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GauKasht: अब लकड़ी के लिए नहीं होगी जंगलों की अंधाधुंध कटाई, बाजार में आ गई गोबर से बनी 'गौकाष्ठ' लकड़ी

Eco-Friendly Wood: गोबर से बनी ये लकड़ी साधारण लकड़ी की तुलना में बेहद सस्ती और कम धुआं छोड़ती है, जिससे पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होता. इसे बनाने में भी ज्यादा समय नहीं लगता.

Agri Business Idea: जब तक जमीन पर हरियाली है,तब तक हर इंसान का जीवन सुरक्षित है, लेकिन लगातार हो रही जंगलों की कटाई ने धरती के अस्तित्व को चिंता में डाल दिया है. इस समस्या से निपटने के लिए समाधान खोजा जा चुका है. देश के कई इलाकों में गोबर से बनी लकड़ी गौकाष्ठ बनाई जा रही है, जिसे लकड़ी के एक बेहतर विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है. यह लकड़ी गाय के पवित्र गोबर से बनी होती है, जिसे तैयार करने में भी ज्यादा समय नहीं लगता. अच्छी बात यह है कि गोबर से बनी ये लकड़ी साधारण लकड़ी की तुलना में बेहद सस्ती और कम धुआं छोड़ती है, जिससे पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होता.

पेड़ की लकड़ियां बारिश में गीली होने पर जलती नहीं है. ऐसी स्थिति में गौकाष्ठ लकड़ी तेजी से आग पकड़ लेती है और वातावरण में गर्मी पैदा कर देती है. यदि आप किसान या पशुपालक हैं तो गौकाष्ठ लकड़ी बनाने का बिजनेस आपके लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है. आज यज्ञ, हवन, अंतिम संस्कार और खाना बनाने में भी गौकाष्ठ लकड़ी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो रहा है.

क्यों जरूरी है गौकाष्ठ 
एक सर्वे के मुताबिक, हर साल शव जलाने के लिए 5 करोड़ पेड़ काटे जाते हैं. देश की करीब एक तिहाई लकड़ी की खपत अंतिम संस्कार में हो रही है, जिसके लिए काफी हद तक जंगलों की कटाई होती है. इससे पर्यावरण के लिए नया संकट पैदा हो रहा है.

मिट्टी की कटाव, उफनती नदियां, पर्यावरण प्रदूषण आदि जंगलों की कटाई का ही नतीजा है. इन संकटों पर विराम लगाने के लिए पेड़ लगाने पर तो फोकस करना ही है, लेकिन गौकाष्ठ को बढ़ावा देना भी एक मजबूत कदम साबित हो सकता है.

कैसे फायदेमंद है गौकाष्ठ 
आज घरेलू और औद्योगिक जरूरतों के लिए नेचुरल गैस, पैट्रोल और कोयला पर निर्भरता बढ़ती जा रही है. यदि ऊर्जा के वैकल्पिक साधन तलाशें तो सौर ऊर्जा इन दिनों काफी चर्चा में है, लेकिन आज गाय से बना गोबर भी ईंधन की लकड़ी के एक अच्छे विकल्प के तौर पर उभर रहा है.

उदाहरण के लिए 500 किलो लकड़ी उत्पादन के लिए करीब 2 पेड़ों की कटाई की जाती है, जिसमें 4000 रुपये का खर्च आता है, जबकि 500 किलो गौकाष्ठ मात्र 300 रुपये में तैयार हो जाती है. गांव में जहां खेती और पशुपालन बड़े पैमाने पर किया जाता है.

यहां गोबर का भी बड़ी मात्रा ढ़ेर रहता है. ऐसी स्थिति में गोबर से बनी गौकाष्ठ ना सिर्फ किसानों और पशुपालकों की आय बढ़ाने में मदद करेगी, बल्कि गांव में रोजगार और आय के साधनों का भी सृजन करेगी.

क्या है गौकाष्ठ
आप जानते ही होंगे कि गांव में आज भी पारंपरिक तरीके से गाय के गोबर से कंडे बनाए जाते हैं, जिनका इस्तेमाल खाना बनाने और बाकी कामों में किया जाता है. धीरे-धीरे गांव में भी रसोई गैस पहुंच रही है, जिसके चलते कंडों का इस्तेमाल कम ही होता है. ऐसे में गोबर को लकड़ी के आकार में ढ़ालकर गौकाष्ठ लकड़ी बनाई जाए और इसका वैल्यू एडिशन की जाए तो अच्छा फायदा मिल सकता है.

