Krishi Discission Support System:  प्राकृतिक आपदा और वैश्विक महामारी के बावजूद भारत के एग्रीकल्चर सेक्टर लगातार ग्रोथ कर रहा है, लेकिन अब जलवायु परिवर्तन जैसे जोखिम कृषि उत्पादन को कम करते जा रहे हैं. इससे किसानों के आगे आर्थिक संकट पैदा हो जाता है. इस साल खरीफ सीजन में भी खेती-किसानी पर कुछ ऐसी ही परिस्थितियां हावी रहीं, इसलिए अब भारत सरकार ने भी कृषि क्षेत्र को अंतरिक्ष से जोड़ने का फैसला किया है. हाल ही में कृषि और किसान कल्याण विभाग और अंतरिक्ष विभाग ने कृषि-निर्णय समर्थन प्रणाली (Krishi-DSS) विकसित करने के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे मौसम का पूर्वानुमान, फसल उत्पादन का आकलन, मिट्टी का डाटा,फसल में नुकसान का सर्वे और प्राकृतिक आपदाओं का भी आकलन करने में मदद मिलेगी. खेती को आसान बनाने के लिए समय-समय पर किसानों के लिए भी गाइडलाइन्स जारी की जाएंगी, जिससे किसानों को भी फसल के उत्पादन के साथ-साथ उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलेगी. जोखिम से पहले से ही किसान सतर्क हो जाएंगे और फसल को सुरक्षित रखना भी आसान हो जाएगा.


क्यों है ये जरूरी
दरअसल कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, अंतरिक्ष विभाग के भू-प्रेक्षण उपग्रह-04 (री-सैट-1ए) और वेदाज का उपयोग करते हुए गति शक्ति की तर्ज पर एक निर्णय समर्थन प्रणाली (कृषि-डीएसएस) विकसित कर रहा है. यह प्रणाली इसरो के मोसडेक और भुवन (जियो-प्लेटफॉर्म) के साथ-साथ भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सिस्टम के एकीकरण के जरिए कृषि के सभी हितधारकों को डेटा के आधार पर यही फैसला करने में मदद करेगी. 


किसानों को मिलेंगे ये फायदे
कृषि क्षेत्र को अंतरिक्ष की ताकत से मजबूत बनाने के लिए एमओयू साइन होने के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि अंतरिक्ष विभाग से सहयोग से कृषि क्षेत्र में क्रांति की शुरुआत हो रही है. इस समझौते से कृषि क्षेत्र की ताकत बढ़ेगी ही, किसानों की आय को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी, इसलिए ये तकनीक कृषि क्षेत्र के साथ-साथ पूरे देश के लिए फायदेमंद है.जब पूर्वानुमान के हिसाब से किसान अपना उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाएंगे तो एक्सपोर्ट के असर बढ़ेंगे. 






कैसे काम करती है ये तकनीक
इस कार्यक्रम के दौरान कृष‍ि मंत्रालय ने बताया कि आरआईसैट देश की पहली रडार इमेजिंग सैटेलाइट है, जो रौशनी पर निर्भर नहीं है, बल्कि हर परिस्थिति में अंतरिक्ष से हाई रिजॉल्यूशन पिक्चर्स ले सकती है. इस सेटेलाइट से मिले डाटा के आधार पर कृषि, पर्यावरण, जल संसाधन और आपदा प्रबंधन के लिए नया सिस्टम डेवलप करने में मदद करेगा. इसका सीधा फायदा छोटे और सीमांत किसानों को ही होगा, क्योंकि कम रकबे में खेती करने वाले इन किसानों को काफी नुकसान झेलना पड़ता है. ऐसे में समय से पहले जोखिमों को समझकर किसान सतर्क हो जाएंगे. इससे फसल की सुरक्षा, अच्छी पैदावार और आय बढ़ाने में मदद मिलेगी. 


आप सेटेलाइट बनाएं, हम छोड़ेंगे
कृषि मंत्रालय के साथ ये खास समझौता करने के बाद अंतरिक्ष विभाग के राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आज हमने एमओयू साइन कर लिया है, लेकिन अगली बार इसकी आवश्यकता नहीं पड़ेगी. उन्होंने कहा कि आप अपना सेटेलाइट बनाएंगे और हम उसे छोड़ेंगे. ये काम अभी से चालू हो गया है, लेकिन जहां तक एग्रीकल्चर सेक्टर की बात है तो 4-5 लेवल पर वैज्ञानिक तकनीकों के इस्तेमाल को बढ़ाना होगा. इसमें ड्रोन सबसे अहम है, क्योंकि कई ऐसी फसलें हैं, जहा सिंचाई मुश्किल हो जाती है. ऐसे इलाकों में ड्रोन से सिंचाई की जा  सकती है. दूसरा लेवल है कृषि उत्पादन को बढ़ाना, तीसरा है कृषि उत्पादों की सेल्फ लाइफ को बढ़ाना, जिससे देश के कोने-कोने तक बिना नुकसान के उपज को पहुंचाया जा सके और चौथा है आपदा नियंत्रण, जिससे नुकसान को कम किया  जा सके.  






इसरो ने भी किया था सहयोग
जाहिर है कि कृषि क्षेत्र एक अनिश्चितताओं का काम है, जो प्रकृति के तमाम बदलावों को झेलता है. यही वजह है कि इस सेक्टर में नुकसान की संभावनाएं कुछ ज्यादा ही हैं. कभी कीट-रोग तो कभी मौसम की मार से फसल बर्बाद हो  जाती है और किसान आर्थिक संकट में आ जाते हैं. कृषि प्रधान देश होने के नाते अब इन सभी चुनौतियों से निपटने का काम चालू हो रहा है. इस संबंध में इसरो ने भी 'भारतीय कृषि सेटेलाइट प्रोग्राम' लॉन्च किया है, जिसकी मदद से किसानों को समय से पहले ही मौसम का सटीक पूर्वानुमान मिल जाएगा और आपदा से पहले प्रबंधन कार्य करने में आसानी रहेगी.इसके तहत सीधा सेटेलाइट से डेटा लिया जाएगा, जिसका विश्लेषण करके किसानों को एडवायजरी और गाइजलाइन्स  जारी की जाएंगी. 


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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