Balanced Fertilizer for Cereal Cultivation: दुनियाभर में फसलों का अधिक उत्पादन लेने के लिये खेतों में उर्वरकों का अंधाधुंध इस्तेमाल (Excessive use of Fertilizers) किया जा रहा है, इससे मिट्टी की क्वालिटी (Soil Health)  तो प्रभावित हो ही रही है, साथ ही भूजल स्तर (Ground Water level in Agriculture) भी गिरता जा रहा है. हाल ही में हुये रिसर्च के नतीजों से यह भी साबित हुआ है नाइट्रोजन उर्वरकों (Nitrogen Fertilizer) के अधिक इस्तेमाल के कारण खेती का खर्च तो बढ़ता ही है, साथ ही वातावरण में प्रदूषण (Environmental Pollution) की मात्रा भी बढ़ती है.


इन्हीं समस्याओं के मद्देनजर वैज्ञानिकों ने उर्वरकों का इस्तेमाल कम करने वाली विधि (Technique for Less use of Fertilizer for Cereal Farming) खोज निकाली है, जिससे किसानों को खर्च तो बचेगा ही, पर्यावरण को भी इसके कई लाभ मिलेंगे. 




वैज्ञानिक ने खोजा समाधान (Solution for Excessive use of Fertilizer) 
पादप विज्ञान के नामी प्रोफेसर और वैज्ञानिक एडुआर्डो ब्लमवाल्ड ने अनाजों की खेती के लिये इस्तेमाल होने वाले अंधाधुंध उर्वरक और इनसे होने वाली समस्या का प्राकृतिक समाधान खोज निकाला है. इस प्राकृतिक तरीके को अपनाकर किसान नाइट्रोजन प्रदूषण को कम कर सकते हैं. इतना ही नहीं, इससे दूषित जल संसाधन, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि और मानव स्वास्थ्य का खतरा भी टल सकता है. बता दें कि प्रोफेसर एडुआर्डो ब्लमवाल्ड की ये रिसर्च प्लांट बायोटेक्नोलॉजी में प्रकाशित हो चुकी है, जिसमें संबंधित मुद्दों और समाधानों का समावेश है.


ये है फसल का उत्पदान बढ़ाने का प्राकृतिक तरीका (Natural Method for Cereal Farming)
अनाजों की खेती और उर्वरकों के इस्तेमाल पर प्रोफेसर ब्लमवाल्ड की इस खास रिसर्च में बताया गया है कि हवा में मौजूद नाइट्रोजन गैस को मिट्टी में मौजूद बैक्टीरिया की मदद से अमोनियम में बदल सकते हैं. इस पूरी प्रक्रिया को नाइट्रोजन स्थिरीकरण का नाम दिया गया है, इसी पूरी प्रक्रिया को ही रिसर्च में केंद्रित किया गया है. 


उदाहरण के लिये बता दें कि मूंगफली और सोयाबीन की फसल में रूट नोड्यूल यानी जड़ पिण्ड मौजूद होते हैं, जो नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया की मदद से पौधों को अमोनियम पहुंचाने में मदद करते हैं, लेकिन चावल और गेहूं की फसल में इतनी क्षमता नहीं होती, जिसके चलते इन फसलों में अलग से मिट्टी के उर्वरकों की जरूर पड़ती है. आमतौर पर ये फसलें अमोनिया और नाइट्रेट की मदद अकार्बनिक नाइट्रोजन को ग्रहण करके ही विकसित होती हैं. 




क्या कहते हैं वैज्ञानिक (Professor Eduardo Blumwald of Plant Science)
पारंपरिक फसलों  खासकर धान और गेहूं की फसल को लेकर प्रोफेसर ब्लमवाल्ड कहते हैं कि 'अगर पौधों से रासायनों का उत्सर्जन ठीक प्रकार हो जाता है, तो मिट्टी के बैक्टीरिया भी वातावरण में मौजूद नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने में सक्षम होगें'. रासायानिक उर्वरकों का इस्तेमाल कम करने के लिये पौधों को संशोधित कर सकते हैं, जिससे पौधों से उत्सर्जित रसायनों को मिट्टी के जीवाणुओं के साथ मिलकर नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने में मदद मिलेगी. इससे पौधों को प्राकृतिक रूप से अमोनियम मिलने लगेगा और पौधों का प्राकृतिक विकास होता रहेगा. इससे उर्वरकों के इस्तेमाल की भी जरूरत ही नहीं.




जानें रिसर्च का नतीजा (Results of Research on Less use of fertilizers) 
पौधों में रसायनों के उत्सर्जन की पूरा प्रक्रिया को समझाने के लिये प्रोफेसर ब्लमवाल्ड की टीम ने चावल के पौधों की रासायनिक जांच और जीनोमिक्स (Genomics and Chemical Test of Rice Paddy Plants) का इस्तेमाल किया. इस प्रोसेस में ऐसे यौगिकों की पहचान हुई जो मिट्टी में बैक्टीरिया की नाइट्रोजन-फिक्सिंग गतिविधी (Nitrogen Fixing Process) को बढाने में मदद करते हैं. इस मामले में वैज्ञानिकों का कहना है कि 'पौधों में विकास के लिये अदभुत रासायनिक क्षमता (Chemical Potential in Cereal Plant for Development) मौजूद होती है. अब उर्वरकों की जगह मिट्टी और पौधों की क्षमता का इस्तेमाल करके खेती को और भी ज्यादा किफायती और टिकाऊ (Sustainable Agriculture)  बना सकते हैं'. इससे पर्यावरण के संरक्षण (Environment Protection)  में भी खास मदद मिलेगी.




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