Banana & Turmeric Co-Crop Farming: भारत में बढ़ती जनसंख्या के कारण फल, सब्जी, अनाज और डेयरी उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है. ऐसे समय में बड़ी जनसंख्या की मांग को कम जमीन के जरिये पूरा करना चुनौती पूर्ण काम बन जाता है. इसलिये किसान सह-फसली खेती (Co-Crop Farming) करने पर जोर दे रहे हैं.


जानकारी के लिये बता दें कि खेती की इस तकनीक (Sustainable Farming) के तहत एक ही खेत में दो या दो से ज्यादा फसलें उगाई जा सकती हैं. इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति (Soil Health) बढ़ती है, भूमि में जल स्तर (Ground Water level) कायम रहता और किसानों को भी दोगुना आमदनी कमाने का मौका मिल जाता है.


खेत एक, फसल अनेक
फलों और मसालों की सह-फसली खेती करने से मिट्टी के साथ-साथ फसल की क्वालिटी भी बेहतर बनती है. इसी प्रकार केला और हल्दी की सह-फसली खेती करने पर कोई नुकसान नहीं होता, लेकिन फायदे कई सारे मिल जाते हैं. जहां खेत में केले की फसल की रोपाई के बाद 12-14 महीने में फसल पककर तैयार हो जाती है, तो साथ में हल्दी की फसल भी रोपाई के एक साल बाद ही कटाई के लायक हो जाती है. रिसर्च की मानें तो एक साल दो फसलों की खेती करने से फसल की पैदावार समय से पहले ही मिल जाती है, क्योंकि ये फसलें एक-दूसरे के लिये पोषण का जरिया बनती हैं. 




खर्च कम, आमदनी ज्यादा
सह-फसली खेती करने का सबसे बड़ा फायदा ये है कि छोटी जमीन में लागत कम और कम समय में आमदनी डबल हो जाती है. जैसे केला और हल्दी को साथ में उगाने पर खाद-उर्वरक और सिंचाई का खर्च आपस में बंटकर कम हो जाता है. किसान दोनों फसलों में कृषि कार्य साथ में ही कर लेते हैं, जिससे मेहनत भी ज्यादा नहीं लगती, जिससे किसानों को दूसरी तकनीकों से ज्यादा मुनाफा मिल जाता है. उदाहरण के लिये एक हेक्टेयर खेत में केले और हल्दी की सह-फसली खेती करने से अच्छी क्वालिटी की उपज मिलती है, जिससे कुछ समय बाद केले की बिक्री से 10 लाख रुपये तक का मुनाफा और हल्दी को बेचकर 3-4 लाख रुपये की आमदनी हो सकती है.


बरतें ये सावधानियां
वैसे तो एक साथ दो फसलों की खेती करने के कोई नुकसान नहीं होते, लेकिन ज्यादा मुनाफा लेने के चक्कर में कई बार जरूरी बातें ध्यान से निकल जाती हैं. इसका सीधा असर फसल (Crop Farming) और खेती के बजट (Farming Budget) पर पड़ने लगता है.



  • सब्जी, फल, मसाले, अनाज और दालों की सह-फसल खेती करते समय अलग-अलग किस्मों का चयन करना चाहिये.

  • वैसे तो खाद और सिंचाई (Fertilizer & Irrigation) में ज्यादा खर्च नहीं आता, लेकिन फिर भी दोनों फसलों की जरूरत के हिसाब से ही अलग-अलग पोषण प्रबंधन (Nutrition Management) करना चाहिये.

  • दोनों फसलों में रोपाई और कटाई का समय अलग होना चाहिये, जिससे किसानों के ऊपर कटाई, बिक्री और भंडारण (Storage)का बोझ न पड़े.

  • सह-फसली(Co-Croping) खेती के तहत बोई गई फसलों में कीड़े और बीमारियों की निगरानी (Pest Control) करते रहना चाहिये, जिससे दोनों फसल सुरक्षित रहें.




Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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