Drip Irrigation: कुछ समय पहले तक खेती-किसानी में पानी की कमी सबसे बड़ी समस्या थी, लेकिन बूंद-बूंद सिंचाई के कॉन्सेप्ट ने जल संरक्षण और फसल उत्पादन को कई गुना बढ़ा दिया है. ये टपक सिंचाई पद्धति का ही नतीजा है कि आज रेतीली-बंजर खेतों में भी फसलें लहलहा रही हैं. सूखाग्रस्त इलाकों में ड्रिप सिंचाई तकनीक से बंपर उपज मिल रही है. इससे किसानों को भी काफी फायदा हुआ है. यही वजह है कि केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत टपक सिंचाई सिस्टम लगाने के लिए किसानों को अनुदान दिया जाता है. इससे खर्च का बोझ किसानों पर भारी नहीं पड़ता.


हाल ही में बिहार सरकार ने भी ड्रिप सिंचाई सिस्टम पर 90 प्रतिशत सब्सिडी का ऐलान किया है. बिहार में गन्ना की खेती करने वाले किसानों को प्राथमिकता से इसका लाभ मिल रहा है.


गन्ना की फसल में ड्रिप सिंचाई के फायदे


गन्ना की फसल में ड्रिप सिंचाई सिस्टम लगाने के लिए बिहार सरकार की ओर से किसानों को 90 प्रतिशत सब्सिडी दी जा रही है. जानकारी के लिए बता दें कि ड्रिप तकनीक से गन्ना फसल में सिंचाई लगाने पर 60 प्रतिशत तक पानी बचा सकते हैं. इससे उर्वरकों की खपत 25-30 प्रतिशत तक कम हो जाती है.


इससे खेती की लागत को 30 से 35 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है. गन्ना में टपक सिंचाई के जरिए 25 से 25 फीसदी तक उत्पादन बढ़ा सकते हैं. ड्रिप सिंचाई तकनीक से सीधा फसल की जड़ों तक पानी पहुंचता है. इस तरह फसल का बेहतर ढंग से विकास होता है.सड़न गलन का खतरा नहीं रहता और अच्छी क्वालिटी का उत्पादन मिलता है.


कहां करें आवेदन


गन्ना के अलावा कई फसलों में बूंद-बूंद सिंचाई वाली ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लगा सकते हैं. फल और सब्जी फसलों में टपक सिंचाई पद्धति काफी फेमस हो रही है. यदि आप भी गन्ना या बागवानी फसलों की खेती करते हैं तो प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत आवेदन करके अनुदानित दरों पर ड्रिप सिंचाई सिस्टम लगा सकते हैं. अधिक जानकारी के लिए अपने जिले के बागवानी विभाग के कार्यालय में भी संपर्क कर सकते हैं.






इन किसानों को हुआ लाभ


टपक सिंचाई पद्धति से गन्ना की खेती करने वाले किसानों में बिहार के पश्चिमी चंपारण के किसान सचिन सिंह भी शामिल हैं. टपक सिंचाई पर अपने विचार साझा करते हुए किसान ने बताया कि पारंपरिक सिंचाई तकनीकों से गन्ना की ज्यादा अच्छी पैदावार नहीं हो रही थी.


कई बार फसल में जल भराव भी हो जाता है. इससे अनावश्यक पैदा हो जाती थी. फसल के पौधे भी ऊंचे-नीचे बनते थे, लेकिन टपक सिंचाई अपनाते ही गन्ना की उत्पादकता बढ़ी. इससे गन्ना की ऊंचाई 18 से 19 फीट तक पहुंच गई. बाजार में भी गन्ना की उपज के अच्छे दाम मिलने लगे.


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