Improve Banana Production: भारत में पारंपरिक फसलों के मुकाबले बागवानी फसलों की खेती (Horticulture Crops) का चलन बढ़ता जा रहा है. इस खरीफ सीजन में ज्यादातर किसानों ने केला, सेब, अमरूद, अंगूर जैसे तमाम फलों के नए बागों (New Orchards Plantation) का रोपण किया है. नए बाग लगाने के बाद किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या पौधों का विकास और फलों का उत्पादन (Fruit Production Remedies) से जुड़ी होती है. बात करें केला की तो यह एक सदाबहार फल (Banana Cultivation) है, जिसकी मांग साल भर बनी रहती है.


पूरे भारत में इसकी बागवानी की जाती है और इसकी खेती के लिए नई तकनीकों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों के कारण फलों का उत्पादन गिरता जा रहा है. इस मामले में विशेषज्ञ भी जैविक उपाय और वैज्ञानिक तरीकों से पोषण प्रबंधन (Fertilizer Management in Banana Farms) करने की सलाह देते हैं. बता दें कि फसल में सूक्ष्म पोषक तत्व का इस्तेमाल करने पर भी केले के पौधों का विकास औ बेहतर फल उत्पादन लेने में मदद मिलती है.


यूरिया का इस्तेमाल


कई पारंपरिक और बागवानी फसलों में नाइट्रोजन की आपूर्ति करने के लिए यूरिया का इस्तेमाल किया जाता है. इसी तरह केले के बागों में भी फलों के विकास के लिए पौधों को 200 से 250 ग्राम नाइट्रोजन की आपूर्ति करनी चाहिए.



  • नाइट्रोजन की मात्रा का एक साथ इस्तेमाल करने के बजाय 2 से 3 भागों में अलग-अलग समय पर देना होता है.

  • इस प्रक्रिया में यूरिया की पहली मात्रा रोपाई के 30 दिनों के बाद, दूसरी रोपाई के 75 दिनों के बाद, तीसरी मात्रा रोपाई के 130 दिनों बाद और चौथी मात्रा रोपाई के 165 दिनों बाद डालनी चाहिए.

  • किसान चाहें तो नाइट्रोजन की 25% आपूर्ति के लिए गोबर की सड़ी हुई खाद या वर्मी कंपोस्ट और नीम की खली से भी कर सकते हैं.


इन पोषक तत्वों का भी करें छिड़काव


वैसे तो केले के पौधों में फास्फोरस की कुछ खास जरूरत नहीं होती, लेकिन सुपर फास्फेट के रूप में 50 से 95 ग्राम प्रति पौधा के हिसाब से रोपाई के समय फास्फोरस का छिड़काव करना फायदेमंद रहता है.



  • यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि इससे फल उत्पादन की प्रक्रिया काफी हद तक आसान हो जाती है.

  • केला के वानस्पतिक वृद्धि के लिए 100 ग्राम पोटेशियम को 2 टुकड़ों में बांटकर फल निकलते समय पौधों की जड़ों में डालते हैं. 

  • किसान चाहें तो समय और समय की बचत के लिये ड्रिप सिंचाई सेटअप के साथ भी इन पोषक तत्वों की आपूर्ति सुनिश्चित कर सकते हैं.


चूना पत्थर से बढ़ेगा उत्पादन 


केले की फसल में कैल्शियम, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश जैसे उर्वरकों का सीमित मात्रा में इस्तेमाल के अलग-अलग फायदे होते हैं, लेकिन अम्लीय भूमि में मिट्टी की संरचना को सुधारने के लिए डोलोमाइट यह चूना पत्थर के इस्तेमाल करने की भी सलाह दी जाती है. इसके अलावा पौधों में क्लोरोफिल बनने या उनकी सामान्य वृद्धि के लिए सीमित मात्रा में मैग्नीशियम का इस्तेमाल कर सकते हैं.


इन पोषक तत्व का भी करें प्रयोग


वैसे तो जैविक खेती करने वाले किसान ज्यादातर जैविक खाद, जैव उर्वरक, नीम की खली और अन्य जैविक एनजाइम्स (Bio Enzymes for Fruit Production) का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन मिट्टी की जांच के आधार पर जिंक, आयरन, बोरान, कापर एवं मैग्नीज जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का इस्तेमाल भी कर सकते हैं.



  • ये सभी पोषक तत्व पेड़ों को मजबूती प्रदान करके बेहतर फलों के उत्पादन में अहम रोल अदा करते हैं.

  • एजोस्पाइरीलियम एवं माइक्रोराइजा का प्रयोग करने पर केला का वानस्पतिक उत्पादन काफी हद तक बढ़ा सकते हैं.

  • कई किसान इन सभी पोषक तत्वों को ड्रिप सिंचाई तकनीक (Drip Irrigation in Banana)  की मदद से पानी के जरिए पौधों तक पहुंचाते हैं.

  • विशेषज्ञ भी केले के फलों के बेहतर उत्पादन (Banana Fruit Production)के लिए सीमित मात्रा में पोषण प्रबंधन करने की सलाह देते हैं.

  • इस तरह पोषण प्रबंधन के जरिये (Fertilizer Management in Banana Farm) मिट्टी की कमियों और केले की फसल में कीट रोग की संभावनाएं और विभिन्न जोखिमों को कम कर सकते हैं.


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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