Crop Management Works During Cotton Farming: खरीफ सीजन (Kharif Season 2022)  में ज्यादातर किसानों ने अपने खेतों में कपास की फसल (Cotton Farming) लगाई है, जिसकी अच्छी पैदावार के लिये समय के साथ प्रबंधन कार्य (Cotton Crop Management)  करते रहना चाहिये. पिछले दिनों कपास की फसल बर्बाद होने की खबरें सामने आ रही थी, जिसमें गुलाबी सुंडी रोग (Pink Ballwerm), सफेद मक्खी (White Flies) के साथ-साथ पानी भरने के कारण कई किसानों को नुकसान हुआ है. पंजाब (Cotton Farming in Punjab) में तो कई किसान अपनी फसलों को खुद नष्ट करने के लिये मजबूर हो गये हैं. कहीं ये समस्या आपके खेतों में भी न हो जाये, इससे बचने के लिये प्रबंधन कार्य (Management work in Cotton)  बढ़ा दें. .


खासकर अगस्त के महीने में, जब कपास की फसल काफी बड़ी हो जाती है, तब इसमें उर्वरक प्रबंधन की जरूरत और कीट-रोग नियंत्रण के कार्य करते रहना भी जरूरी है.


कपास की फसल में पोषण प्रबंधन (Fertilizer Management in Cotton) 
अगस्त से लेकर सिंतबर तक कपास की फसल में निकलने लगते हैं. इस दौरान नाइट्रोजन या यूरिया की बची हुई आधी मात्रा को फसल में डाल देना चाहिये.



  • किसान चाहें तो संकर कपास में आधा बैग यूरिया और अमेरिकन कपास की फसल में दो तिहाई बैग यूरिया से बुरकाव कर सकते हैं. 

  • कपास की फसल में फूल निकलते समय  नेफ्थलीन एसीटिक एसिड 70 सी.सी. का छिड़काव करना फायदेमंद रहता है. इससे फूल और टिड में सड़न पैदा नहीं होती. 


जल निकासी का काम करें (Water Drainage in Cotton Crop)
बारिश वाले इलाकों में कपास की फसल की बढ़वार के लिये खेतों में पर्याप्त नमी बनायें और हल्की सिंचाई का काम करें.



  • अधिक बारिश वाले इलाकों में कपास के खेतों में पानी ना भरने दें और जल्द-जल्द खेतों से पानी को बाहर निकालने के लिये जल निकासी का प्रबंध करें.

  • खेतों में ज्यादा देर तक पानी भर रहना भी नुकसानदायक है, जिससे कपास के फूल झड़ जाते हैं और उत्पादन में कमा आ सकती है. 

  • असमय, अनिश्चित और आवश्यकता से अधिक बारिश के कारण पौधों की लंबाई तेजी से बढ़ने लगती है, जो उपज के लिये ठीक नहीं है.

  • ऐसे में 15 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली मुख्य तनों की ऊपरी शाखाओं को टाई सिकेटियर या कैची से कटाई-छंटाई कर देनी चाहिए.

  • ऐसा करने से कीट-रोग नियंत्रण और खरपतवार प्रबंधन में आसानी और फसल की निगरानी होती रहती है.




कपास में कीट-रोग नियंत्रण (Pest-Disease Management in Cotton) 
मूल विगलन रोग
कपास की फसल में मूल विगलन रोग से फसल बर्बाद होने का खतरा बना रहता है. इस रोग में पौधों की जड़ सड़ने लगती है और छाल के नीचे भी पीला पदार्थ जमा होने लगता है. ये लक्षण कपास की अगेती बुवाई के कारण उभरते हैं, जिनकी रोकथाम के लिये विटावेक्स 0.1 प्रतिशत और ब्लाइटॉक्स 0.3 प्रतिशत प्रति किग्रा. बीजों का उपचार करके ही खेती करनी चाहिये.
 
पत्ती लपेटक कीट
पत्तियों की इल्लियां कपास की पत्तियों को लपेटकर एक खोल बना लेती हैं और उन्हें चबाने लगती है. इसके लिये गरही जुताई लगाकर ही खेती करनी चाहिये. खेत में निरंतर निगरानी करें और लार्वा को इकट्ठा करके नष्ट कर दें. फसल में पत्ती लपेटक कीट के लक्षण दिखने पर खेत में अंडा पैयसिटोइड ट्राइकोग्रामा 1.5 लाख प्रति हैक्टर की दर इस्तेमाल करें.


सफेद मक्खी
जून-जुलाई में लगाई गई कपास की फसल में अगस्त-सितंबर तक सफेद मक्खियों (White Flies) का खतरा बना रहता है. ये मक्खियां फसल से रस को चूसकर कपास की क्वालिटी का खराब करती हैं. इसका प्रकोप दिखने पर वैज्ञानिक समाधान के रूप में मैटासिस्टॉक्स 25 ई.सी. और जैविक समाधान (Organic Pesticides) के रूप में एक लीटर नीम आधारित कीटनाशक (Neem Based Pesticides Spray) या फिर डाइमेथोएट 30 ई.सी. की 300 मि.ली. मात्रा को 250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ फसल पर छिड़काव करें.




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