Kalonji Seeds Farming: भारत में औषधीय फसलों की खेती (Medicinal Farming) चलन बढ़ता जा रहा है. अब किसान कम मेहनत और कम लागत में अच्छा मुनाफा कमाने के लिये जड़ी-बूटियों की खेती (Herbal Farming) पर जोर दे रहे हैं. विशेषज्ञों की मानें तो यदि किसान यही तकनीक से बुवाई और फसल में प्रबंधन कार्य करते रहे तो पारंपरिक फसलों के मुकाबले औषधीय फसलों की खेती (Medicinal Plants Farming)से अधिक आमदनी ले सकते हैं. ऐसी ही कम लागत में डबल मुनाफा देने वाली औषधीय फसल है कलौंजी (Kalonji-Nigella Seeds Farming).


बता दें कि कलौंजी के बीजों (Kalonji Seeds) का इस्तेमाल दवा के अलावा मसाले के तौर पर भी किया जाता है. अकसर नान, ब्रेड, केक तथा आचारों में खट्टेपन का स्वाद बढ़ाने के लिये इसकी गार्निशिंग की जाती है.  किसानों को कलौंजी की खेती को लेकर ज्यादा जानाकारी नहीं होती, लेकिन इसकी उन्नत किस्मों की वैज्ञानिक खेती (Scientific Farming of Kalonji) करके अच्छी आमदनी ले सकते हैं.


मिट्टी की जांच करवायें
जाहिर है कि कलौंजी एक नकदी फसल है, जिसकी खेती के बारे में सही जानकारी ना होने के कारण किसानों को नुकसान भी झेलना पड़ सकता है, इसलिए विशेषज्ञ कलौंजी की बुवाई से पहले मिट्टी की जांच करवाने की सलाह देते हैं, ताकि मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की कमी को पूरा किया जा सके. इसी के साथ मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के लिए जैविक खाद और उर्वरकों का सही मात्रा में इस्तेमाल करना चाहिये. कलौंजी के खेती से अच्छा उत्पादन लेने के लिए उन्नत किस्म के रोग रोधी बीजों का चयन करना भी बेहद जरूरी है, ताकि खेती के दौरान ज्यादा जोखिम का सामना ना करना पड़े.


मिट्टी और जलवायु 
कलौंजी रबी सीजन की एक प्रमुख नकदी फसल है. वैसे तो कलौंजी के पौधे गर्म और ठंडी दोनों जलवायु में खूब पनपते हैं, लेकिन इसकी अच्छी बढ़वार के लिये सर्दी का मौसम सबसे उपयुक्त रहता है. इस दौरान बलुई दोमट मिट्टी में जल निकासी की व्यवस्था करके खेत को तैयार करना चाहिए. बता दें कि कलौंजी की बुवाई के लिये सितंबर से लेकर अक्टूबर के बीच का तापमान बेहतर रहता है.




खेत की तैयारी 
कलौंजी की फसल से दोषमुक्त और अधिक उत्पादन के लिए खेत को जैविक विधि से तैयार करने की  सलाह दी जाती है, ताकि कलौंजी के बीजों का क्वालिटी उत्पादन ले सकें. इसकी बुवाई से पहले खेत की गहरी जुताई  लगाकर खुला छोड़ दिया जाता है, ताकि सौरीकरण का काम हो सके. 



  • खेत में आखिरी जुताई से पहले प्रति हेक्टेयर की दर से 10 से 15 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद या कार्बनिक पदार्थों से भरपूर कंपोस्ट खाद मिलाई जाती है. 

  • इसके बाद जमीन पर पाटा लगाकर उसमें क्यारियां बनाई जाती हैं, जिससे कि बीजों की रोपाई की जा सके. 

  • रोपाई से पहले बीजों का उपचार भी किया जाता है, ताकि मिट्टी की कमियों से फसल पर बुरा असर ना पड़े. 


