Co-cropping Farming in September: किसानों की आय को दोगुना करने के लिये खेती में नवाचार को बढ़ावा दिया जा रहा है. खेती की उन्नत तकनीक (Farming Techniques) और खेती की नई विधियों को अपनाकर कम मेहनत में अच्छा उत्पादन ले सकते हैं. खेती की ऐसी ही उन्नत विधियों (Advanced Agriculture)में शामिल है सह-फसल खेती की विधि, जिसके तहत मुख्य फसलों के साथ-साथ खेत की खाली मेड़ों पर सब्जियों और मसालों की बुवाई (Sowing Spices & Vegetables) की जाती है.


इस तरह लंबी अवधि की फसलों के बीच-बीच में किसानों को खेती और परिवारिक खर्च निकलने में आसानी होती है. किसान चाहें तो खरीफ सीजन की मुख्य फसलों (Co-cropping in September) के साथ कुछ सब्जी या मसालों की फसल लगाकर अच्छा उत्पादन (Kharif Crops Production) और बेहतर आमदनी कमा सकते हैं.


जीरा की खेती
जीरा एक मुख्य मसाला फसल है, जिसके बिना भारतीय खाने का स्वाद ही अधूरा है. भारत में इसकी डिमांड तो काफी ज्यादा है, लेकिन उत्पादन काफी कम. यही कारण है कि बाजार में इसे ऊंचे दामों पर बेचा जा रहा है. किसान चाहें तो इस नकदी मसाला फसल के बीजों को खेत की मेड़ों पर लगा सकते हैं. इसके लिये अलग से खाद-सिंचाई की जरूरत नहीं पडेगी, बल्कि मुख्य फसल की लागत में ही जीरा की फसल से (Co-Cropping of Cumin Seeds) बेहतरीन उत्पादन ले सकते हैं.


सौंफ की खेती
सौंफ एक मसाला होने के साथ-साथ आयुर्वेदिक औषधी भी है, जिसकी एंटीफंगल प्रॉपर्टीज शरीर को हानिकारक बैक्टीरिया से सुरक्षित रखती है. इसका इस्तेमाल अचार, व्यंजन, माउथफ्रैशनर के अलावा पेट और गले की बीमारियों के इलाज में भी किया जाता है. सौंफ की खेती (Co-cropping of Fennel) से जुड़ी सबसे अच्छी बात यह है कि इसे बेचने के लिये मंडियों के चक्कर काटने की जरूरत नहीं है, बल्कि फुटकर बाजार और पंसारी-परचून की दुकानों पर भी इसे बेचकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.


हरी मिर्च की खेती
हरी मिर्च एक सदाबहार फसल है, जिसकी खेती गमलों से लेकर बड़े खेत-खलिहानों में भी कर सकते हैं और हर जगह इसका बेहतरीन उत्पादन (Co-cropping of Green Chili) ले सकते हैं. इसी प्रकार बाजार में भी हरी मिर्च की मांग बनी रहती है. किसान चाहें तो मेड़ों पर या क्वयारियां बनाकर हल्की-पतली हरी मिर्चों की बुवाई करके अतिरिक्त उत्पादन ले सकते हैं.


धनिया की खेती
भारतीय रसोईयों में धनिया का इस्तमाल हरी पत्ती और सूखे मसाले के तौर पर किया जाता है और ये दोनों ही रूप में ऑफ सीजन के दौरान काफी ऊंचे दामों पर बिकता है. हरा धनिया की फसल कम देखभाल में ही ठीक तरह विकसित हो जाती है. किसान चाहें तो बाजार मांग के अनुसार इसकी पत्तियां या फिर सूखे मसाले का भी उत्पादन (Co-cropping of Coriander) ले सकते हैं. 


पालक और मेथी की खेती
सितंबर आते-आते पालक और मेथी (Spinach and Fenugreek) की मांग भी बाजार में बढ़ने लगती है और अगले 6 महीने तक इसकी आपूर्ति करनी होती है. ऐसे में रबी सीजन से पहले मेड़ों पर मेथी और पालक के बीज लगाकर बुवाई कर सकते हैं. बता दें कि शुरूआती सीजन में पालक और मेथी की पत्तेदार सब्जी बाजार में काफी अच्छी कीमत पर बिकता है. आधुनिकता के दौर में अब ड्राई मेथी और ड्राई पालक की डिमांड भी बढ़ती जा रही है, इसलिये इन सब्जियों की सह-फसल खेती (Co-Cropping of Vegetables) फायदे का सौदा साबित हो सकती है. 


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