Meet Pappammal Amma of 106 years: बिना थके-बिना रुके, धरती पर एक बड़ी उम्र काटने के बाद भी एक महिला हैं जो आज भी जैविक खेती के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लिये बेखौफ होकर जिंदगी जी रही हैं. उन पर न तो उम्र का बंधन है और न ही वो किसी की मदद की मोहताज हैं. 105 वर्ष की पपम्मल आज भी सुबह उठकर अपने खेतों और अपने बागों की देखरेख कर रही हैं. पपम्मल खुद तो जैविक खेती कर ही रही है, साथ ही दूसरे किसानों को इसके प्रति जागरुक कर रही हैं. आज 106 साल बाद बेशक पपम्मल अम्मा ने जैविक खेती करके बड़ा नाम कमाया है, लेकिन उनकी जिंदगी का ये सफर आसान नहीं था.


अकेले जिया बचपन
पपम्मल का जन्म वर्ष 1914 में तमिलनाडु के देवलपुरम गाँव  में हुआ. बेहद कम उम्र में उनके जीवन में चुनौतियों ने दस्तक दी और उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया. विरासत में मिली एक छोटी सी दुकान पर व्यवसाय कर पपम्मल ने अपने गांव में लगभग 10 एकड़ जमीन खरीदी. बेहद कम उम्र से ही उस जमीन पर धान, बाजरा और सब्जियों से लेकर फलों की भी बागवानी शुरू की. 


जैविक खेती के लिये मिला पद्म श्री सम्मान
पपम्मल अम्मा ने बेहद कम उम्र में ही खेती-बाड़ी का जिम्मा उठाया और आज धरती पर एक सदी जीने के बाद भी वो रुकी नहीं हैं. बता दें कि पपम्मल अपने गांव की अकेली महिला किसान हैं, जो उम्र के बंधनों को तोड़ते हुये इतने सालों से लगातार जैविक खेती कर रही हैं. कृषि में उनके इसी योगदान के लिये भारत सरकार ने इन्हें वर्ष 2021 पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा है. 


प्रधानमंत्री ने की सराहना
जैविक खेती के साथ-साथ सामाजिक विकास में पपम्मल अम्मा ने अहम योगदान दिया है. यह योगदान इतना बड़ा है कि खुद प्रदानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके सामने सिर झुकाये खड़े हो गये और पपम्मल अम्मा उन्हें आशीर्वाद देती दिखाई दी. 


खेती के साथ समाज से जुड़ाव
पपम्मल अम्मा बेहद कम उम्र में ही खेती के गुर सीख गई और आज भी ढ़ाई एकड़ जमीन पर जैविक खेती कर रही हैं. उन्होंने अपनी जानकारी को दूसरे किसानों के साथ भी बांटा है और उम्र के बंधनों को तोड़कर दुनिया के लिये मिसाल बनी हैं. आज वे तमिलनाडु के कृषि विज्ञान केंद्र और कृषि विश्वविद्यालय से जुड़कर खेती में इतिहास कायम रही हैं. जानकारी के लिये बता दें कि कुछ समय पहल तक पपम्मल राजनीति में भी सक्रिय रही है.


 


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