Bitter Gourd Cultivation by Staking Method: पारंपरिक फसलों के बजाय बागवानी फसलों (Vegetable Farming) की खेती पर जोर दिया जा रहा है. खासकर दोहरे उद्देश्य वाली सब्जियों की मांग बाजार में बढ़ती जा रही है. हम बात कर रहे हैं करेला (Bitter Gourd Farming) के बारे में, जिसका सब्जियों के अलावा औषधीय महत्व ही है.
यही कारण है कि ज्यादातर किसान इसकी व्यावसायिक खेती (Commercial Farming of Bitter Gourd) पर जोर दे रहे हैं. खासकर कई कंपनियां किसानों को कांट्रेक्ट देकर करेले की खेती करवा रही हैं. इसके लिये छोटे किसान कम जगह मचान विधि (Staking Method) अपनाकर खेती कर रहे हैं. इससे करेले की फसल में सड़न-गलने के जोखिम कम हो रहे हैं और किसानों को भी कम मेहनत में अच्छा उत्पादन मिल रहा है.
खेतों में लगायें हाइब्रिड करेला (Hybrid Bitter Gourd Cultivation)
किसान अब देसी करेले के बजाय हाइब्रिड करेला की खेती पर जोर दे रहे हैं, क्योंकि ये कम मेहनत में ही देसी करेले के मुकाबले अच्छा उत्पादन दे रहे हैं. बता दें कि हाइब्रिड करेला के पौधे तेजी से बढ़ते हैं और इनके फल भी औसत आकार के मुकाबले काफी बड़े होते हैं. इनकी खेती भी देसी करेला की तरह ही की जाती है, लेकिन ये संख्या में ज्यादा होते हैं.
बता दें कि हाइब्रिड करेला का रंग हरा और स्वाद में काफी बेहतर होता है, इसलिये बाजार में इसके बीज थोड़े महंगे मिलते हैं. कृषि विशेषज्ञ भी करेला की क्वालिटी और अधिक पैदावार के लिये किसानों को एक बार हाइब्रिड करेला की फसल लगाने की सलाह देते है
ये है करेले की बेहतरीन किस्म ( Hybrid Varieties of Bitter Gourd)
कई किसान अलग-अलग इलाकों में हाइब्रिड करेला उगाकर अच्छा पैसा कमा रहे हैं, क्योंकि हाइब्रिड करेला की सदाबहार किस्मों की खेती के लिये मौसम की पाबंदी नहीं होती. इनके फलों की लंबाई 12 से 13 सेमी और वजन 80 से 90 ग्राम तक होता है. एक एकड़ खेत में हाइब्रिड करेला उगाने पर 72 से 76 क्विंटल तक उत्पादन मिल जाता है, जो सामान्य से काफी ज्यादा हैं.
खासकर हाइब्रिड करेला की प्रिया और कोयंबटूर लौंग किस्में उत्पादन के मामले में शीर्ष पर हैं. इनके अलावा पूसा टू सीजनल, पूसा स्पेशल, कल्याणपुर, कोयंबटूर लॉन्ग, कल्याणपुर सोना, बारहमासी करेला, प्रिया सीओ-1, एसडीयू-1, पंजाब करेला-1, पंजाब-14, सोलन हारा, सोलन और बारहमास आदि भी करेला की बहेतरीन किस्मों में शुमार हैं.
इस तरह करें हाइब्रिड करेला की खेती (Process of Bitter Gourd Cultivation)
हाइब्रिड करेला की खेती के लिये अच्छी जलनिकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी रहती है. बता दें कि मध्यम गर्म तापमान में करेला की बेलें खूब फलती-फूलती हैं.
- एक हेक्टेयर क्षेत्र में करेला की खेती करने पर 1.8 ग्राम बीजों की जरूरत होती है, जिन्हें पौधशाला में बीज उपचार करके ही बोना चाहिये.
- नर्सरी में पौधे तैयार करने के बाद खेत को जैविक विधि से तैयार और कतारों में ही करेला की पौध लगानी चाहिये.
- बेलों को ठीक ढंग से फैलाने के लिये किसान मचान बनाते हैं, जिससे उत्पादन और उत्पादकता दोनों को बढ़त होती है.
ये सावधानियां बरतें (Precautions for Bitter gourd Farming)
करेला की फलों और बेलों से ज्यादा उसकी जड़ों में कीड़े और बीमारियां लगने की संभावना बनी रहती है, इसलिये मचान के साथ-साथ जड़ों पर भी निगरानी करते रहना चाहिये.
- कीट-रोगों की रोकथाम के लिये सिर्फ जैविक कीटनाशकों (Organic Pesticides) ही प्रयोग करें. किसान चाहें तो जीवामृत (Jeevamnrit) और नीमास्त्र (Neemastra) का इस्तेमाल भी कर सकते हैं.
- हाइब्रिड करेला की सब्जियों से बीज लेकर बुवाई करने से फसल में कई समस्यायें आ जाती है, इसलिये इनका इस्तेमाल नहीं करना चाहिये.
- दरअसल हाइब्रिड करेला के बीज (Hybrid Seeds of Bitter Gourd) प्रयोगशाला में ही तैयार किये जाते हैं, जिनसे सिर्फ एक बार खेती होती है, इसलिये किसी प्रमाणित दुकान से अच्छी क्वालिटी के बीज ही खरीदें.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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