Cashew Cultivation: भारत मे पुराने समय से ही पाठ पूजा से लेकर स्वास्थ्य की देखभाल तक काजू का इस्तेमाल (cashew Nuts)  बड़े पैमाने पर किया जाता है. देश में इसकी खपत को सालभर रहती है, साथ ही इसकी बागवानी (Cashew Farming) भी केरल, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में की जा रही है. कम समय में अच्छा मुनाफा देने के कारण काजू की खेती (Cashew Cultivation) उत्तर प्रदेश और झारखंड के किसानों के लिये वरदान बनती जा रही है. 


काजू से अच्छा मुनाफा कमाने के लिये अब किसान इसकी व्यावसायिक खेती (Commercial Farmig of Cashew) पर जोर दे रहे हैं. बता दें कि दुनियाभर में इसके उत्पादन का 25 फीसदी हिस्सा भारत से निर्यात (Cashew Export)  किया जाता है. 




काजू का पेड़
काजू के पेड़ की लंबाई 46 फीट तक होती है. गर्म या सामान्य तापमान वाले इलाकों में इन पेड़ों से उत्पादन लेना काफी आसान रहता है. कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक  20 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान में काजू की बागवानी की जा सकती है, इसलिये भारत के तटीय इलाकों में इसकी खेती ठीकठाक मात्रा में होती है. भारी बारिश और पाले के कारण इसकी फसल को काफी नुकसान होता है, इसलिये तापमान को ध्यान में रखते हुये ही इसकी खेती करना फायदेमंद रहता है.
 
काजू की खेती
काजू की खेती के लिये सबसे पहले मिट्टी की जांच करनी चाहिये, जिससे मिट्टी के गुण-दोषों का पता लगा सकें. वैसे तो हर प्रकार की मिट्टी में काजू की बागवानी की जा सकती है, लेकिन लाल बलुई दोमट मिट्टी,  रेतीली लाल मिट्टी, तटीय रेतीली मिट्टी और लेटराइट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है.



  • काजू के पौधों की रोपाई से पहले मिट्टी में जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिये, क्योंकि मिट्टी में पानी के ठहराव के कारण पौधों में बीमारियां लगने का खतरा बना रहता है. 

  • वुड ग्राफ्टिंग विधि से काजू की खेती करके अच्छा उत्पादन ले सकते हैं. काजू के नये बाग लगाने के लिये कलम विधि का इस्तेमाल भी फायदे का सौदा साबित हो सकता है. 

  • काजू की 30 से भी ज्यादा व्यावसायिक किस्में पाई जाती है, जिसमें से वेगुरला- 4, उल्लाल- 2, उल्लाल- 4, बी पी पी- 1, बी पी पी- 2, टी- 40 काफी अच्छा उत्पादन देती हैं.




इस तरह मिलेगा डबल मुनाफा
दरअसल काजू की बागवानी लंबी अवधी की फसल है, जिसकी फलत और देखभाल में काफी समय देना होता है. इस बीच किसानों के पास दूसरी आमदनी का जरिया भी नहीं होता. ऐसी स्थिति में काजू की खेती के साथ दूसरी फसलों की अंतरवर्तीय खेती करके कई किसान सामान्य से अधिक आमदनी भी कमाते हैं. 


बता दें कि काजू के पौधों के बीच में मूंगफली, दाल या फलियों के अलावा जौ, बाजरा याा काकुम जैसी फसलों की अंतरवर्तीय खेती कर सकते हैं. इस प्रकार काजू की फसल से तो आमदनी होगी ही, लेकिन बीच-बीच में ये फसलें लाखों का मुनाफा करोड़ों में बदल देंगी. 




काजू की खेती और आमदनी
काजू के फल (Cashew Fruits) पकने के बाद उनकी तुड़ाई नहीं की जाती, बल्कि जमीन में पड़े नट्स (Cashew Nuts)  को इकट्ठा करके धूप में सुखाया जाता है. हर एक सीजन में काजू के प्रति पौधे (Cashew Trees) से 8 से 10 किलो नट्स का उत्पादन ले सकते हैं, जिसकी कीमत लगभग 1200 रुपये प्रति किलो होती है. इस प्रकार हर पेड़ से 12,000 रुपये की आमदनी होती है, जिन्हें सुखाने के बाद बोरों में भरकर निर्यात (Cashew Export) किया जाता है.


इसकी प्रति हेक्टेयर जमीन पर खेती करने से 10 से 17 क्विंटल तक नट्स का उत्पादन (Cashew Production) मिल जाता है, जिनसे कई लाखों की आमदनी हो जाती है. बेहतर मार्केटिंग (Cashew Marketing)  के लिये कई किसान इनकी पैकेजिंग और प्रोसेसिंग (Cashew Processing) पर भी काम करते हैं.




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