Big Change: नक्सलियों के गढ़ में लहलहाई जैविक धान की फसल! इस विधि से 120 दिन में मिल गई 50 क्विंटल पैदावार
Paddy Production:बीज उत्पादन के उद्देश्य से लगी जैविक धान इंदिरा एरोबिक-1 तैयार हो चुकी है. ये किस्म 105 से 120 दिनों के अंदर पककर 45 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन दे जाती है.
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Organic Paddy Farming: देशभर में खरीफ फसलों की कटाई का काम पूरा हो चुका है. ज्यादातर किसानों ने धान की कटाई भी निपटा ली है. ऐसे में अब देश के अलग-अलग इलाकों से धान के उत्पादन को लेकर तरह-तरह के रुझान सामने आ रहे हैं. छत्तीसगढ़ को भी धान के प्रमुख उत्पादक राज्य के तौर पर जानते हैं. यहां के ज्यादातर किसान धान की जैविक किस्मों से खेती करते हैं. यही कारण है विदेशों में निर्यात होने वाले धान का एक बड़ा हिस्सा छत्तीसगढ़ से भी मिलता है. अब राज्य में कृषि विज्ञान केंद्र और दूसरे अनुसंधान संस्थान जैविक धान की खेती (Organic Paddy Farming) और बीज उत्पादन में किसानों की मदद कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके दंतेवाड़ा में जैविक धान इंदिरा एरोबिक-1 के सफल बीज उत्पादन का काम तेजी से चल रहा है.
जैविक धान इंदिरा एरोबिक वन
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कृषि विज्ञान केंद्र, दंतेवाड़ा के सहयोग से जैविक धान का बंपर प्रोडक्शन मिला है. इस काम में कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रमुख डॉ. नारायण साहू ने किसानों का मार्गदर्शन किया था, जिसके बाद दूसरे कृषि विशेषज्ञों ने किसानों के साथ मिलकर तकनीकी सहयोग किया है. विशेषज्ञों की मानें तो दंतेवाड़ा में करीब 4 हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान की जैविक किस्म इंदिरा एरोबिक-1 लगाई गई है. यह किस्म 105 से 120 दिनों के अंदर पककर तैयार हो जाती है. इससे एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में 45 से 50 क्विंटल तक उत्पादन ले सकते हैं. फिल्हाल दंतेवाड़ा के खेतों में बीज उत्पादन के उद्देश्य से लगी जैविक धान की फसल तैयार हो चुकी है.
छत्तीसगढ़ में जैविक धार
आज दुनियाभर में छत्तीसगढ़ को 'धान का कटोरा' नाम से पहचाना जाता है. यहां साल में दो बार धान की खेती की जाती है. यहां की उपजाऊ जमीन पर धान का काफी अच्छा प्रॉडक्शन मिल रहा है. फिलहाल जैविक धान को लेकर छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा जिला का सुर्खियों में बना हुआ है. यहां धान के जैविक उत्पादन के लिए पोषण प्रबंधन और जैविक पोषक नियंत्रण का कार्य किया जाता है. बिना किसी केमिकल के धान की फसल से शुद्ध और बेहतर चावल (Organic Rice) का प्रोडक्शन मिलता है, जिसे बाजार में काफी अच्छे दाम मिलते हैं.
जैविक धान की खेती
दंतेवाड़ा की जलवायु और मिट्टी जैविक धान की खेती के लिए बेहद उपयुक्त है. यहां जैविक धान इंदिरा एरोबिक-1 की खेती के लिए भी जैविक विधि अपनाई गई है. यहां खेत की तैयारी के समय ही अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद, मुर्गी की खाद, केंचुआ खाद का मिश्रण डाला गया. साथ में पीएसबी, केएसबी, जेडएसबी और एजोस्पिरिलम जैसे जैव उर्वरकों (Bio Fertilizer) का भी संतुलित मात्रा में इस्तेमाल किया गया है. जैविक खाद-उर्वरकों के इस मिश्रण से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती ही है, साथ ही पर्यावरण को भी कई फायदे होते हैं. धान की रोपाई के बाद पोषण प्रबंधन के लिए फसल पर 500 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से जीवामृत भी डाला जाता है. खेतों में जीवामृत का इस्तेमाल बालियां निकलते समय और फसल के बेहतर विकास के लिए फायदेमंद रहता है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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