बैंगन में लौह, कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन ए-बी-सी भी होते हैं. बैंगन मुख्य रूप से सब्जी के लिए खेती की जाती है. उन्नत वैज्ञानिक क्रियाओं के साथ फसल की जाती है, तो अच्छी उपज मिलती है और किसान अच्छा लाभ कमाते हैं. बैंगन एक वर्ष में तीन बार खाया जा सकता है. नर्सरी तैयार करने के लिए जून-जुलाई और रोपाई के लिए जुलाई-अगस्त अच्छे समय हैं. बैंगन की फसल को उचित जल निकास और बलुई दोमट मिट्टी चाहिए.


खेत तैयार करना


पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए, उसके बाद 3-4 बार हैरो या देशी हल चलाकर पाटा लगाएं. रोपाई से दस से पंद्रह दिन पहले खेत में सड़ी गोबर की खाद मिलानी चाहिए. प्रति हेक्टेयर 120 ग्राम नत्रजन, 60 ग्राम फास्फोरस और 80 ग्राम पोटाश मिलाकर अंतिम जुताई में आधी नत्रजन, पूरी फास्फोरस और पोटाश मिलाना चाहिए.


नर्सरी बनाना


एक हेक्टेयर बैंगन की फसल के लिए 400-500 ग्राम बीज व संकर प्रजातियों का 300 ग्राम बीज उपयुक्त होता है. बुवाई से पहले बीज को ट्राइकोडरमा से इलाज करें. जहां नर्सरी बनानी है, वहां अच्छी तरह से खुदाई करें, खरपतवारों को निकालें और सड़ी हुई गोबर की खाद डालें. जिससे जमीन में जीवांश पर्याप्त मात्रा में रहे. 8 से 10 ग्राम ट्राइकोडमर प्रति वर्ग मीटर में मिलाकर भूमि जनित रोगों को मार डालें. 15 से 20 क्यारियां (एक मीटर चौड़ी और तीन मीटर लंबी) पौध तैयार करने के लिए बनाई गईं. बीज को पांच सेमी की दूरी पर एक सेमी की गहराई पर पंक्ति में बुवाई करें.


रोपण


12-15 सेमी लंबी चार पत्तियों वाली पौध रोपाई के लिए उपयुक्त है. शाम को रोपाई करनी चाहिए. पौधे से 60 गुणा 60 सेमी की दूरी रखनी चाहिए. रोपाई करने के बाद हल्की वर्षा करें. फसल को हर 12-15 दिन में सिंचाई करते रहना चाहिए. फसल की समाप्ति से पहले निराई-गुड़ाई करें.


तुड़ाई और उत्पत्ति


फल को तोड़ना चाहिए जब वे पूर्ण आकार व रंग प्राप्त कर लें. बैंगन की उपज मौसम और प्रजाति पर निर्भर करती है. 250-500 कुंतल प्रति हेक्टेयर की औसत उपज प्राप्त की जा सकती है.