कलौंजी की बुवाई और देखभाल
कलौंजी की बुवाई के लिये दो तरीके अपनाये जाते हैं, जिसमें एक कतार विधि और दूसरी छिटकवां विधि. विशेषज्ञों की मानें तो लाइनों में कलौंजी के बीजों की बुवाई करने पर कृषि कार्य में आसानी रहती है. इस तरह खेती पर  निराई-गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण का काम भी आसान हो जाता है. बता दें कि कलौंजी के पौधों को अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती. 



  • कलौंजी के पौधों की अच्छी बढ़वार के लिये बुवाई के 20 से 25 दिनों बाद हल्की निराई-गुड़ाई का काम किया जाता है.

  • इसकी फसल में कुल दो से तीन निराई-गुड़ाईयों की जरूरत होती है, जिससे कि अनावश्यक खरपतवारों को उखाड़कर निकाला जा सके.


कलौंजी में कीट नियंत्रण
वैसे तो कलौंजी औषधीय फसल है, जिसमें कीड़ों की संभावना कम ही रहती है, लेकिन इस फसल में बीज अंकुरण के समय कुछ कीट-रोगों का प्रकोप हो सकता है. इनमें से कुछ फसल में पानी जमने के कारण पनपते हैं. इनकी रोकथाम के लिये खेत में जल निकासी की व्यवस्था करके निराई-गुड़ाई का काम करें और फसल पर जैविक कीटनाशक .या कवकनाशियों का ही छिड़ाकव करें.


कलौंजी की कटाई
कलौंजी एक मध्यम अवधि की नकदी फसल है, जो रोपाई के 130 या 140 दिनों के बाद पककर तैयार हो जाती है. सर्दियों में बुवाई के बाद गर्मियों तक तैयार होने वाली कलौंजी की फसल से पौधों को जड़ समेत उखाड़ लिया जाता है. 



  • इसके बाद कलौंजी के पौधों को धूप में सुखाया जाता है, ताकि इसके बीजों को सूखाकर निकाला जा सके. 

  • बता दें कि इसके बीज या दानों को निकलने के लिये पौधों को लकड़ी पर पीटा जाता है.




कलौंजी का उत्पादन
एक अनुमान के मुताबिक प्रति हेक्टेयर खेत में कलौंजी की फसल लगाकर उन्नत किस्मों के जरिए 50 क्विंटल तक उत्पादन ले सकते हैं. इसकी कुछ किस्में जल्द भी पक जाती है जो 10 से 20 क्विटल तक ही उत्पादन देती हैं.  बाजार में कलौंजी का भाव करीब 500 से ₹600 प्रति किलो होता है. बड़ी-बड़ी कृषि मंडियों में इसे 20000 से ₹25000 प्रति क्विंटल के भाव पर बेचा जाता है. इस प्रकार प्रति हेक्टेयर खेत में कलौंजी की फसल लगाकर किसान आराम से लाखों की कमाई ले सकते हैं


50 क्विंटल उपज देने वाली किस्म
कलौंजी की एनएस-4 (Kalonji Variety NS-4) किस्म सबसे ज्यादा बीजों का उत्पादन देने के लिये मशहूर है. प्रति हेक्टेयर खेत में इस किस्म के जरिए 50 क्विंटल तक उत्पादन (Kalonji Seeds Production) ले सकते हैं, हालांकि बाकी किस्मों के मुकाबले यह किस्म  20 दिन देरी से तैयार होती है. जहां बाकी किसानों को पकने में 130 से 140 दिन का समय लगता है, वही कलौंजी की उन्नत किस्म एनएस-4 से 150 से 160 दिनों के अंदर काफी ज्यादा उत्पादन मिल जाता है. कलौंजी की इस खास किस्म (Best Variety of Kalonji NS-4)की उत्पादन क्षमता  गजब की है, जो किसानों को कम समय में करोड़ों का मुनाफा भी दे सकती है.


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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