कैसे बनती है गौकाष्ठ
आज के आधुनिक दौर में लगभग सारे काम तकनीक और मशीनों से हो रहे हैं. गौकाष्ठ का बिजनेस भी कई राज्यों में फल फूल रहा है. कई किसान, पशुपालक, गौशालाएं हाथों से गौकाष्ठ लकड़ी बना रही हैं तो कुछ लोगों ने गौकाष्ठ के बिजनेस को आधुनिक बनाने के लिए बिजली से चलने वाली मशीनें लगाई हैं.

इन मशीनों में गोबर डाल दिया जाता है, जिसके बाद 4 से 5 फीट लंबी लकड़ी बन कर निकल आती है. 5 से 6 दिन सुखाने के बाद गौकाष्ठ तैयार हो जाती है. एक अनुमान के मुताबिक,1 क्विंटल गोबर से 1 क्विंटल गौकाष्ठ लकड़ी बनाई जा सकती है.

यदि गोबर के साथ में लैकमड भी मिला दिया जाए तो इसे लंबे समय तक ज्वलनशील बनाया जा सकता है. आधुनिक मशीनों से 1 दिन में करीब 10 क्विंटल गोबर की गौकाष्ठ बनाई जा सकती है, जो बाजार में 7 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव बिकती है.

कहां हो सकता है गौकाष्ठ का इस्तेमाल
बाजार में लकड़ी की आपूर्ति बेहद कम हो गई है. ऐसे में आप भी चाहें तो गौकाष्ठ लकड़ी बनाने का बिजनेस चालू कर सकते हैं. इस बिजनेस में अच्छी मुनाफे की संभावनाएं हैं. खासतौर पर किसान, पशुपालक और गौशालाएं गौकाष्ठ बनाकर अच्छी आमदनी अर्जित कर सकती हैं.

इस लकड़ी का इस्तेमाल शमशान में अंतिम संस्कार से लेकर होलिका, दहन, यज्ञ, हवन जैसे धार्मिक आयोजनों में किया जा सकता है. आजकल तो गांव में गौकाष्ठ से खाना पकाने का भी काम चल रहा है. इससे ज्यादा धुआं नहीं निकलता, जिससे प्रदूषण की संभावना भी कम रहती है, इसलिए लोग भी गौकाष्ठ लकड़ी की ओर बढ़ रहे हैं.

मध्यप्रदेश में बनाई जा रही गौकाष्ठ
19वीं पशु जनगणना के मुताबिक, मध्य प्रदेश में कुल 196 लाख गोवंश है, जिसमें देसी नस्लों की संख्या एक करोड़ 87 लाख 61 हजार 389 है. वहीं 8 लाख 40 हजार 977 मिक्स ब्रीड वाले गौवंश हैं.

भारत के कुल देशी गौवंश का 12.41% मध्यप्रदेश में मौजूद है, इसलिए मध्यप्रदेश में गाय आधारित प्राकृतिक खेती और गौकाष्ठ लकड़ी के बिजनेस को काफी प्रमोट किया जा रहा है. इस मामले में मध्यप्रदेश पशुपालन एवं पशु संवर्धन बोर्ड ने भी गौशाला में गौकाष्ठ लकड़ी के निर्माण को बढ़ावा दिया है.

आज गौकाष्ठ लकड़ी बनाकर मध्यप्रदेश की गौशाला अच्छी आमदनी अर्जित कर रही हैं. छत्तीसगढ़ में भी इसी मॉडल पर गौठानों में काम चल रहा है. यह बिजनेस पूरी तरह पर्यावरण सुरक्षा के हित में है, इसलिए आने वाले समय में इसकी अच्छी खासी मांग रहने वाली है.

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

यह भी पढ़ें:- गाय-भैंस ही क्यों? ऊंट का दूध भी औषधीय गुणों से भरपूर, ओवरऑल खर्च से कहीं ज्यादा है कमाई, ये हैं दूध के दाम

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