Banana Farming In Bihar: भारत कृषि प्रधान देश है. यहां की बड़ी आबादी खेती किसानी पर निर्भर है. किसान जमीन को सींचकर ही अपना पेट भरते हैं. कंपनियों की तरह किसानों में भी होड़ रहती है कि अधिक से अधिक उन्नत बीज लाकर अच्छी बुवाई कर सकें. इससे कमाई के मामले में एक किसान दूसरे किसान से बेहतर आय कर लें. इसी होड़ के फायदे हैं तो नुकसान भी हैं. फायदा ये है कि यह किसानों को आर्थिक रूप से संपन्न बनाता है. जबकि एक बड़ा नुकसान यह है कि इस होड़ में किसानों ने उन प्रजातियों की बुवाई बंद कर दी, जिनकी ग्रोथ बेशक थोड़ी सुस्त थी. लेकिन सेहत के लिए उतनी ही पफायदेमंद है और हर मौसम को झेलने वाली होती थीं. वहीं, कुछ प्रजाति बीमारी के चलते भी लुप्त हो गईं. बिहार के वैज्ञानिकों ने ऐसी ही प्रजाति को पुनर्विकसित करने का काम किया है, जोकि पिछले कुछ समय से राज्य में अपनी पहचान खो चुकी थी. 


चिनिया और मालभोग केले को दिया पुर्नजन्म 
बिहार का चिनिया और मालभोग केला राज्य की पहचान रहा है. यह खाने में टेस्टी और ओषधीय गुणों से भरा था. लोग इसे बड़े चाव से खाते थे. विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य में 80 प्रतिशत तक उत्त्पादन इन्हीं केलों का उत्पादन होता था. लेकिन धीरे धीरे इस केले ने अपनी पहचान शुरू कर दिया है. अब वैज्ञानिकों ने इन्हीं प्रजातियों को पुनर्विकसित किया है. 


पनामा बिल्ट की चपेट में आ गई थीं केले की प्रजाति
विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य की पहचान चिनिया और मालभोग केले का अंत ऐसे ही नहीं हुआ. यह प्रजाति पनामा बिल्ट नामक बीमारी की चपेट में आ गईं. 30 साल पहले इतने अच्छे उर्वरक मौजूद नहीं थे. किसानों ने थोड़ा बहुत तो केलों को बचाने की कोशिश की. लेकिन जब बीमारी नहीं रूकी तो किसानों ने केलों की दूसरी प्रजातियों की बुआई की ओर रूख कर लिया. 


टिश्यू कल्चर से तैयार की प्रजाति
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर ने टिश्यू कल्चर की मदद से केले की प्रजाति को पुर्नजन्म दिया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि चिनिया के केले के गुणवत्तायुक्त निरोगी पोधों का कई स्तर पर परीक्षण किया गया है. अब यह पौधा मिटटी में लगा दिया है. टिश्यू कल्चर से तैयार हुए पौधे में 13 से 15 महीने में पफल आने लगते हैं, केला भी 30 से 35 किलोग्राम तक आता है. जबकि सामान्य विधि से केले की बुवाई में 16 से 17 महीने लग जाते हैं. 


इतना फायदेमंद है चिनिया केला
चिनिया केला खटटा-मीठा होने के साथ खाने में बेहद टेस्टी होता है. आटा और चिप्स बनाने में यह काम आता है. आयरन और पाचन के लिए अच्छा होने क कारण बाजार में इसकी अच्छी मांग है. इसके अलावा गठिया, हाई ब्लड प्रेशर, किडनी, आंखों की बीमारी, इम्यून सिस्टम बूस्ट करने में यह बेहद कारागर है. इससे किसानों की इनकम भी बढ़ जाएगी. 



Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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