(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Stray Animals: किसानों का सहारा बनेंगी सड़कों पर घूमने वाली आवारा गाय-भैंस, इस तरह बढ़ा देंगे मुनाफा
Cow Based Farming: प्राकृतिक खेती में गाय-भैंस का अहम योगदान है. गोबर और गौमूत्र से बने खाद-उर्वरक फसल की क्वालिटी और उत्पादन बढ़ाते हैं. किसानों को कम खर्च में बढ़िया कमाई हो जाती है.
Natural Farming with Stray Animals: देशभर में गौ आधारित प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. खेती की लागत को कम करने के लिए अब कई राज्य सरकारें किसानों को गाय या पशु खरीदने के लिए आर्थिक मदद दे रही हैं. वहीं दूसरी तरफ देश में आवारा और बेसहारा जानवरों की तादात बढ़ती जा रही है. जब पशु दूध देना बंद देते हैं तो कई किसान और पशुपालक उन्हें सड़क पर ही छोड़ देते हैं, लेकिन वो ये नहीं जानते कि बेसहारा गाय-भैंस (Destitute cow-buffalo) ही उनका असली सहारा हैं.
गाय आधारित खेती के लिए इन बेसहारा गाय-भैसों से गोबर और गौमूत्र का उत्पादन ले सकते हैं, जिससे बने खाद और जैव उर्वरक (Bio-Fertilizer) फसल का उत्पादन बढ़ाते हैं. इस तरह किसानों को अलग से पशु खरीदने के लिए पैसा खर्चा नहीं करना पड़ेगा और कम लागत में ही जबरदस्त कमाई का इंतजाम हो जाएगा.
इस तरह कमाएं मुनाफा
जब गाय-भैंस दूध देना बंद कर देती हैं, तब भी वो बहुत काम की होती हैं. बस उनकी अहमियत समझने की देर है और किसान पहले से ही अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. गाय-भैंस से गोबर और गौमूत्र का उत्पादन लेकर जीवामृत, बीजामृत, घनामृत, पंचगव्य, नीमास्त्र बनाए जाते हैं. इन सभी का इस्तेमाल खाद-उर्वरक के तौर पर किया जाता है.
ये क्वालिटी में साधारण और रसायनिक खाद-उर्वरकों से भी शक्तिशाली होते हैं. जब से सरकार ने जीरो बजट खेती का मंत्र किसानों से साझा किया है, तभी से इन सभी चीजों की मांग बढ़ती जा रही है. ऐसे में बेसहारा पशुओं की मदद से गोबर-मौमूत्र का उत्पादन लेकर ये सभी चीजें बना सकते हैं और बाजार में बेच सकते हैं.
बंजर जमीन पर फैलेगी हरियाली
रसायनिक कीटनाशक और उर्वरकों के इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता कम होती जा रही है. कई जमीनें लगभग बंजर हो गई हैं, जो किसी काम की नहीं. वैज्ञानिक भी कम होते फसल उत्पादन को लेकर चिंतित थे. तभी हमारे किसानों ने गोबर और गौमूत्र की तर्ज पर खेतों को फिर से हरा-भरा बना दिया. आज कई रिसर्च में साबित हो चुका है कि साल-दो साल लगातार गाय आधारित खेती (Cow Based Farming) करने पर बंजर-अनुपयोगी जमीन में भी हरियाली पैदा हो जाती है.
इससे बने जीवामृत, बीजामृत, घनामृत, पंचगव्य, नीमास्त्र से मिट्टी में नमी कायम रहती है, मिट्टी में जीवांशों की संख्या बढ़ती है और धीरे-धीरे भूजल स्तर भी बेहतर हो जाता है. सबसे अच्छी बात ये है कि इन सभी को बनाने और प्राकृतिक खेती (Natural farming) करने में ज्यादा खर्च नहीं आता है. आज इस मॉडल पर आधारित खेती करके कई किसान ना के बराबर लागत में भी बेहतर उत्पादन ले रहे हैं.
इन राज्यों ने की तरक्की
वैसे तो आंध्र प्रदेश से लेकर मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा में भी प्राकृतिक खेती के लिए कई प्रकार की योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन इन दिनों छत्तीसगढ़ सबसे ज्यादा चर्चा में बना हुआ है. यहां पशुओं को सड़कों पर बेसहारा नहीं छोड़ा जाता, बल्कि गौठानों में उनका पालन-पोषण हो रहा है. इन पशुओं से मिले गोबर-मौमूत्र से यहां की महिलायें, किसान और युवाओं ने अच्छा मुनाफा कमाया है.
गोबर से कंपोस्ट और गौ मूत्र से कीटनाशक बनाकर यहां के ग्रामीण परिवेश खूब तरक्की की है. उत्तर प्रदेश में भी जल्द प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को गौशालाओं से एक देसी गाय दी जाएगी. मध्य प्रदेश में भी गाय आधारित खेती करने वाले किसानों को कई फायदे मिल रहे हैं. केंद्र सरकार ने भी प्राकृतिक खेती की जानकारी, नीतियां, योजनाएं किसानों से साझा करने के लिए ऑफिशियल साइट naturalfarming.niti.gov.in बनाई है, जहां लॉग-इन करके प्राकृतिक खेती अभियान से जुड़ सकते हैं.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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