Crop Production Techniques: भारत में खेती करना दूसरे देशों के मुकाबले ज्यादा आसान है, क्योंकि यहां दुनिया की सबसे उपजाऊ मिट्टी (Good Soil) पाई जाती है. भारत में खेती कई प्रकार की मिट्टी, जलवायु, फसल और तकनीक हैं, लेकिन आज के समय में सफल खेती (Successful Farming) का मायने हैं खेती में लागत को कम करके उत्पादन (Crop Production)को बढ़ाना. इसके लिये नर्सरी में पौध संरक्षण (Plant Conservation) से लेकर, खाद-उर्वरक और बेहतर सिंचाई व्यवस्था का ठीक प्रकार से इंतजाम करना चाहिये.
इसके अलावा खेत में रोपाई के बाद, निराई-गुड़ाई, खरपतवार प्रबंधन, कीट-रोग नियंत्रण और दूसरे कृषि कार्यों (Farming Works) के लिये जैविक और आसान तरीके (Easy Farming Method) अपनाना भी जरूरी है क्योंकि ये ही खेती में उत्पादन की लागत (Production Expenses) को कम करने में मदद करते हैं.
खुद तैयार करें बीज
ज्यादातर किसान समय बचाने के लिये बाजार से बीज खरीदकर ही खेती करते हैं. बाजार में मिलने वाले ज्यादातर बीज प्रमाणित नहीं होते और इनसे 8-10 % कम उत्पादन भी मिलता है. इस समस्या से बचने के लिये वैज्ञानिकों ने संकर बीजों के समान किस्मों का आविष्कार किया है, जिनसे खेती करके 40-60% खर्च को कम किया जा सकता है. इतना ही नहीं, इनसे बीज बनाकर बाजार में बेचने से और भी अच्छी आमदनी हो सकती है.
जितनी जरूरत, उतने ही उर्वरक
विशेषज्ञों के मुताबिक, फसल में डलने वाले उर्वरकों का सिर्फ 38% पोषण ही पौधों को मिल पाता है. बाकी के उर्वरकों का सिंचाई के दौरान रिसाव हो जाता है और कुछ नमी की कमी के कारण वातावरण में विलीन हो जाते हैं. इसी प्रकार पोषक तत्व जैसे- फास्फोरस, पोटाश, सल्फर आदि का भी 20-50 पोषण ही फसलों को मिल पाता है. बीज से लेकर फसल तक अच्छी बढ़वार के लिये खाद के साथ उर्वरक और पोषक तत्वों का सही मात्रा में प्रयोग करना चाहिये. इसके लिये मिट्टी की जांच करवाने की सलाह दी जाती है, जिससे पता चल सके कि फसल और मिट्टी को कितने पोषण की जरूरत है.
जैविक खाद है अमृत
बेहतर उत्पादन और संसाधनों की बचत करने के लिये जैविक खाद और उर्वरकों का इस्तेमाल करनी सलाह दी जाती है. खासकर खेत की तैयारी के समय से ही मिट्टी में जीवांश खाद जैसे-कंपोस्ट केंचुआ खाद और गोबर की खाद का प्रयोग को खेत में मिला देना चाहिये, जिससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है. इसके अलावा, नीम, करंज और चूने की परत का मिश्रण बनाकर यूरिया के दानों के साथ खेत में मिलाना चाहिये, जिससे फसल को यूरिया का नाइट्रोजन मिल सके.
कीट-रोग नियंत्रण
बेहतर उत्पादन लेने के लिये फसल को कीड़े और बीमारियों से बचाना बेहद जरूरी है, इसलिये जरूरत के मुताबिक ही कीट नाशक और रोगनाशक दवायें फसल पर छिड़कनी चाहिये. ध्यान रखें कि छिड़काव की दवायें जैविक हों, क्योंकि खतरनाक रसायन ज्यादा असरकारी नहीं होते और फसल को काफी नुकसान भी पहुंचाते हैं. इनके मुकाबले नीम, करंज, हींग, लहसुन, अल्कोहल से बनी जैविक दवाओं का प्रयोग करना चाहिये. इसके अलावा अंतरवर्ती फसल, प्रपंची फसल फेरोमेन, ट्रेप, प्रकाश प्रपंच भी रासायनिक कीट नाशकों से सस्ते और प्रभावी होते हैं.
कटाई के बाद प्रबंधन
अकसर कई किसान कटाई के बाद बचे फसल के कचरे को खेत में आग लगाकर जला देते हैं, जिससे वायु प्रदूषण (Air Pollution) की समस्या बढ़ती है और मिट्टी के जीवांश भी खत्म हो जाते हैं. इसके समाधान के लिये फसल के अपशिष्ट जैसे- खास-फूस, ठूंठ और पत्तियों की उपस्थिति में ही खेत में जुताई करनी चाहिये, जिससे सारा कचरा मिट्टी में दब जाये और बारिश आने पर इस कचरे की खाद (Organic Manure) बन जाये. इससे अगली फसल को भी लाभ होगा. किसान चाहें तो कटाई के बाद फसल के अपशिष्ट या कचरे पर पूसा डी-कंपोजर (Pusa Decomposer) का छिड़काव भी कर सकते हैं, ये कचरे को पोषण युक्त खाद (Organic Manure) में बदल देती है.
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