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2025 तक बाजार में आ जाएगी हिमाचली दालचीनी, इन 5 जिलों में चल रही वैज्ञानिक खेती

Cinnamon Farming: दालचीनी की बढ़ती मांग के बीच किसानों ने इसके पौधों की रोपाई की थी, जिनकी तेजी से ग्रोथ हो रही है. अनुमान है कि 2025 तक दालचीनी तैयार होकर बाजार में मार्केंटिंग के लिए पहुंच जाएगी.

Himachali Dalchini: कोरोना काल में मसालों और औषधियों का इस्तेमाल काफी बढ़ गया. इस बीच दालचीनी की मांग में भी काफी तेजी आई. यह भारतीय रसोई का सबसे प्रचलित मसाला है,जो पेड़ की छाल से मिलता है. अबी तक दक्षिण भारतीय राज्यों में ही दालचीनी की खेती हो रही थी, लेकिन अब वैज्ञानिकों के सहयोग से हिमाचल प्रदेश के किसान भी दालचीनी उगा रहे हैं. राज्य के 5 जिलों- हमीरपुर, सिरमौर, बिलासपुर, ऊना, कांगड़ा में दालचीनी की खेती की जा रही है. यहां ट्राइल के तौर पर साल 2022 में दालचीनी के पौधों की रोपाई की गई थी, जो अब तेजी से विकसित हो रहे हैं. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2025 तक पेड़ की छाल पर दालचीनी तैयार हो जाएगी और बाजार में बिकने के लिए पहुंच जाएगी.

10,000 से अधिक पौधों की रोपाई
मीडिया रिपोर्ट की मानें तो हिमाचल प्रदेश में ट्राइल के तौर पर 50-50 दालचीनी के पौधे लगाए गए थे, लेकिन जब 2022 में अचानक दालचीनी की मांग में इजाफा हुआ तो किसान भी इसकी खेती में दिलचस्पी लेने लगे. फिर क्या हमीरपुर, सिरमौर, बिलासपुर, ऊना, कांगड़ा के किसानों ने करीब 10,000 पौधे अपने खेतों में लगवाए. हाल ही में हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (CSIR) पालमपुर  के वैज्ञानिकों ने किसानों के खेत का दौरा करके दालचीनी के पौधों का निरीक्षण किया है और परिणाम काफी संतोषजनक हैं.

तेजी से ग्रोथ कर रहे पौधे
हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (CSIR) पालमपुर  के वैज्ञानिकों ने निरीक्षण में पाया कि पौधों की ग्रोथ काफी तेजी से हो रही है. प्लांट्स एक दम हेल्दी हैं, जिनसे 2025 तक दालचीनी का भरपूर प्रोडक्शन मिलने की संभावना है. इस प्रोजेक्ट को लेकर सीएसआईआर के वैज्ञानिक डॉ. रमेश चौहान ने बताया कि एक बार दालचीनी के पौधों की रोपाई करने के बाद 4 साल के अंदर उत्पादन मिलना चालू हो जाता है. इस हिसाब से साल 2025 तक दालचीनी की उपज मिलने लग जाएगी, क्योंकि इस समय तक पौधों का विकास तेजी से हो रहा है.  

औषधीय गुणों से भरपूर है दालचीनी
दालचीनी को भारतीय रसोई का सबसे लोकप्रिय मसाला बताते हैं, जिसे नए-पुराने व्यंजनों से लेकर चाय और हेल्थ ड्रिक्स और दवाई के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है. एक रोचक तथ्य यह भी है कि पेड़ की छाल को दालचीनी, जबकि पत्तों को तेजपत्ता मसाले के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. इन दोनों में ही कोलेट्रॉल को कंट्रोल करने की क्षमता है. इनके सेवन से पेट की समस्याओं से लेकर सर्दी-जुकाम, हड्डियों में दिक्कत, गठिया, मोटापा, मधुमेह जैसी घातर बीमारियों का खतरा दूर किया जा सकता है. दक्षिण भारत के केरल और तमिलनाडु से दालचीनी-तेजपत्ता का सर्वाधित उत्पादन मिलता है.

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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