Cooking Oil Price: मार्च में होली का पर्व है. फरवरी लगभग गुजरने को है. देशवासी होली त्यौहार को मनाने की तैयारियों में जुटे हैं. होली पर गुंजिया, पपड़ी, पकौड़े, समोसे समेत तमाम तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं. लोग एक दूसरे के घरों पर जाकर इन व्यंजनों को खाते हैं और जमकर होली खेलते हैं. कई बार यही व्यंजन आम आदमी की जेब से दूर हो जाते हैं. वजह होती है, इन व्यंजनों पर आने वाली लागत. लेकिन इस होली लोगों को राहत मिलने की उम्मीद है. यह राहत की खबर खाद्यतेलों की ओर से आई है. इस बार खाद्यतेल के दामों में तेजी से गिरावट दर्ज की जा रही है. यही हाल रहा तो होली पर व्यंजन बनाना खूब सस्ता हो जाएगा. 


अधिकांश तेलों के दामों में गिरावट दर्ज


दिल्ली तेल तिलहन बाजार में अधिकांश तेल तिलहनों के दामोें में गिरावट दर्ज की जा रही है. विदेशों से आ रहे तेलों के आगे देसी तेलों के दाम टिक नहीं पा रहे हैं. मजबूरी में देसी तेलों के दाम किसान, कारोबारियों को घटाने पड़ रहे हैं. इसी का नतीजा है कि सरसों, सोयाबीन तेल तिलहन और बिनौला तेल के दामों में कमी दर्ज की गई है. 


8.25 लाख सरसों की बोरी की हुई आवक


देश की मंडियों में सरसों की आवक लगातार बढ़ रही है. इस शनिवार को देश की मंडियों में 8.25 लाख सरसों की बोरी की आवक हो गई है. मध्य प्रदेश के सागर में सरसों की बिक्री 4500 रुपये प्रति क्विंटल हुई. यह 5000 रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी से काफी कम है. सरसों की बिक्री को लेकर किसानों का बुरा हाल है. सरसों के दाम बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाए जाएं? किसानों को उपाय नहीं सूझ रहा है. 


बिनौला तेल भाव 100 रुपये प्रति क्विंटल घटा


सोयाबीन और बिनौला तेल की हालत भी खराब हो गई है. गुजरात समेत अन्य राज्यों में बिनौला तेल दो से 3 रुपये प्रति किलो अधिक की दर से बिका करता था. लेकिन इस बार इसके भाव में 1 रुपये प्रति किलो यानि 100 रुपये प्रति क्विंटल कमी दर्ज की गई है. इसका असर खुदरा बाजार में देखने को मिल रहा है. आम आदमी सस्ते दामों पर तेल खरीद रहा है. 


क्यों हुई तेल के दामों की ये हालत


कारोबारी विदेशी तेलों के लिए शुल्क-मुक्त आयात नीति हटाने की मांग कर रहे हैं. दरअसल, विदेशों से आने वाले तेलों पर किसी तरह का शुल्क नहीं लगाया जा रहा है. इसी कारण विदेशों से आ रहा तेल बेहद सस्ते दामों पर बिक रहा है. वहीं, देसी तेल में लागत अधिक आने से थोड़ा महंगा हो गया है. विदेशी तेल सस्ता होने और देसी महंगा होने के कारण लोग विदेशी तेल को ही अधिक पकड़ रहे हैं. खरीदार न मिल पाने के कारण लोग देसी तेल के दामों को घटाने पर भी मजबूर हैं. 


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