Animal Vaccination Drive: आज पशुपालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा बन गया है. बड़ी संख्या में लोग गाय-भैंस पालन करके आम आजीविका कमा रहे हैं. बढ़ती दूध की मांग के बीच पशुपालन बिजनेस फायदे का सौदा साबित हो रहा है, लेकिन इस क्षेत्र में चुनौतियां कम नहीं है. आए दिन पशु गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं. कुछ दिन पहले ही लंपी लोग के चलते लाखों पशुओं की मौत हुई. अब ब्रुसेलोसिस नामक बीमारी का खतरा बढ़ रहा है. इस गंभीर पशु रोग की रोकथाम के लिए कई राज्यों में टीकाकरण अभियान भी चलाए जा रहे हैं. बिहार पशुपालन विभाग की ओर से भी पशुओं को ब्रुसेलोसिस के नि:शुल्क टीके लगवाए जा रहे हैं.
मादा पशुओं में नि:शुल्क टीकाकरण
ब्रुसेलोसिस जैसी गंभीर बीमारियां का खतरा दूर करने के लिए बिहार सरकार ने पशुधन स्वास्थ्य एंव रोग नियंत्रण कार्यक्रम 2023 के तहत नि:शुल्क टीकाकरण अभियान चलाया है. इसके तहत बिहार के हर गांव में 4 से 5 महीने के पाड़ी या बाछी में ब्रुसेलोसिस रोग की रोकथान के लिए टीके लगाए जा रहे हैं.
पशुपालन विभाग ने तारीख के हिसाब से जिलों की सूची भी जारी कर दी है. इस अभियान के तहत पशु चिकित्सत और टीकाकर्मियों की टीम पशुपालकों के घर पहुंचेगी और सुरक्षित ढंग से पशुओं को टीका लगाएगी. ये काम जन प्रतिनिधि, जिला परिषद सदस्य, मुखिया, पंचायत समिति सदस्य या वार्ड सदस्य की देखरेख में होगा.
इस लिस्ट के मुताबिक, मुंगेर, भागलपुर, शिवहर, दरभंगा और सारण में 10 मई को टीके लगाए जाएंगे. वहीं पूर्वी चंपारण, मधेपुरा, गया और पूर्णिया में 15 मई को टीकाकारण अभियान चलाया जा रहा है. यदि आपके जिले का नाम लिस्ट में नहीं है तो अपने जिले पशुपालन विभाग या पशु चिकित्सालय में संपर्क कर सकते हैं.
इन बातों का रखें खास ध्यान
बिहार में पशुधन स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण कार्यक्रम 2023 के तहत ब्रुलेसोसिस की रोकथाम के लिए चलाए जा रहे टीकाकरण अभियान पूरी तरह से नि:शुल्क हैं. यदि पशु का टीकाकरण या होने या टीकाकरण के दौरान कोई पैसा मांगा जाता है तो हेल्पलाइन नंबर- 0612-2226049 पर कॉल कर सकते हैं.
क्या होती है ब्रुलेसोसिस बीमारी
वर्ल्ड एनिमल हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक,ब्रुसेलोसिस पशुओं में फैलने वाला एक संक्रामक रोग है, जो कई जीवाणुओं के कारण पैदा होता है और पशुओं की कुछ गिनी चुनी प्रजातियों के संक्रमित करता है.
इस रोग से संक्रमित मादा पशुओं का गर्भपात हो जाता है और दूध की मात्रा भी कम होने लगती है. यदि संक्रमित पशु का कच्चा दूध पी लें तो इंसानों पर इसका बुरा असर होता है. इस रोग के चलते पशुओं में बेहद कम उम्र में बांझपन और लंगड़ापन आ जाता है.
इन जानवरों की देखभाल करने वाले चिकित्सक भी अक्सर इस संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं, इसलिए इसकी रोकथाम के लिए टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है.
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