Bull Farming: आज के आधुनिक दौर में मशीनीकरण का चलन काफी बढ़ गया है. इसके फायदे तो कई सारे हैं, लेकिन नुकसान भी हैं. इसने खेती में बैलों के निर्भरता को कम कर दिया है, जो बैल पहले किसानों की असली सवारी होते थे, उनकी जगह ट्रैक्टर और मशीनों ने ले ली है. पशुपालन बस गाय भैंस तक ही सीमित रह गया है, हालांकि देश के कई इलाकों में इन्नोवेटिव आइडिया से बैलों की भागीदारी भी बढ़ाई जा रही है. कुछ लोग पहले से बिजली बना रहे हैं तो कुछ लोग बैलों की मदद से पारंपरिक विधि के साथ तेल का उत्पादन ले रहे हैं. जल्लीकट्टू के बैलों के बारे में तो आपने सुना ही होगा, लेकिन आज हम आपको बताएंगे कि बुंदेलखंड में आयोजित होने वाली बैलों की दौड़ के बारे में.
हर साल बुंदेलखंड में इस दौड़ का आयोजन किया जाता है, जिसमें भाग लेने के लिए कई किसानों-पशुपालकों अपने बालों को उतारते हैं. इस तरह की प्रतियोगिताओं में बैलों की भागीदारी सुनिश्चित करने से पहले उन्हें अच्छी तरह खिलाया पिलाया जाता है, ताकि उनकी सेहत तंदुरुस्त रहे और वह फुर्ती ले रहे. इस साल करीब 12 बैलगाड़ी शामिल हुई और एक अनोखी दौड़ का सिलसिला फिर से जारी रखा.
कैसे होती है यह अनोखी रेस
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड रीजन में आने वाले हमीरपुर में हर साल बैलगाड़ी रेस का आयोजन किया जाता है. इस साल भी 12 बैलगाड़ियों ने इस रेस में भाग लिया, जिसमें से 4 बैलगाड़ी फाइनल में पहुंची.
बैलों की अनोखी दौड़ देखने दूर-दूर से लोग आते हैं. सड़कों पर दौड़ते बैलों को देखकर लोगों का उत्साह और भी बढ़ जाता है, जहां एक तरफ लोग सड़कों पर मोटर साइकिलें दौड़ाते हैं. वहीं एक दूसरे को पछाड़ते बैलों की दौड़ देखकर एक लोग अचंभित रह जाते हैं.
आपको जानकर हैरानी होगी कि बैलों में आखिर इतनी फुर्ती आती कहां से है तो आपको बता दें कि इन बैलों को कोई साधारण चारा नहीं दिया जाता, बल्कि घी और मेवा खिलाया जाता है.
यह बैलों की खास डाइट
किसानों ने बताया कि वह अपने बैलों को प्रतियोगिता में उतारने से पहले ही आवोभगत चालू कर देते हैं. खान-पान से लेकर रख-रखाव का पूरा ख्याल रखा जाता है. बैलों को और अधिक फुर्तीला और मजबूत बनाने के लिए दूध में काजू, किशमिश, बादाम पीसकर खिलाते हैं. इन बलों को भी दूध भी दिया जाता है.
45 साल पहले शुरू हुआ बैल दौड़ का सिलसिला
बैलों की दौड़ कोई नई खबर नहीं है, बल्कि इसे पिछले 45 सालों इसे आयोजित किया जा रहा है. हमीरपुर जिले में इस बैल दौड को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं. साथ ही, बांदा, चित्रकूट, महोबा, जालौन, झांसी, ललितपुर और हमीरपुर के किसान भी इस दौड़ में भाग लेते हैं. इसके लिए कई दिन पहले से ही बैलों को तैयार किया जाता है. इस बैलगाड़ी दौड़ का प्रमुख उद्देश्य लोगों को मशीनों के युग में बैलों की उपयोगिता समझाना है.
बैलगाड़ी रेस में जीतने वालों को इनाम
मीडिया रिपोर्ट की मानें तो बुंदेलखंड में आयोजित की गई इस खास बेल प्रतियोगिता में जीतने वाले प्रतिभागियों को इनाम भी दिया जाता है. बैलगाड़ी रेस आयोजित करने वाली कमेटी किसानों को शील्ड, घड़ी और बड़े-बड़े कूलर भी ईनाम में देती है.
इस कमेटी ने बताया कि किसान और बैलों के बीच की दूरी को कम करने के लिए ही यह दौड़ आयोजित की जाती है. यह इसलिए भी जरूरी है ताकि 25 फीसदी किसानों को फिर से बैल पालने के लिए प्रेरित किया जा सके. इस तरह किसान बैलों को रोड पर छोड़ने के बजाय किसान उनकी पूरी देखभाल करेंगे.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.