Agriculture Issues: बदलता मौसम और गर्म होती धरती आज पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बनती जा रही है. जलवायु परिवर्तन के इन दुष्परिणामों का सबसे बुरा असर खेती-किसानी पर ही पड़ रहा है. अचानक से मौसम का बदलना, कभी बारिश-बाढ़ तो कभी सूखा के कारण किसानों को काफी नुकसान झेलना पड़ रहा है. कई बार तो कीट-रोगों के कारण पूरी की पूरी फसल बर्बाद (farming in Loss) हो जाती है. इस साल भारत में जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के बुरे प्रभाव देखने को मिले हैं, जिसने खाद्य आपूर्ति (Food Supply)  पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है.


इसके अलावा कम होते उत्पादन के कारण भी अब कई किसान खेती छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं. इन्हीं में शामिल हैं कोझिकोड, केरल में नारियल की खेती करने वाले किसान अब्राहम मैथ्यू, जो खेती में बेहतर प्रदर्शन के लिए केरल सरकार द्वारा केरा केसरी अवॉर्ड भी अपने नाम करवा चुके हैं, लेकिन अब खेती में बढ़ते संघर्षों के कारण उन्होंने इसे पूरे तरह से छोड़ने का फैसला कर लिया है.


16 साल की उम्र में शुरू की खेती


अब्राहम मैथ्यू ने करीब 16 साल की बेहद कम उम्र में खेती (Coconut Farming) शुरू की. आज इस सफर को करीब 57 साल पूरे हो चुके हैं. इस बीच अब्राहम मैथ्यू ने करीब 17 देशों का दौरा किया है और यहां से खेती की तकनीकों और उन्नत विधियों की जानकारी लेकर खेती का विकास-विस्तार किया. उनके इसी योगदान के लिये साल 1995 में केरल की राज्य सरकार ने उन्हें केरा केसरी अवॉर्ड (Kera Kesari Awards) से भी सम्मानित किया था.


इसके अलावा,अब्राहम मैथ्यू अभी तक संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations) और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड (limca book of records) में अपना नाम दर्ज करवा चुके हैं. केरल राज्य में खेती और इस क्षेत्र में आने वाली तमाम चुनौतियों का सामना करने वाले किसानों में अब्राहम मैथ्यू का भी नाम शामिल है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो खेती में संघर्ष भरा लंबा सफर तय करने के बाद आज अब्राहम मैथ्यू कई विपरीत परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं, जिसके चलते उन्होंने खेती छोड़ने का फैसला लिया है. 




इस कारण छोड़ी खेती


मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो उर्वरकों की बढ़ती कीमत, कम होता उत्पादन, आय में कमी और सरकारी मदद ना पहुंचने के कारण ही अब्राहम मैथ्यू ने खेती छोड़ने का फैसला किया है. वो बताते हैं कि रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते दाम खेती और किसानों पर बोझ बनते जा रहे हैं. वहीं नारियल समेत कई कृषि उत्पादों की कीमत में भारी गिरावट आई है. इस कदर खेती की बढ़ती लागत और कम होती आमदनी के कारण हमें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था. इसके बावजूद सरकार ने भी इन परिस्थितियों को नजरअंदाज कर मदद का हाथ नहीं बढ़ाया.


नारियल की खेती में बढ़ीं चुनौतियां


नारियल किसान अब्राहम मैथ्यू के मुताबिक नारियल की खेती (Abraham Mathew, Coconut farmer) भी अब काफी तनावपूर्ण दौर से गुजर रही है. उन्होंने बताया कि विपरीत परिस्थितियों के कारण पिछले 5 सालों से उन्होंने नारियल का ठीक तरह से उत्पादन नहीं लिया है, जो नारियल पेड़ (Coconut Tree) से अपने आप गिर जाते हैं, बस उन्ही फलों को इकट्ठा करके गुजारा हो रहा है.


जब फल पेड़ से गिरते हैं तो उनका ढेर बनाया जाता है, जिसके बाद किसी भी कीमत पर इसे बेच दिया जाता है. कभी-कभी ध्यान ना देने के कारण नारियलों में अपने आप अंकुरण हो जाता है और उपज बर्बाद हो जाती है. कोझिकोड के नारियल किसान (Coconut farming, Kozhikode) बताते हैं कि इस साल उन्होंने सिर्फ काली मिर्च की देसी किस्म कंठारी की खेती (Black Pepper Cultivation) करके ही कुछ पैसा कमाया है.


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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