Blue Oyster Mushroom Cultivation: भारत में मशरूम की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है. खासकर बड़े शहरों में लोग मशरूम की अलग-अलग वैरायटी (Mushroom Varieties) को काफी पसंद कर रहे हैं. कई इलाकों में तो मशरूम की बिक्री (Mushroom Marketing) आलू-टमाटर-प्याज की तरह हो रही है. यही कारण है कि अब किसान भी पारंपरिक फसलों के साथ-साथ मशरूम उत्पादन की यूनिट (Mushroom Production Unit)  लगा रहे हैं. भारत में ही सैंकड़ों किस्मों को उगाया और खाया जा रहा है, लेकिन पिछले दिनों ब्लू ऑयस्टर मशरूम (Blue Oyster Mushroom) ने काफी तारीफें बटोरी है. पहले समय में ब्यू ऑयस्टर मशरूम (Blue Oyster Mushroom Farming) सिर्फ पहाड़ी इलाकों में उगाया जाता था, लेकिन खेती की नई तकनीकों के आजाने से अब छोटे से कमरे में भी किसान इसकी खेती कर रहे हैं.


ब्लू ऑयस्टर मशरूम
ब्लू ऑयस्टर मशरूम की बनावट सीपी की तरह ही होती है. यह ऑयस्टर मशरूम की प्रजाति का ही सदस्य है, लेकिन इसका रंग नीला और औषधीय गुण (Herbal Mushroom Blue Oyster)  से भरपूर होता है. विशेषज्ञों की मानें तो ब्लू ऑयस्टर मशरूम के सेवन से हाईब्लड प्रैशर से लेकर डायबिटीज जैसी बीमारियां और कोलेस्ट्रॉल भी कंट्रोल रहता है. इसमें मौजूद प्रोटीन, वसा, फाइबर और कार्बोहाइड्रेट ही इसे बाकी मशरूम से अलग बनाते हैं.




बता दें कि विदेशों के साथ-साथ इस हर्बल मशरूम की मांग अब भारत में भी बढ़ती जा रही है.  सबसे अच्छी बात तो यह है कि ब्लू ऑयस्टर मशरूम की खेती के लिये ज्यादा जद्दोजहद करने की जरूरत नहीं होती , बल्कि सही ट्रेनिंग और मशरूम यूनिट का प्रबंधन करके भी इसका बेहतर उत्पादान ले सकते हैं. 


इस तरह होती है खेती
ब्लू ऑयस्टर मशरूम की खेती के लिये सोयाबीन की खोई, गेहूं का भूसा, धान का पुआल, मक्का के डंठल, अरहर, तिल, बाजरा, गन्ने की खोई, सरसों की पुआल, कागज का कचरा, कार्डबोर्ड, लकड़ी का बुरादा जैसे जैविक कचरे का इस्तेमाल किया जाता है. 



  • इस कृषि अपशिष्ट को भरने के लिये बड़े-बड़े पॉलीबैग का इंतजाम भी करना होता है, ताकि बीज डालकर ठीक प्रकार से उत्पादन मिल सके. 

  • किसान चाहें बिना पॉलीबैग के भी ये मशरूम उगा सकते है. इसके लिये मशरूम की यूनिट में मिट्टी के घड़े या अलमारियों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. 

  • खेत के जैविक कचरे को पॉलीबैग में भरकर बिजाई के लिये तैयार किया जाता है. फिर सभी बैग्स का मुंह बांध देते हैं, ताकि हवा का संचार ना हो.

  • पॉलीबैग में करीब 10 से 15 छेद बनाये जाते हैं, जिनसे मशरूम बाहर निकल सके और पॉलीबैग को अंधेरे कमरे में बंद कर देते हैं.




ब्लू ऑयस्टर का उत्पादन और मुनाफा
ब्लू ऑयस्टर मशरूम की बिजाई करने के बाद पॉलीबैग्स में 15 से 17 दिनों के अंदर कवक जाल बन जाता है, जिससे 20 से 25 दिनों के अंदर ऑयस्टर मशरूम तैयार हो जाते हैं. जानकारी के लिये बता दें कि दिल्ली, बैंगलुरु, चंडीगढ़, पुणे, मुंबई  जैसे बड़े शहरों में ब्लू ऑयस्टर मशरूम हाथों हाथ बिक जाते हैं. कई लोग ब्यू ऑयस्टर मशरूम की व्यावसायिक खेती (Commercial Farming of Blue Oyster Mushroom)  करके इन्हें ऑनालइन भी बेचते हैं और बेहतर मुनाफा कमाते हैं.


बाजार में ब्लू ऑयस्टर मशरूम को 150-200 रुपए प्रति किलो (Blue Oyster Mushroom Price) के भाव पर बेचा जाता है. इस प्रकार किसान कम समय, कम मेहनत और संसाधनों की बचत करके हर्बल मशरूम  ब्लू ऑयस्टर (Herbal Mushroom Blue Oyster) उगा सकते हैं और साधारण किस्मों के मुकाबले अच्छी आमदनी ले सकते हैं. 


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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