Afeem Farming In India: अफीम के पौधों से कई तरह की नशे की सामग्री तैयार की जाती है. अफीम का सबसे बड़ा उत्पादक देश अफगानिस्तान है. वहां विश्व का 85 प्रतिशत अफीम उत्पादन किया जाता है. अफगानिस्तान से कई देशों को अफीम एक्सपोर्ट की जाती है. भारत के कई राज्यों में अफीम की खेती की जाती है. लेकिन अपने देश में अफीम की खेती के लिए सख्त नियम और शर्ताें का पालन करना होता है. इन शर्ताें का उल्लंघन होने पर जेल तक की हवा खानी पड़ सकती है. आइए जानते हैं कि अफीम की खेती करने के लिए क्या कानून हैं और कितने मुनाफे का सौदा है ये खेती. क्या यह कहीं भी बोई जा सकती है.


बिना अनुमति एक पौधा लगाया तो होगा मुकदमा
अफीम की खेती देश में कानूनी प्रक्रिया के अधीन है. देश में अफीम की खेती करने के लिए सबसे पहले लाइसेंस लेना होगा. ऐसा भी नहीं है कि इसे हर जगह बोया जा सकता है. देश में कुछ विशेष जगहों पर ही अफीम की खेती करने की अनुमति दी गई है. कितने खेत में अफीम बोई जा सकती है. इसका निर्धारण भी गवर्नमेंट स्तर से किया जाता है. लाइसेंस की बात करें तो यह वित्त मंत्रालय की ओर से जारी होता है. हालांकि आवेदन सेंट्रल ब्यूरो ऑफ नारकोटिक्स की वेबसाइट पर जाकर करना होता है. लाइसेंस के लिए नियम और शर्तों की लिस्ट 31 अक्टूबर 2020 को जारी कर दी गई हैं. विशेष बात यह है कि अफीम के बीज हर जगह नहीं उगाए जा सकते हैं. यदि एक बीज भी गवर्नमेंट की बिना अनुमति उगाया तो कानूनी कार्रवाई झेलनी पड़ सकती है. इसमें एफआईआर, जेल का प्रावधान है.


इन बीजों की अधिक होती है बुआई
नारकोटिक्स डिपार्टमेंट के कई इंस्टीट्यूट अफीम पर रिसर्च करते हैं. यहीं से अफीम की नई नई प्रजातियां विकसित की जाती हैं. देश में जवाहर अफीम-16, जवाहर अफीम-539 और जवाहर अफीम-540 जैसी प्रजाति के बीज अधिक बोए जाते हैं. प्रति हेक्टेयर में 7 से 8 हेक्टेयर बीज की बुआई की जाती है. 


अक्टूबर से नवंबर तक होती है बुआई
अफीम की बुआई ठंड में की जाती है. अक्टूबर से नवंबर के बीच इसकी बुआई की जाती है. इसके लिए खेत का साफ किया जाना जरूरी है. खेत को 3 से 4 बार अच्छे से जोतकर गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट डाली जाती है. अफीम की खेती जिस जगह करनी है. इसकी जानकारी नारकोटिक्स डिपार्टमेंट के अपफसरों को देनी होती है. अधिकारी मौके पर पहुंचकर स्थलीय निरीक्षण करते हैं. 


इस तरह होती है तैयार
अफीम की बुआई करते ही पौधे में 95-115 दिनों में फूल आने लगते हैं. धीरे धीरे ये फूल झड़ जाते हैं. 15 से 20 दिन में पौधों में डोडे आने लगते हैं. डोडे जब मैच्योर अवस्था में होत हैं तो इनमें दोपहर से शाम के बीच चीरा लगाया जाता है. चीरा लगने के बाद डोडे से तरल निकलने लगता है. इसे अगले दिन तक के लिए ऐसे ही छोड़ दिया जाता है. तरल को धूप निकलने से पहले एकत्र कर लिया जाता है. डोडे से जबतक तरल निकलना बंद न हो जाए, तबतक यह प्रक्रिया दोहराई जाती है. बाद में डोडे के सूखने पर बीज निकाल दिया जाता है. इसी से अफीम बनने की प्रक्रिया होती है. नारकोटिक्स डिपार्टमेंट किसानों से अफीम की खरीदारी करता है. 


लेटेक्स की बिक्री करते हैं किसान
अफीम का बीज 150 से 200 रुपये प्रति किलो तक मिल जाता है. खेत में प्रति हेक्टेयर 7 से 8 किलो बीज की जरूरत होती है. जानकार बताते हैं कि डोडे से निकले तरल से लेटेक्स बनता है. यह एक हेक्टेयर पैदावार में करीब 50 से 60 किलो तक एकत्र हो जाता है. सरकार इसे 1800 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से खरीदती है, जबकि ब्लैक मार्केट में इसकी कीमत एक लाख रुपये से अधिक होती है. इसी कारण किसान लेटेक्स को सीधे सरकार को बेचने के बजाय कालाबाजारी में खपाना अधिक पसंद करते हैं. 


देश में यहां होती है अफीम की खेती
देश में भी अफीम की खेती की जाती है. यूपी, राजस्थान और मध्य प्रदेश में अफीम की खेती की जाती है. राजस्थान में झालावाड़, भीलवाड़ा, उदयपुर, कोटा, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़ जैसी जगहों पर इसकी खेती होती है. उत्तर प्रदेश में बाराबंकी, मध्यप्रदेश में नीमच, मंदसौर में अफीम की खेती की जाती है. एक बात और है कि यदि फसल को नुकसान पहुंचता है या किसी कारण बर्बाद हो जाती है तो तुरंत इसकी सूचना नारकोटिक्स डिपार्टमेंट को देनी होती है. गवर्नमेंट इसका मुआवजा देती है. 


तोतों को लग जाती है अफीम की लत
अफीम की खेती के रखरखाव की जरूरत होती है. दरअसल, तोते अफीम की खेती के आसपास फटकना शुरू कर देते हैं. पहले ये अफीम को शाौकिया तौर पर खाते हैं. बाद में नशे के कारण इन्हें लत लग जाती है. भगाने के बाद भी ये भागते नहीं है. इसलिए पहले ही अहतियात बरतने की जरूरत है. 


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.



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