रूचि ले रहे हैं. रायबरेली जिले के ऊंचाहार के रहने वाले किसान रामगोपाल चंदेल ने भी बोका चावल उगाकर नया रिकॉर्ड बनाया है.
रामगोपाल चंदेल ने बोका चावल की खेती करके नासिर्फ खास पहचान बनाई है, बल्कि अपनी आय को भी बढ़ा लिया है. रामगोपाल चंदेल बताते हैं कि प्रति एकड़ से बोका चावल का 12 से 13 क्विंटल और एक बीघा से 8 से 10 क्विंटल उत्पादन ले सकते हैं.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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