Papaya Farming: भारत में फल-सब्जी जैसी बागवानी फसलों की खेती (Horticulture) को बढ़ावा दिया जा रहा है, लेकिन जलवायु परिवर्तन और कीट-रोगों के प्रकोप के कारण फसलों से प्रॉडक्शन कम होता जा रहा है. खासकर फलदार पौधों की बात करें तो इस बार मौसम में बदलाव के कारण फलों के बागों में काफी नुकसान देखने को मिलता है. कई किसानों ने नये फलदार पौधे (Fruit Plants) लगाये तो है, लेकिन इनकी भी सही देखभाल नहीं हो पाते, जिसके चलते देश में फलों का उत्पादन  (Fruit Production) कम हो सकता है.


इस परेशानी से निकलने के लिये समय-समय पर किसानों को एडवायजरी (Agriculture Advisory)  दी जाती है, ताकि फसल की सही देखभाल करके प्रॉडक्शन और क्वालिटी को बढ़ा सके. इस सीजन भी कई किसानों ने पपीता के नये पेड़ लगाये हैं, जिनकी देखभाल के लिये अक्टूबर का महीना सबसे अच्छा है. इस समय यदि किसान वैज्ञानिक तरीकों से पपीता की फसल की देखभाल (crop management of Fruit Tree) करेंगे तो फलों के उत्पादन में काफी मदद मिलेगी.


बीमारियों से बचायें
किसी भी पेड़ की सही देखभाल के लिये कीट-रोगों से उसकी निगरानी और देखभाल करना बेहद जरूरी हो जाता है. पपीते के पौधे में भी अकसर कॉलर रॉट डिजीज, जड़ गलन रोग और रिंग स्पाट जैसी बीमारियां भी पेड़ को नुकसान पहुंचाती हैं.


इसकी रोकथाम के लिये शुरूआत से ही कीट-रोग नियंत्रण और पोषण प्रबंधन करना होगा. पपीता की व्यावसायिक खेती करने वाले किसानों को भी इन बातों का खास ध्यान रखा होगा. ये समस्या उत्तर प्रदेश , बिहार एवं झारखंड में ज्यादा देखी जाती है. सही प्रबंधन ना करने पर पपीता की राष्ट्रीय उत्पादकता पर भी बुरा असर पड़ता है. 


इस तरह करें रोकथाम
पपीता से लेकर दूसरे फलों का रोगरोधी उत्पादन हासिल करने के लिये अखिल भारतीय फल परियोजना (ICAR-AICRP on Fruits )और डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा (RPCAU Pusa) ने मिलकर एक तकनीक विकसित की है. रिपोर्ट्स की मानें तो ये तकनीक व्यावसायिक खेती (Commercial farming) करने वाले किसानों के लिये काफी फायदमंद साबित होगी. इससे पपीते की फसल (Papaya Plant) में विषाणुजनित बीमारियों का प्रकोप कम करने में भी खास मदद मिलेगी.



  • विशेषज्ञों की मुताबिक, पपीता में रिंग स्पॉट डिजीज की रोकथाम के लिये 2% नीम ऑइल के साथ 0.5 मिली प्रति लीटर स्टीकर का स्प्रे बनाकर 8 महीने तक लगातार 30 दिन में छिड़काव करना होता है.

  • शुरूआत से ही इसका छिड़काव करने पर पपीते का पौधों में रोगरोधी गुण विकसित होगा और फलों में बीमारियों का खतरा कम करने में मदद मिलेगी.

  • इसी के साथ-साथ पौधों को शुरूआत से ही मजबूत बनाना होगा, ताकि मौसम की मार का उस पर कोई असर ना पड़े. 

  • इसके लिये 04 ग्राम यूरिया, 04 ग्राम जिंक सल्फेट और  04 ग्राम घुलनशील बोरान को भी प्रति लीटर पानी में मिलाकर 8 महिने के अंतराल पर छिड़कना होता है.

  • पपीते की वैज्ञानिक देखभाल के साथ जैविक तरीके (Organic Farming) भी अपनाये जा सकते हैं. इसके लिये कंपोस्ट(Compost), जीवामृत (Jeevamrit) और जैव उर्वरकों (Bio Fertilizer) का इस्तेमाल भी फायदेमंद रहेगा.


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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