Top Varieties of Banana: भारत में पुराने समय से ही केले (Banana Farming) का बड़ा ही महत्व है. चाहे धार्मिक अनुष्ठान हों या पोषण (Nutrition)की कमी को पूरा करना हो, केला अपने आप में पावर बूस्टर (Power Booster) फल का काम करता है. केला एक प्रमुख नकदी फसल भी है, जो कम खर्च में अधिक मुनाफा दे जाती है. इसकी एक बार रोपाई करने के बाद अगले 5 साल तक बेहतर उत्पादन ले सकते हैं. भारत में भी सालभर केले की खपत बनी रहती है. यही कारण है कि ज्यादातर किसान अब केले की खेती (Banana Cultivation)में रुचि ले रहे हैं. 




लागत और आमदनी
केले की खेती को आम भाषा में 'वन टाइम इंवेस्टमेंट' बिजनेस के नाम से भी जानते हैं. इसके बागों को लगाने में 50,000 रुपये की शुरुआती लागत आती है, जिसमें नर्सरी की तैयारी, बीज, खाद-उर्वरक, पौधों की रोपाई और सिंचाई आदि शामिल है.



  • अगर जैविक विधि से केले की बागवानी करते हैं तो भविष्य में केले का सिर्फ एक पौधा 60-70 किलो तक का फल उत्पादन दे सकता है.

  • इसकी खेती के लिये ज्यादा खर्च नहीं आता, लेकिन कम लागत में अच्छी आमदनी लेने के लिये केले की जैविक खेती करने की सलाह दी जाती है.

  • केले की पुरानी फसल से निकला अपशिष्ट-कचरा भी खेत के लिये जैविक खाद के तौर पर पोषण देने का काम करता है.

  • केला को कम जोखिम वाली फसल कहते हैं, लेकिन खेती में मौसम के रिस्क को कम करने के लिये फसल का बीमा करवाना फायदेमंद रहता है. 


उन्नत किस्मों से करें खेती
भारत में जलवायु और मिट्टी के हिसाब से केले की 500 से ज्यादा किस्में पाई जाती हैं. केले की बागवानी से मोटी कमाई हासिल करने के लिये इसकी उन्नत, रोग प्रतिरोधी और अच्छी पैदावार देने वाली किस्में (Advanced Banana Varieties) ही लगानी चाहिये. 




नेंद्रन केला
केला की नेंद्रन किस्म को कम खर्च में ज्यादा उत्पादन और मुनाफा देने वाली फसल भी कहते हैं. यही कारण है कि दक्षिण भारत के ज्यादातर किसानों की पहली पसंद नेंद्रन केला ही है. इस केले की खेती के बाद प्रसंस्करण करके चिप्स और पाउडर बनाया जाता है, जिससे किसानों को अच्छा पैसा मिल जाता है.  


मोन्थन केला 
मोन्थन केला को बिहार से लेकर केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु समेत देश के कई राज्यों में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है. आमतौर पर मोन्थन केला के फल का बीच वाला हिस्सा सख्त होता है, जिसके चलते इसे ज्यादातर सब्जी और दूसरे प्रसंस्करित उत्पाद बनाने में इस्तेमाल किया जाता है. हर सीजन में इस केले सिर्फ एक ही पौधे से 18-22 किग्रा का उत्पादन मिल जाता है. लेकिन कोंकण गोवा के इलाकों में इसकी सह-फसली खेती करके का काफी चलन है.


कारपुरावल्ली केला 
यह केला की लंबी अवधि वाली किस्म है, जिससे 20-25 किग्रा प्रति पौधे के हिसाब से उत्पादन मिल जाता है. केले की ये किस्म कम लागत में अच्छी बढ़वार हासिल कर लेती है. मौसम की विपरीत परिस्थितियों (Weather Risks) का भी इस पर कुछ खास असर नहीं होता. यही कारण है कि तमिलनाडु के ज्यादातर बागों में कारपुरावल्ली केला की फसल लगाते हैं. इसका इस्तेमाल सब्जी (Vegetable)के रूप में भी किया जाता है. 


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