Cumin Cultivation in India: सही मायनों में भारतीय व्यंजनों का स्वाद बढ़ाने में मसालों (Spices in Indian Foods) का अहम योगदान होता है. इन्हीं मसालों में शामिल है जीरा(Cumin Spices) , जिसका तड़का लगने पर भारतीय व्यंजनों का स्वाद बढ़ जाता है. भारत और विदेशों में जीरा (Benefits of Cumin Seeds) का काफी प्रयोग किया जाता है, जिसके चलते किसानों के लिये जीरा की खेती (Cumin Seeds Cultivation) फायदे का सौदा साबित हो सकती है. बता दें कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी जीरा की काफी डिमांड रहती है, इसलिये किसान चाहे तो इस सर्दी के सीजन में जीरा की खेती (Cumin Seeds Farming in winter Season) करके अच्छी आमदनी ले सकते हैं.
जीरा की खेती
पारंपरिक फसलों के मुकाबले जीरा की दोहरी फसल ज्यादा मुनाफा देती है. सही मौसम, उपयुक्त मिट्टी, उन्नत किस्म के बीज और खाद-उर्वरक के साथ-साथ सही सिंचाई व्यवस्था के जरिये साथ जीरा उगाकर बिना नुकसान के अच्छी आमदनी ले सकते हैं.
कहां करें जीरा की खेती
वैसे तो जीरा की खेती ज्यादा ठंडे और शुष्क इलाकों में की जाती है, लेकिन भारत में गुजरात और राजस्थान जैसे गर्म इलाकों को जीरा उत्पादन में अग्रणी का दर्जा प्राप्त है. भारत में करीब 80 प्रतिशत जीरा उत्पादन गुजरात और राजस्थान में किया जाता है. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में भी विश्व प्रसिद्ध काला जीरा की खेती करके किसान काफी अच्छा लाभ ले रहे हैं.
जीरा की खेती के लिए जलवायु
ज्यादा गर्म, ज्यादा नमी और बारिश वाले स्थानों पर जीरा की खेती करना बड़ी मुसीबत का काम है. इसकी खेती के लिए गर्म, सामान्य और सर्द-शुष्क तापमान सबसे बेहतर रहता है, इसलिये हिमाचल प्रदेश के सर्द तापमान में काला जीरा उगाया जाता है, जहां इसके पौधे ठंडे वातावरण में तेजी से विकास करते हैं.
जीरा की खेती के लिए मिट्टी
जीरा की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है. इसके बेहतर उत्पादन के लिए मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों से भरपूर वर्मीकंपोस्ट खाद डालकर खेत तैयार करना चाहिये. इस तरह जैविक विधि से जीरा उगाकर कम खर्च में बेहतर उत्पादन मिल जाता है.
जीरा की बुवाई
विशेषज्ञों की मानें तो एक बार जीरा की लगाने के बाद 3 से 4 साल के अंतराल पर ही दोबारा जीरा की खेती करनी चाहिये. किसान चाहें तो जैविक विधि से इसकी व्यावसायिक खेती कर सकते हैं. इसके लिए जरूरी है कि जीरा की उन्नत किस्मों का चयन किया जाए. इसकी बुवाई के लिए नवंबर और दिसंबर का महीना सबसे उपयुक्त रहता है. बता दें कि जीरा की खेती के लिये 12 से 16 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहते हैं.
खरपतवार प्रबंधन
जीरा एक अहम मसाला फसल है, लेकिन मिट्टी की कमियों के कारण कभी-कभी फसल के साथ-साथ खरपतवार भी उग जाते हैं. इसकी रोकथाम के लिये खेत की तैयारी के समय मिट्टी पर खरपतनाशी दवा का छिड़काव करें. वहीं फसल के बीच खरपतवार उगने पर 30 से 60 दिनों के बीच फसल में निराई गुड़ाई का काम करते रहें, जिससे इन खरपतवारों को उखाड़कर खेत से बाहर निकाला जा सके. इसके अलावा निराई गुड़ाई करने से पौधों की जड़ों में ऑक्सीजन का संचार होता है, जिससे पौधों का तेजी से विकास होता है.
जीरे की फसल में सिंचाई
जीरा एक कम पानी वाली फसल है, जिसकी खेती के लिए अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती, लेकिन जीरा के पौधों की रोपाई या बीजों की बुवाई के बाद हल्की सिंचाई का काम किया जाता है. इस फसल में दूसरी सिंचाई 7 से 10 दिनों अंतराल पर की जाती है.
लागत और कमाई
जीरा एक दोहरे उत्पादन वाली फसल है, जिसे मसाले के अलावा और औषधी के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. प्रति हेक्टेयर खेत में जीरा की फसल (Cumin Cultivation) लगाकर 80 से 90 हजार रुपये कमाए जा सकते हैं. इसकी खेती के लिए 30 से 35 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की शुरुआती लागत आती है, जिसे बाजार में 200 रुपये किलो के भाव (Cumin Price in India) पर बेचा जाता है. एक अनुमान के मुताबिक करीब 5 हेक्टेयर खेत में जीरा की खेती (Cumin Cultivation) करके 4 से 5 लाख तक की आमदनी ले सकते हैं.
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