Process of Green Pea Farming: भारत में पूरे साल मटर की मांग और खपत बनी रहती है. वैसे तो मटर दलहनी फसल है, लेकिन बाजार में इसकी हरी फलियों (Green Pea Demand) की ज्यादा डिमांड रहती है. सिर्फ सर्दियों में ही नहीं बल्कि ऑफ सीजन में भी फ्रोजन मटर से स्वादिष्ट व्यंजन बनाये जाते हैं. इस प्रकार सीजनल और ऑफ सीजन की डिमांड को पूरा करने के लिये ज्यादार किसान बड़े पैमाने पर मटर की खेती (Pea Cultivation)  करते हैं.  इसका खेती से बेहतर उत्पादन लेने के लिये सही खेती की तकनीक, उन्नत तकनीक और समय पर प्रबंधन कार्य करना आवश्यक है.


कब करें मटर की खेती
रबी सीजन में मटर की अगेती और पछेती खेती की जाती है. इसकी फसल से बेहतरीन उत्पादन के लिये उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिये, ताकि प्रबंधन कार्यों में अधिक लागत ना आये.



  • वैसे तो इसकी खेती हर प्रकार की मिट्टी में कर सकते हैं, लेकिन गहरी दोमट मिट्टी में इसका क्वालिटी उत्पादन ले सकते हैं. 

  • मटर की खेती के लिये मिट्टी का तापमान 6 से 7.5 पीएच मान होन चाहिये. इसे जांचने के लिये सबसे पहले मिट्टी की जांच अवश्य करवायें.


इस तरह करें रोपाई
मटर की खेती के लिये इसके उन्नत किस्मों का चयन किया जाता है और प्रमाणित स्थान से मटर के बीज खरीदकर अक्टूबर से लेकर नवंबर तक इसकी रोपाई की जाती है.



  • रोपाई के लिये सीड ड्रिल विधि का इस्तेमाल करना फायदेमंद रहता है. इससे समय और श्रम की काफी बचत होती है.

  • मटर के बीजों की बुवाई लाइनों में और बीजों के बीच भी 5 से 7 सेमी. की दूरी रखी जाती है, ताकि प्रबंधन कार्यों में आसानी रहे.


मटर की फसल में प्रबंधन कार्य
फसल की अच्छी पैदावार के लिये खेत की तैयारी के समय ही भरपूर मात्रा में गोबर की सड़ी और कंपोस्ट खाद मिट्टी में मिलाई जाती है. 



  • मटर की फसल के लिये पोषण और सिंचाई बहुत जरूरी है, क्योंकि खाद-पानी से मटर के पौधों का विकास तेजी से होता है. 

  • समय-समय पर मटर की फसल में निराई-गुड़ाई की जाती है, ताकि खरपतवारों को खत्म कर सकें.

  • कीट-रोगों की रोकथाम के लिये लगातार निगरानी करने रहना चाहिये. वहीं कीटों का प्रकोप दिखने पर जैविक कीटनाशकों का छिड़काव प्रभावी साबित होता है.




मटर की कटाई
जाहिर है कि मटर की खेती सब्जी और दाल उत्पादन के दोहरे उद्देश्य के लिये की जाती है. इसके बीजों की रोपाई के बाद फसल 130 से 140 दिनों के बाद पककर कटाई के लिये तैयार हो जाती है. 



  • मटर की दाल का उत्पादन लेने के लिये तुड़ाई के बाद फलियों को सुखाया जाता है और दानों को अलग करके बाजार में दलहन के भाव पर बेचा जाता है.

  • वहीं सब्जी के लिये हरी मटर को सुखाया नहीं जाता, बल्कि तुड़ाई के बाद ही ताजा अवस्था में मंडियों में भेजा जाता है.


मटर की खेती से आमदनी
मटर की फसल से अव्वल दर्जे की उपज और बढिया मुनाफा कमाने के लिये व्यावसायिक खेती पर जोर देना चाहिये, क्योंकि अधिक उत्पादन मिलने पर फ्रोजन मटर (Frozen Pea Business) के जरिये ऑफ सीजन (Off Seasonal Profit from Pea)  में अच्छी आमदनी ले सकते हैं. 



  • मटर की साधारण खेती करने पर 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन ले सकते हैं, जिसे बाजार में 1 से 1.5 लाख रुपये के भाव पर बेचा जाता है.

  • वहीं मटर की व्यावसायिक खेती (Commercial farming of Green Pea) करने पर 100 क्विंटल हरी मटर या 8 टन प्रति हेक्टेयर फलियों का उत्पादन (Pea Production) ले सकते हैं, जिनसे 4 महीने के अंदर 3 से 5 लाख की आमदनी हो जाती है.


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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