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Floriculture: बीज, छिल्का, पत्ती, पंखुड़ियां, दोगुना दाम पर बिकेगी हर चीज, इस खास तरीके से करें कुसुम की खेती

Safflower Cultivation: कुसुम के फूलों से लेकर इसके पौधे का हर हिस्सा काफी उपयोगी है. इससे तेल और शरबत के अलावा साबुन, पेंट, वार्निश, लिनोलियम और संबंधित पदार्थ बनाये जाते हैं.

Safflower Farming for Festive Season: भारत में फूलों की व्यावसायिक खेती (Commercial Farming of Flower) बड़े पैमाने पर की जाती है. आमतौर पर फूलों का इस्तेमाल सुगंध और पूजा-पाठ के लिये किया जाता है, लेकिन कुछ फूलों में औषधीय गुण भी मौजूद होते हैं, जिनका इस्तेमाल दवा और तेल के रूप में भी किया जाता है. हम बात करें कुसुम के फूल की, जिसके बीज, छिल्का, पत्तियां और पंखुडियों का इस्तेमाल तेल से लेकर शरबत बनाने में भी किया जाता है. पानी की कमी या कम बारिश वाले इलाकों में कुसुम की खेती (Safflower Farming) करने पर किसानों को काफी फायदा होता है.

किस काम आता है कुसुम
कुसुम के फूलों से लेकर इसके पौधे का हर हिस्सा काफी उपयोगी है. इससे तेल और शरबत के अलावा साबुन, पेंट, वार्निश, लिनोलियम और संबंधित पदार्थ बनाये जाते हैं. बाजार में कुसुम के फूल स बना एसेंशियल ऑइल और शहद भी काफी फेमस है.


Floriculture: बीज, छिल्का, पत्ती, पंखुड़ियां, दोगुना दाम पर बिकेगी हर चीज, इस खास तरीके से करें कुसुम की खेती

कुसुम की खेती के लिये सही समय
कुसुम की खेती के लिये 20 से 25 डिग्री यानी सामान्य तापमान ठीक रहता है, लेकिन इसके अंकुरण के लिये वातावरण का तापमान 15 डिग्री सेल्सियस होना चाहिये. इसकी खेती रबी सीजन में की जाती है और अक्टूबर के दूसरे सप्ताह तक इसकी बुवाई या पौधों की रोपाई का काम कर लिया जाता है. इसके बाद 4 से 5 महीने के बीच फूलों का बंपर उत्पादन मिलने लगता है.

कुसुम की बुवाई
कुसुम के फूल प्राप्त करने के लिये प्रति हेक्टेयर जमीन के लिये करीब 10 से 15 किलोग्राम बीजदार काफी रहती है. इनकी बुवाई से पहले खेत की तैयारी और जल निकासी की व्यवस्था करना फायदेमंद रहता है. 

  • इसकी खेती के लिये रासायनिक उर्वरकों की जगह जैविक और कंपोस्ट खाद का इस्तेमाल करना फायदेमंद रहता है.
  • इसके बाद कुसुम के बीज लगाने के लिये लाइनों के बीच 45 सेमी की दूरी और पौधों के बीच 20 सेमी की दूरी रखनी चाहिये, ताकि निराई-गुड़ाई और दूसरे कृषि कार्यों में सावधानी रहे.


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तुड़ाई में सावधानी
कुसुम के पौधों की पत्तियों में काफी कांटे होते हैं, जिसके कारण दस्ताने पहनकर कटाई की जाती है. यह काम सुबह के समय किया जाता है, क्योंकि इसी समय कांटे मुलायम होते हैं. इसके बाद पौधों की डालियां सूखने पर निचली डालियों की पत्तियों को हटा देते हैं. फसल की कटाई करने के बाद 2 से 3 दिनों तक इन्हें धूप में सुखाया जाता है और बाद में डंडे की मदद कुसुम की मडाई का काम होता है. 

कुसुम से आमदनी
कुसुम के जरिये अच्छी आमदनी कमाना चाहते हैं तो इसकी कांट्रेक्ट फार्मिंग या व्यावसायिक खेती (Commercial Farming Safflower) करना फायदेमंद साबित हो सकता है. प्रति हेक्टेयर जमीन पर कुसुम की खेती करके आराम से 9 से 10 क्विंटल तक उपज ले सकते हैं.

  • ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर इसके बीज, छिलका, पत्तियां, पंखुडिया, तेल और शरबत काफी ऊंचे दामों पर खरीदे जाते हैं.
  • इतना ही नहीं, कुसुम की खेती (Safflower Cultivation) के साथ-साथ मधुमक्खी पालन (Honey Bee Farming) करके अतिरिक्त आमदनी भी कमा सकते हैं.


Floriculture: बीज, छिल्का, पत्ती, पंखुड़ियां, दोगुना दाम पर बिकेगी हर चीज, इस खास तरीके से करें कुसुम की खेती

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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