Radish Farming: भारत में पारंपरिक फसलों के स्थान पर किसान बागवानी फसलों (Horticulture Crops) में विकल्प तलाशने लगे हैं. कम समय में अच्छा उत्पादन देने के कारण अब किसान अलग-अलग सब्जियों की फसल (Vegetable Crops) लगाते हैं, जो पारंपरिक फसलों की समय अवधि में कई बार उत्पादन दे देती है. अभी देश में खरीफ फसलों के फसल प्रबंधन का कार्य पीक पर है, जिसके बाद रबी फसलों की बुवाई का काम किया जाएगा. इस सीजन मूली की खेती (Radish Cultivation) करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.


जानकारी के लिए बता दें कि मूली की फसल (Radish Crop) सिर्फ 40 दिन में 250 क्विंटल तक उत्पादन दे सकती है. इसकी खेती में लागत को बेहद कम आती ही है, वहीं एक हेक्टेयर खेत से किसानों को 1.5 लाख (Income from Radish Cultivation)  तक की आमदनी हो सकती है. इस तरह मूली की खेती से अच्छा मुनाफा कमाने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखना बेहद जरूरी है.


मूली की खेती के लिए जलवायु 
मूली कंद फसल है, जो जमीन के अंदर पैदा होती है और इसके पौधे जमीन के ऊपर निकलते हैं. इसकी फसल का हर हिस्सा बाजार में अच्छे दामों पर बिकता है. करीब 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान यानी सर्द मौसम में में इसके पौधों का बेहतर विकास होता है. वहीं फसल से अधिक पैदावार के लिये जल निकासी वाली गहरी बुलाई दोमट मिट्टी में  कार्बनिक पदार्थ वाली वर्मी कंपोस्ट खाद का इस्तेमाल करके भी मूली का बेहतर उत्पादन ले सकते हैं.


मूली की उन्नत किस्में 
वैसे तो भारत में मूली की कई किस्में मिट्टी और जलवायु के अनुसार अलग-अलग स्थानों पर उगाई जाती हैं, लेकिन कम समय में अच्छा उत्पादन देने वाली किस्मों में पूसा हिमानी, पूसा देसी, पूसा चेतकी, पूसा रेशमी, जापानी सफेद और गणेश सिंथेटिक आदि किस्मों को एशियाई मिट्टी में उगा सकते हैं.


मूली के पौधों की रोपाई
मूली की खेती के लिए किसान सीधी बिजाई या नर्सरी तैयार करके भी खेती करते हैं. इसकी व्यवसायिक खेती के लिए नर्सरी में उन्नत किस्म के बीजों से पौधे तैयार किये जाते हैं, जिनकी रोपाई करने पर सितंबर से लेकर मार्च तक बढिया उत्पादन मिलता है. बता दें कि मूली के पौधों की रोपाई के लिये कतार विधि का इस्तेमाल किया जाता है. इस बीच लाइन से लाइन के बीच 30 से 45 सेंटीमीटर और पौधों से पौधों के बीच 8 से 10 सेंटीमीटर की दूरी रखकर रोपाई करनी चाहिये.


मूली की फसल में खाद-उर्वरक 
वैसे तो  मूली की फसल में जैविक खाद और उर्वरकों का प्रयोग करके भी काफी अच्छा उत्पादन ले सकते हैं. इसकी खेती के लिए 200 से 250 क्विंटल साड़ी गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट, 80 किग्रा. नाइट्रोजन, 50 किग्रा. फास्फोरस, 50 किग्रा. पोटाश का प्रयोग भी मिट्टी की जांच के आधार पर कर सकते हैं. किसान चाहें तो जैव उर्वरक जीवामृत से भी फसल में पोषण प्रबंधन का कार्य करना लाभकारी रहेगा.


मूली की फसल में कीट नियंत्रण 
जाहिर है कि मूली एक कंदवर्गीय सब्जी है, जो मिट्टी के अंदर पैदा होती है, इसलिए मिट्टी के रोग लगने की संभावना काफी बढ़ जाती है. खासकर काला लार्वा नामक जड़ कीट मूली का उत्पादन गिरा सकते हैं. शुरुआती अवस्था में ये लार्वा पत्तियों को खाकर उन में छेद बना देते हैं, जिससे फसल की क्वालिटी और उत्पादन काफी हद तक कम हो सकता है. इसकी रोकथाम के लिए एंडोसल्फान की 20 लीटर को 10 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर फसल पर छिड़क सकते हैं. मूली की फसल में कीट और रोगों की जैविक रोकथाम के लिए नीम-गोमूत्र आधारित कीटनाशक का इस्तेमाल करना भी फायदे का सौदा साबित हो सकता है.


मूली की कटाई और उत्पादन 
मूली एक कम अवधि वाली बागवानी फसल है, जिसकी उन्नत किस्मों से बुवाई करने पर 40 से 50 दिन के अंदर फसल तैयार और जड़ें खाने लायक हो जाती हैं, इसलिए समय से इसकी खुदाई का काम कर लेना चाहिए. बता दें कि मूली की यूरोपियन प्रजातियों से 80 से 100 क्विंटल और देसी प्रजातियों से 250 से 300 क्विंटल तक उत्पादन ले सकते हैं. मंडियों में कम से कम कीमत पर भी मूली को 500 से 1200 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेचा जाता है. इस तरह प्रति हेक्टेयर खेत में मूली की फसल लगाकर कम समय में  1.5 लाख रुपये का मुनाफा कमा सकते हैं.


मूली की सह-फसल खेती
अभी खेतों में खरीफ सीजन (Kharif Season Crops) की खाद्यान्न, बागवानी और दलहनी समेत कई नकदी फसलें लगी हुई है. किसान चाहें तो कम लागत में अतिरिक्त आमदनी लेने के लिए मूली की अंतवर्तीय खेती (Co-cropping of Radish) भी कर सकते हैं. इसके लिए खेतों के बीच में या किनारे-किनारे मेड़ बनाकर मूली के बीजों (Radish Seeds) की बुवाई या पौधों की रोपाई (Radish Plants) का काम किया जाता है. इसके लिए अलग से खाद उर्वरक का इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि यह बागवानी फसल (Radish Cultivation) मुख्य फसल से ही पोषण का इंतजाम कर लेती है.




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