लीची एक स्वादिष्ट और रसीला फल है जिसकी कई किस्में होती हैं. बिहार में लीची का उत्पादन सबसे अधिक होता है. शाही लीची, कस्बा लीची, लोंगिया लीची, बेदाना लीची, चायना लीची और पूर्वी लीची बिहार में उगाई जाने वाली लीची की कुछ प्रमुख किस्में हैं.


बिहार की शाही लीची को GI Tag भी मिला हुआ है. चायना लीची की एक पछेती उन्नत किस्म है. लोंगिया लीची अब विलुप्त सी हो गई है. कस्बा लीची मध्य-देर से पकने वाली किस्म है. बेदाना लीची का फल अंडाकार या दिल के आकार की होती है. लीची की खेती पर यहां के किसान काफी निर्भर रहते हैं. आइए जानते हैं राज्य की फेमस लीची के बारे में...


शाही लीची की बात की जाए तो ये लीची का सबसे श्रेष्ठ प्रकार है, जो मुख्य रूप से मुजफ्फरपुर में उगाया जाता है. देश के अन्य क्षेत्रों में भी इस नाम से खेती होती है, लेकिन मुजफ्फरपुर की शाही लीची की गुणवत्ता बेहतरीन है, जिसके लिए इसे GI टैग भी मिला है. वहीं, चायना लीची एक देर से पकने वाली किस्म है जिसमें गहरे लाल रंग, मध्यम आकार के फल होते हैं. फल में गूदा अधिक होता है और प्रत्येक पेड़ 80-90 किग्रा उपज देता है. इसकी एक विशेषता ये है कि फल पकने पर फटती नहीं है.


कस्बा लीची बिहार में उगाई जाने वाली एक मध्य-देर से पकने वाली किस्म है. इसके फल गहरे लाल रंग के होते हैं और अंडाकार या गोल होते हैं. यह किस्म टूटने-फटने और सूरज की जलन के प्रति प्रतिरोधी है.मुजफ्फरपुर की लोंगिया लीची की प्रजाति लुप्त हो गई है. 25-30 साल पहले तक शाही और चायना लीची के साथ लोंगिया भी बागानों में होती थी, लेकिन अब गायब हो गई है.






ये किस्में भी हैं शामिल


लीची की बेदाना किस्म अंडाकार या दिल के आकार की होती है, जिसमें पका हुआ रंग हल्का हरा और लाल होता है. इसके साइज मध्यम होता है, वजन 15-18 ग्राम के बीच रहता है. यह हरे रंग का होने के बावजूद मीठा और रसदार होता है. पूर्वी लीची बिहार के पूर्वी हिस्से में उगाई जाती है. इसके फल मध्यम और बड़े होते हैं जो मई के अंत या जून के पहले सप्ताह में पकते हैं. पूर्वी लीची का रंग गुलाबी होता है. इसकी औसत उपज 90-100 किग्रा प्रति पेड़ है.


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