Crop Management: केले की फसल में बढ़ रहा है बंची टॉप वायरस का प्रकोप, इस तरीके से करें समाधान
Bunchy Top Virus in Banana: इस वायरस के कारण केले के पेड़ का विकास रुक जाता है और फल नहीं मिल पाते. उड़ीसा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों इसके लक्षण देखे जाते हैं.
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Crop Management In Banana Farms: भारत में केले की काफी खपत है. यही कारण है कि इसकी खेती किसानों के लिये मुनाफे का सौदा बनती जा रही है. केले की फसल (Banana Farms) को हरा-भरा रखने और अच्छे फलों का उत्पादन (Banana Production) लेने के लिये प्रबंधन कार्य करना बेहद जरूरी है. खासकर बरसात के मौसम में केले के पत्तों (Banana Leaves) और फलों में सड़न की समस्या पैदा हो जाती है, जिससे बागों में काफी नुकसान हो जाता है.
इसी प्रकार की बीमारी है बंची टॉप वायरस (Bunchy Top Virus in Banana) यानी गुच्छशीर्ष रोग, जो केले के पत्तों पर गुच्छामुना आकृति बनाकर फैलते हैं और केले की फसल के बर्बाद कर देते हैं. इस वायरस के कारण पौधों का विकास रुक जाता है और केले के पेड़ से फल नहीं मिल पाते. उड़ीसा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों इस वायरस के लक्षण सबसे ज्यादा देखे जाते हैं.
बंची टॉप की रोकथाम के उपाय (Solution for Bunchy Top Virus in Banana)
केले की फसल में बंची टॉप की समस्या की रोकथाम के लिये फससल में लगातार निगरानी और प्रबंधन कार्य बढ़ देने चाहिये, जिससे वायरस को फैलने से रोका जा सके. ऐसी स्थिति में वैज्ञानिक उपायों की मदद से रोग नियंत्रण का काम करें.
- कीट-रोग नियंत्रण के लिये वैज्ञानिकों की सलाह पर प्रमाणित कीटनाशक दवा या इमीडैक्लोप्रीड (imidacloprid) की 1 मिलीलीटर दवा को प्रति 2 लीटर पानी में घोलकर केले के पत्तों पर छिड़काव करें.
- ध्यान रखें कि केले के आस-पासके बागों में भी रोग नियंत्रण का काम एक ही दिन में निपटा लें, जिससे ये वायरस आस-पास के बागों में भी न फैल पाये.
- केले के बागों में उगने वाली खरपतवार को उखाड़कर फेंक दें और बंची टॉप से संक्रमित पौधों को जड़ समेत हटा देना चाहिये.
- इसके अलावा केले में कीट और रोगों की रोकथाम के लिये उन्नतशील किस्मों का ही चुनाव करना चाहिये.
टिश्यू कल्चर से करें केले की खेती (Banana Farming with Tissue Culture Technique)
जाहिर है कि हर साल मौसम की अनिश्चितताओं, कीट-रोग के प्रकोप या किसी अन्य कारण से केले के बागों बर्बाद हो जाते हैं. इस नुकसान ता बोझ सीधा किसानों पर पड़ता और वे केले की खेती के विकल्प तलाशने लगते हैं. इन सभी समस्याओं के समाधान के रूप में टिशू कल्चर तकनीक से केले की खेती करने की सलाह ही जाती है.
- टिशू कल्चर यानी ऊतक संवर्धन विधि (Tissue Culture Method) से रोगमुक्त सकर लगाकर उन्नतशील पौधों को तैयार किया जाता है.
- इस विधि से उगाये गये केले के पौधों की बागवानी करते समय खरपतवारों का भी खास ध्यान (Weed Management in Banana) रखना होता है, क्योंकि खरपतवार ही फसल में कीड़े और बीमारियों को आकर्षित करते हैं.
- कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, केले की बागवानी के साथ कद्दूवर्गीय सब्जियों की अंतरवर्तीय खेती (Co-cropping of Pumpkin Class Vegetables) नहीं करनी चाहिये, क्योंकि इनमें वायरस जैसे रोगों की संभावना ज्यादा होती है.
- बीमारियों की रोकथाम के बाद फसल को मजबूत बनाने के लिये 25-50% अधिक अनुशंसित उर्वरक को 10 किग्रा वर्मी कंपोस्ट या खूब सड़ी गोबर की खाद में मिलाकर पौधों में जरूर डालें.
- अकसर केले के कमजोर पेड़-पौधों में भी बीमारियों का आक्रमण होता है. ऐसी स्थिति में पोषण प्रबंधन (Fertilizer Management in Banana) का कार्य भी करते रहें.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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