भारतीय किसानों को अब पता चल गया है कि अगर कृषि से मुनाफा कमाना है तो ऐसी फसल लगानी होगी जिसकी बाजार में मांग भी हो और उसे बेचने पर अच्छी कीमत भी मिले. इसी तरह की एक फसल है काला चावल, इसे कृषि के क्षेत्र में बहुत से लोग काला सोना भी कहते हैं. औषधीय गुणों से भरपूर इस चावल में कई ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं जो और किसी भी चावल में नहीं मिलते. आज इस आर्टिकल में हम आपको इसी चावल की खेती और इससे होने वाले मुनाफे के बारे में बताएंगे.


कैसे होती है काले धान की खेती?


काले धान की खेती बिल्कुल वैसी ही होती है जैसे की नॉर्मल धान की होती है. मई में इसकी नर्सरी लगाई जाती है और जून में इसकी रोपाई शुरू हो जाती है. वहीं करीब 5 से 6 महीने में इसकी फसल तैयार हो जाती है. भारत में इस वक्त, मणिपुर, असम, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार और अन्य कई राज्यों में हो रही है. हालांकि, मुख्य रूप से इसकी खेती मणिपुर और असम में ही होती है. काले धान से निकलने वाले काले चावल की बाजार में इसलिए ज्यादा डिमांड रहती है क्योंकि इसमें विटामिन बी, विटामीन ई, कैल्शियम, आयरन, मैग्नेशियम, जिंक और कई पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं.


बाजार में कितनी है इसकी कीमत?


काले धान से निकलने वाले काले चावल की बाजार में कीमत की बात करें तो यह 400 से 500 रुपये किलो बड़े आराम से बिक जाती है. वहीं अगर आप सामान्य चावल मंडी में बेचने जाएंगे तो आपको मुश्किल से 30 से 40 रुपये किलो का भाव मिलेगा. इस चावल की डिमांड खासतौर से इंडोनेशिया और अन्य एशियाई देशों में है. हालांकि, भारत में भी धीरे-धीरे लोग इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं. इसलिए अब अन्य राज्यों के किसान भी इस धान की खेती कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ में तो बकायदा किसान इसके लिए ट्रेनिंग ले रहे हैं और बाजार की मांग के हिसाब से खेती कर रहे हैं. सरकार की तरफ से भी इन किसानों जितनी हो सके उतनी मदद दी जा रही है.


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