Farming amidst Climate Change: जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों से आज पूरी दुनिया त्रस्त हो चुकी है. इसका सबसे बुरा असर हमारे पर्यावरण और खेती पर पड़ रहा है. कभी बाढ़ तो कभी सूखा पड़ने के कारण फसलों का उत्पादन कम हो रहा है. साथ ही किसानों की आजीविका के लिए संकट खड़ा होता जा रहा है. जब कभी बारिश के कारण बाढ़ आती है तो सबसे पहले ग्रामीण लोगों का जन-जीवन प्रभावित होता है. खेती करना तो मुश्किल होता ही है, रोजी-रोटी की समस्या भी पैदा हो जाती है. भारत का पड़ोसी देश भी कुछ ऐसी ही समस्याओं से जूझ रहा है.


समुद्र के नजदीक और नदियों की मौजूदगी के कारण बांग्लादेश में आए दिन बाढ़ जैसी संभावनाएं खड़ी हो जाती हैं. ये तटीय देश प्रकृति के काफी करीब है, लेकिन आज यहां के किसान अपनी आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यहां के ज्यादातर इलाकों में खेती की जमीन पर पानी भर जाता है. इन परिस्थितियों में भी 200 साल पुरानी खेती की तकनीक किसानों के लिए वरदान साबित होती है. पहले तो कभी-कभी बाढ़ जैसे हालात होते थे, तब ही किसान इन तैरते खेतों पर खेती करते थे, लेकिन आज ज्यादा समय तक खेतों में पानी भरने के कारण इस तरह खेती करना किसानों की मजबूरी बनती जा रही है.


पुरखों की खेती बनी सहारा


समुद्र का जल स्तर बढ़ने के कारण बांग्लादेश (Bangladesh) में बाढ़ आने की समस्या काफी आम है. यहां के कई इलाकों में पानी खड़ा हो जाता है, जिससे किसानों की रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाता है. इन परिस्थितियों में आजीविका कमाने के लिए किसान पानी पर खेती करते हैं. 200 साल पुरानी इस तकनीक में जाल का इस्तेमाल किया जाता है. ये कुछ-कुछ आधुनिक तकनीक हाइड्रोपॉनिक खेती (Hydroponics Farming) की तरह ही है, जिसमें पानी के ऊपर सब्जियां उगाते हैं.


मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बांग्लादेश के दक्षिण-पश्चिम इलाकों में इस तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है. यहां के किसान मोहम्मद मुस्तफा अपनी आजीविका के लिये पानी पर तैरते ढांचे पर खेती कर रहे हैं. ये उनके पुरखों की तकनीक है, जिस पर उनके दादा-परदादा 200 साल से खेती करते आ रहे हैं.



बढ़ गया है तैरती खेती का रकबा


बांग्लादेश एक तटीय देश है, जिसकी ज्यादातर जमीन समुद्र किनारे ही है. यहां की बड़ी आबादी अपनी आजीविका के लिए खेती-किसानी और मछली पालन पर निर्भर करती है. यहां सर्दी, गर्मी और बारिश की तरह ही बाढ़ का मौसम भी होता है. पहले सिर्फ 5 महीने ही बाढ़ की समस्या रहती थी, लेकिन आज यहां के कई इलाके 8 महीनों तक जलमग्न रहते हैं. यही कारण है कि साधारण तरीकों से खेती करना तो जैसे नामुमकिन हो जाता है. उदाहरण के लिए नजीरपुर जिले में 5 साल पहले तक 80 हेक्टेयर क्षेत्र में पानी पर तैरते खेत हुआ करते थे, लेकिन अब ये खेत 120 हेक्टेयर में फैल चुके हैं. इतना ही नहीं, 5 साल पहले तक सिर्फ 4,500 किसान ही खेती की इस तकनीक पर निर्भर थे, लेकिन आज जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम और जल भराव के कारण 6,000 किसान तैरते हुए खेतों (Floating Farms) से आजीविका कमा रहे हैं. 


बाढ़ से प्रभावित बांग्लादेश


वैसे तो आज पूरी दुनिया ही जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को झेल रही है. भारत में मौसम की अनिश्चितताओं के कारण खेती और किसानों का काफी संघर्ष करना पड़ता है, लेकिन बांग्लादेश की परिस्थितियां काफी अलग हैं. यहां के हालातों पर पूरी दुनिया की नजर है. हाल ही में बांग्लादेश के पर्यावरण पर काम करने वाली संस्था जर्मनवाच ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले देशों की सूची में बांग्लादेश सातवें स्थान पर है. यहां आए दिन बाढ़ का संकट खड़ा हो जाता है, जिसके चलते अब यहां के किसान अपने पुरखों से विरासत में मिली खेती को दोबारा अपना रहे हैं. 




Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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